पहले 15 लाख का झूठा वादा, अब 20 लाख करोड़ का दावा : अखिलेश
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज प्रधानमंत्री द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा को लेकर तंज कसा;
लखनऊ । समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज प्रधानमंत्री द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा को लेकर तंज कसा। उन्होंने कहा कि पहले 15 लाख का झूठा वादा और अब 20 लाख करोड़ का दावा इस पर कोई कैसे ऐतबार करेगा। अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा, "पहले 15 लाख का झूठा वादा और अब 20 लाख करोड़ का दावा। अबकी बार लगभग 133 करोड़ लोगों को 133 गुना बड़े जुमले की मार। ऐ बाबू, कोई भला कैसे करे ऐतबार। अब लोग ये नहीं पूछ रहे हैं कि 20 लाख करोड़ में कितने जीरो होते हैं, बल्कि ये पूछ रहे हैं कि उसमें कितनी गोल-गोल गोली होती हैं।"
पहले 15 लाख का झूठा वादा और अब 20 लाख करोड़ का दावा...
अबकी बार लगभग 133 करोड़ लोगों को 133 गुना बड़े जुमले की मार...
ऐ बाबू कोई भला कैसे करे एतबार...
अब लोग ये नहीं पूछ रहे हैं कि 20 लाख करोड़ में कितने ज़ीरो होते हैं बल्कि ये पूछ रहे हैं उसमें कितनी गोल-गोल गोली होती हैं.
इससे पहले उन्होंने लिखा, "ये सच है कि बुनियाद कभी दिखती नहीं, पर ये नहीं कि उसे देखना भी नहीं चाहिए। जिन गरीबों के भरोसे की नींव पर आज सत्ता का इतना बड़ा महल खड़ा हुआ है, ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद, संकट के समय में भी उन गरीबों की अनदेखी करना अमानवीय है। ये सबका विश्वास के नारे के साथ विश्वासघात है।"
ये सच है कि बुनियाद कभी दिखती नहीं पर ये नहीं कि उसे देखना भी नहीं चाहिए. जिन ग़रीबों के भरोसे की नींव पर आज सत्ता का इतना बड़ा महल खड़ा हुआ है, ऊँचाईयों पर पहुँचने के बाद, संकट के समय में भी उन ग़रीबों की अनदेखी करना अमानवीय है.
ये “सबका विश्वास” के नारे के साथ विश्वासघात है.
इसके अलावा उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि "देश के मजदूर-गरीब अपनी विपदाओं के लिए प्रबंध की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन उन्हें सुनने को मिला केवल निर्थक निबंध। क्या आधे घंटे से भी ज्यादा समय में सड़कों पर भटकते मजदूरों के लिए एक-आध शब्द की संवेदना की भी गुंजाइश नहीं थी, हर कोई सोचे। असंवेदनशील-दुर्भाग्यपूर्ण!"
देश के मज़दूर-ग़रीब अपनी विपदाओं के लिए प्रबंध की उम्मीद कर रहे थे लेकिन उन्हें सुनने को मिला केवल निरर्थक निबंध. क्या आधे घंटे से भी ज़्यादा समय में सड़कों पर भटकते मज़दूरों के लिए एक-आध शब्द की संवेदना की भी गुंजाइश नहीं थी. हर कोई सोचे.
असंवेदनशील-दुर्भाग्यपूर्ण! pic.twitter.com/7PbCNtdoM8