ललित सुरजन की कलम से- 'मोदीवाद की जीत'
गठबंधन का नाम नहीं, पार्टी का नाम नहीं, मुद्दों की बात एक सिरे से गायब तो फिर वह ऐसा कौन सा आशादीप था जो पतिंगे की मानिंद मतदाताओं को मोदी की तरफ खींच रहा था;
'गठबंधन का नाम नहीं, पार्टी का नाम नहीं, मुद्दों की बात एक सिरे से गायब तो फिर वह ऐसा कौन सा आशादीप था जो पतिंगे की मानिंद मतदाताओं को मोदी की तरफ खींच रहा था? इसका जवाब 23 तारीख की दोपहर में छत्तीसगढ़ की प्रमुख भाजपा नेत्री सरोज पांडे ने दिया।
एक रिपोर्टर से उन्होंने कहा- राष्ट्रवाद और देश की सुरक्षा। मैंने उनका कथन सुना, लेकिन देश में अन्यत्र भी अन्य नेतागण शायद यही बात कर रहे होंगे! इस राष्ट्रवाद को कैसे परिभाषित किया जाए, मैं नहीं जानता।
इतना अवश्य पता है कि बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में चीनी राष्ट्रवाद, जापानी राष्ट्रवाद, कोरियाई राष्ट्रवाद जैसी भावनाएं प्रचलित थीं, जिनकी आलोचना विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने की थी। मैं यह भी नहीं समझ पाता कि हम एक देश में रहते हैं, देशवासी कहलाते हैं, लेकिन राष्ट्रवाद की तर्ज पर देशवाद जैसी कोई संज्ञा आजतक क्यों नहीं बनी!
भाजपा के राष्ट्रवाद की व्याख्या शायद यही है कि 1947 में पाकिस्तान के नाम पर एक मुस्लिम राष्ट्र बन गया था, सो भारत को हिंदू राष्ट्र बनना ही चाहिए जिसमें मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रहें।
उनकी यह अवधारणा इजराइल के यहूदी राष्ट्रवाद से प्रेरित हो तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होगी। यह मोदीवाद का सूत्र क्रमांक दो है।
(देशबंधु में 30 मई 2019 को प्रकाशित)
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