भाजपा शासन में नफरत का विस्तार किस हद तक किया जा रहा है, इसका ताजा उदाहरण जम्मू-कश्मीर से आया है, जहां कटरा के श्री माता वैष्णो देवी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की भाजपा ने की और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मांग को स्वीकार भी कर लिया। यह सरासर छात्रों के साथ अन्याय है और उस संविधान का भी अपमान है, जिसकी शपथ उपराज्यपाल ने पद ग्रहण करते वक्त ली थी। भाजपा की तो राजनीति ही धर्मांधता और नफरत की है, लेकिन क्या मनोज सिन्हा अब भी खुद को भाजपा की राजनीति से बांध कर चल रहे हैं। जबकि उनका पद उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संविधान की मर्यादा के अनुरूप फैसले लेने की मांग करता है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा की अगुवाई में पांच सदस्यीय भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार 22 नवंबर को एलजी मनोज सिन्हा से मुलाकात की और मांग की कि प्रतिनिधिमंडल ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के नियमों में संशोधन कर विश्वविद्यालय में केवल हिंदू छात्रों के लिए सीटें आरक्षित की जाएं। इसके साथ ही इस साल मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की मांग की। सुनील शर्मा का कहना है कि 'इस साल प्रवेश सूची में ज़्यादातर छात्र एक ही समुदाय से हैं। यह विश्वविद्यालय एक धार्मिक संस्था है। हर श्रद्धालु अपनी भक्ति भावना से इस धार्मिक संस्था को दान देता है और चाहता है कि उसकी आस्था को बढ़ावा मिले। लेकिन बोर्ड और विश्वविद्यालय दोनों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया। हमने एलजी से साफ कहा है कि केवल वही छात्र प्रवेश पा सकें जिन्हें माता वैष्णो देवी में आस्था हो।उच्च शिक्षण संस्थानों में नफरत का विस्तार
भाजपा शासन में नफरत का विस्तार किस हद तक किया जा रहा है, इसका ताजा उदाहरण जम्मू-कश्मीर से आया है, जहां कटरा के श्री माता वैष्णो देवी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की भाजपा ने की और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मांग को स्वीकार भी कर लिया। यह सरासर छात्रों के साथ अन्याय है और उस संविधान का भी अपमान है, जिसकी शपथ उपराज्यपाल ने पद ग्रहण करते वक्त ली थी। भाजपा की तो राजनीति ही धर्मांधता और नफरत की है, लेकिन क्या मनोज सिन्हा अब भी खुद को भाजपा की राजनीति से बांध कर चल रहे हैं। जबकि उनका पद उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संविधान की मर्यादा के अनुरूप फैसले लेने की मांग करता है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा की अगुवाई में पांच सदस्यीय भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार 22 नवंबर को एलजी मनोज सिन्हा से मुलाकात की और मांग की कि प्रतिनिधिमंडल ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के नियमों में संशोधन कर विश्वविद्यालय में केवल हिंदू छात्रों के लिए सीटें आरक्षित की जाएं। इसके साथ ही इस साल मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की मांग की। सुनील शर्मा का कहना है कि 'इस साल प्रवेश सूची में ज़्यादातर छात्र एक ही समुदाय से हैं। यह विश्वविद्यालय एक धार्मिक संस्था है। हर श्रद्धालु अपनी भक्ति भावना से इस धार्मिक संस्था को दान देता है और चाहता है कि उसकी आस्था को बढ़ावा मिले। लेकिन बोर्ड और विश्वविद्यालय दोनों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया। हमने एलजी से साफ कहा है कि केवल वही छात्र प्रवेश पा सकें जिन्हें माता वैष्णो देवी में आस्था हो।उच्च शिक्षण संस्थानों में नफरत का विस्तार
भाजपा शासन में नफरत का विस्तार किस हद तक किया जा रहा है, इसका ताजा उदाहरण जम्मू-कश्मीर से आया है, जहां कटरा के श्री माता वैष्णो देवी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की भाजपा ने की और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मांग को स्वीकार भी कर लिया। यह सरासर छात्रों के साथ अन्याय है और उस संविधान का भी अपमान है, जिसकी शपथ उपराज्यपाल ने पद ग्रहण करते वक्त ली थी। भाजपा की तो राजनीति ही धर्मांधता और नफरत की है, लेकिन क्या मनोज सिन्हा अब भी खुद को भाजपा की राजनीति से बांध कर चल रहे हैं। जबकि उनका पद उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संविधान की मर्यादा के अनुरूप फैसले लेने की मांग करता है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा की अगुवाई में पांच सदस्यीय भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार 22 नवंबर को एलजी मनोज सिन्हा से मुलाकात की और मांग की कि प्रतिनिधिमंडल ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के नियमों में संशोधन कर विश्वविद्यालय में केवल हिंदू छात्रों के लिए सीटें आरक्षित की जाएं। इसके साथ ही इस साल मुस्लिम छात्रों का दाखिला रद्द करने की मांग की। सुनील शर्मा का कहना है कि 'इस साल प्रवेश सूची में ज़्यादातर छात्र एक ही समुदाय से हैं। यह विश्वविद्यालय एक धार्मिक संस्था है। हर श्रद्धालु अपनी भक्ति भावना से इस धार्मिक संस्था को दान देता है और चाहता है कि उसकी आस्था को बढ़ावा मिले। लेकिन बोर्ड और विश्वविद्यालय दोनों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया। हमने एलजी से साफ कहा है कि केवल वही छात्र प्रवेश पा सकें जिन्हें माता वैष्णो देवी में आस्था हो।'
