ललित सुरजन की कलम से- चीन, ओबोर और भारत

भारत और पाकिस्तान दोनों काश्मीर को मुद्दा बनाकर चाहे जितना वैमनस्य पालते रहें, यह तथ्य सबके सामने है कि एक समय की जो जम्मू-काश्मीर रियासत थी;

Update: 2025-05-05 01:15 GMT

'भारत और पाकिस्तान दोनों काश्मीर को मुद्दा बनाकर चाहे जितना वैमनस्य पालते रहें, यह तथ्य सबके सामने है कि एक समय की जो जम्मू-काश्मीर रियासत थी, गत सत्तर वर्षों से उसका एक भाग भारत के पास विलय पत्र पर राजा द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद से है, जबकि दूसरा भाग पाकिस्तान के वास्तविक नियंत्रण में है।

वह जिसे आज़ाद काश्मीर कहता है, वहां किसी भी तरह की स्वायत्तता नहीं है और उसकी तथाकथित सरकार इस्लामाबाद द्वारा ही मनोनीत की जाती है। पाकिस्तान के कब्जे वाले भाग में चीन लंबे समय से सक्रिय है तथा बलोचिस्तान के निर्माणाधीन ग्वादर बंदरगार तक चीन की आवाजाही का रास्ता वहीं से गुजरता है।

यह भारत पर निर्भर करता है कि इस वास्तविकता को किस हद तक स्वीकार करे, उसकी तरफ से मुंह मोड़ ले या फिर पूरी तरह आंखें बंद कर ले। चूंकि पाकिस्तान में भी निर्वाचित सरकार के बजाय सेना का ही हुक्म चलता है, इसलिए आपसी बातचीत से कोई समाधान जल्दी होते नहीं दिखता।

किंतु चीन को इससे क्या फर्क पड़ता है। वह तो अपने मकसद में कामयाबी हासिल कर ही रहा है।'

(देशबन्धु में 25 मई 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/05/blog-post_26.html

 

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