आश्वासन देकर भूल गए अधिकारी, किसान हलाकान

अतिवर्षा के कारण 7 माह पहले चिताखोल जलाशय में क्षमता से अधिक जल भराव होने के कारण पानी आसपास के खेतों में बह गया;

Update: 2018-02-15 11:10 GMT

7 माह पहले चिताखोल जलाशय ओव्हरफ्लो से खराब हुए खेतों को अब तक नहीं सुधारा 

कोरबा-करतला। अतिवर्षा के कारण 7 माह पहले चिताखोल जलाशय में क्षमता से अधिक जल भराव होने के कारण पानी आसपास के खेतों में बह गया। पानी के साथ बड़े पैमाने पर रेत, मिट्टी, पत्थर भी खेतों में पट गए। उक्त बिगड़े खेतों को सुधारने की सहमति जल संसाधन विभाग के अधिकारी ने लिखित में दी लेकिन 7 महीने बाद भी सुध लेना मुनासिब नहीं समझा। घोर उपेक्षा का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं।

करतला विकास खंड के ग्राम पंचायत लबेद अंतर्गत जल संसाधन विभाग द्वारा 3 पहाड़ों के बीच में पानी को रोकने के लिए बनाया गया यह चिताखोल जलाशय 19 जुलाई 2017 को अतिवर्षा के कारण बह गया। जलाशय के स्पिल चैनल से अत्यधिक मात्रा में पानी की निकासी हुई। यह अतिरिक्त पानी जलाशय के निकट बनाये गए नहर से होकर बह जाना था किन्तु गुणवत्ताहीन और अधूरा कार्य कर पूरी राशि निकाल लेने से हुए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा यह नहर बहाव में बह गया।

जलाशय का अतिरिक्त पानी किसानों के खेतों में घुस गया। इससे किसानों को काफी क्षति उठानी पड़ी। जल संसाधन विभाग के एसडीओ सीएल भाखर ने घटना के दूसरे दिन मौके पर जाकर अवलोकन किया। ग्रामीणों की मांग और उनके आक्रोश को देखते हुए 29 जुलाई को विभाग की ओर से लिखित सहमति पत्र लिखा गया जिसमें महेत्तर सिंह पिता करमू राम चौहान एवं श्रीमती केवराबाई पति महेत्तर सिंह के खेत में हुई क्षति का उल्लेख कर विभाग द्वारा खेतों को सुधार कर उपजाऊ बनाने एवं उचित मुआवजा देने हेतु प्रकरण तैयार किया जाना लिखा।

यह भी लिखा कि माह दिसंबर 2017 तक खेतों को सुधारकर मुआवजा प्राप्त करने हेतु आपस में सहमत हैं। उपरोक्त सहमति के 7 माह बीत जाने के बाद भी खेतों में सुधार नहीं हो सका है। प्रभावित किसानों को मुआवजा भी अब तक अप्राप्त है।

तीन दिन काम कर भाग खड़े हुए कर्मचारी
ग्रामीणों ने बताया कि खेतों में 5-6 फीट ऊंचाई तक पट चुके रेत, मिट्टी, पत्थर को पहले तो पानी भरा होने के कारण सूखने पर साफ कराने की बात कही गई। बाद में मलबा हटवा कर खेत सुधारने के लिए जल संसाधन विभाग के टाईम कीपर की निगरानी में कार्य शुरू कराया गया। एक जेसीबी और ट्रैक्टर लगाया गया। 3 दिन काम करने के बाद जेसीबी और ट्रैक्टर वाले भाग खड़े हुए। ग्रामीणों की माने तो 1 दिन में 10 से 15 हजार रुपए का खर्च इस कार्य में आ रहा था।

900 रुपए प्रतिघंटा की दर से जेसीबी और 100 रुपए प्रति ट्रिप भाड़ा टै्रक्टर वाला लेता था। 40 से 45 ट्रिप मलबा फेंका जा रहा था। 3 दिन काम करने के बाद जेसीबी और ट्रैक्टर वाले ने छेरछेरा त्यौहार के बाद आकर बाकी काम करने की बात कही लेकिन दुबारा नहीं आये। 28 दिसंबर के बाद से खेत जस के तस पड़े हुए हैं। 

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