दरअसल जम्मू कश्मीर बोर्ड ऑफ प्रोफेशनल एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेकेबीओपीईई) ने श्री माता वैष्णोदेवी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में दाखिले के लिए 50 छात्रों की सूची जारी की थी, जिसमें 42 कश्मीर के और 8 जम्मू के छात्रों का नाम था। इसके बाद विहिप और बजरंग दल ने कटरा में संस्थान के बाहर प्रदर्शन किया और वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पुतला जलाया। वहीं विहिप के जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष राजेश गुप्ता ने कहा कि 2025-26 सत्र के दाखिले रोके जाएं और प्रबंधन अपनी 'गलतीÓ सुधारते हुए सुनिश्चित करे कि अगली बार चुने जाने वाले छात्रों में बहुमत हिंदू हों। उन्होंने इस बार तैयार की गई 50 छात्रों की सूची को 'मेडिकल कॉलेज का इस्लामीकरण करने की साजिशÓ बताया। वहीं अधिकारियों ने कहा था कि सभी दाखिले नियमों के अनुसार किए गए हैं और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हैं।
विश्वविद्यालय में धर्म के आधार पर दाखिला देने की इस बेतुकी मांग को लेकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार से जुड़े संगठन जम्मू में लगातार विरोध प्रदर्शन और बैठकें भी कर रहे हैं, जिससे अनावश्यक धार्मिक तनाव बढ़ रहा है और जम्मू बनाम घाटी का मसला फिर खड़ा होता दिख रहा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि विरोध अनावश्यक है और प्रवेश पूरी तरह मेरिट पर आधारित है। वहीं विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के इस कदम को शर्मनाक बताते हुए कहा, 'नए कश्मीर में अब मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव शिक्षा तक फैल चुका है। विडंबना यह है कि इस मुस्लिम विरोधी भेदभाव को भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य में लागू किया जा रहा है.. एकमात्र ऐसे राज्य में जिसका मुख्यमंत्री मुसलमान है।'
भाजपा की मांग और उपराज्यपाल के रुख की आलोचना तो हो रही है, लेकिन क्या यह फैसला पलट पाएगा, यह देखना होगा। क्योंकि मनोज सिन्हा ने एक विभाजनकारी और सांप्रदायिक ज्ञापन स्वीकार कर बता दिया कि भाजपा अपनी सत्ता में केवल हिंदुत्व को बढ़ावा नहीं दे रही, वह अल्पसंख्यकों के हक पर आघात भी कर रही है। देश में मंदिर-मस्जिद विवाद बरसों से हो रहे हैं। अब त्योहारों पर भी खुशी से पहले तनाव पसरने लगा है। लेकिन शिक्षण संस्थान जो राजनीति का शिकार तो थे, लेकिन धर्मांधता से काफी हद तक बचे हुए थे, वहां भी अब नफरत का यह कैरोसिन उंड़ेला जा चुका है। देश में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे धार्मिक पहचान वाले उच्च शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन इनमें सभी धर्मों के छात्र पढ़ते आए हैं। कभी किसी ने ऐसा सवाल नहीं उठाया कि इस धर्म के इतने छात्र यहां क्यों हैं। यह चिंताजनक सवाल है कि अगर अस्पताल, स्कूल, विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेजों में धर्म के आधार पर दाखिला दिया जाए, तो फिर हम किस किस्म का भारत बना रहे हैं या बना चुके हैं। आज मुस्लिम छात्रों के उस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पर आपत्ति हो रही है, जिसमें हिंदू भक्त दान देते हैं, तो कल को मरीजों का इलाज भी धर्म के आधार करने की बात की जाएगी।
वैसे भी दिल्ली हमले के बाद से पढ़े-लिखे मुसलमानों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो निहायत बेवकूफी है। श्री माता वैष्णो देवी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में मुसलमानों के प्रवेश को रोकने पर भाजपा का रुख न केवल गुमराह करने वाला है बल्कि खतरनाक भी है। यह सही है कि इस संस्थान का वित्त पोषण धार्मिक चंदे से होता है, लेकिन इससे यह धर्म आधारित संस्था नहीं बन जाता। अकेले वैष्णो देवी में ही नहीं तिरुपति बालाजी से लेकर शिरडी तक देश भर में न जाने कितनी ऐसी संस्थाएं हैं, जिन्होंने दान की राशि से उच्च शिक्षण संस्थान, अस्पताल, वाचनालय, धर्मशालाएं बनवाईं और अनेक समाजोपयोगी कार्यों को बढ़ावा दिया। रायपुर में ही 1958 में दूधाधारी मठ के राजेश्री वैष्णवदास जी महंत ने तीन लाख एक सौ एक रुपये की राशि के साथ-साथ तीन सौ एक एकड़ भूमि स्त्री शिक्षा के लिए दान दी थी। यहां सभी धर्मों की लड़कियों को पढ़ने का मौका मिला, कहीं कोई शर्त नहीं थी कि केवल हिंदू या मुस्लिम या ईसाई या आदिवासी ही यहां प्रवेश ले सकती हैं।
भाजपा को यह बात समझना चाहिए कि श्रद्धा से दी गई दान राशि को भेदभाव का औजार नहीं बनाया जा सकता। तात्कालिक लाभ के लिए शिक्षण संस्थाओं को सियासी अखाड़े में बदलने के परिणाम घातक हो सकते हैं। देश में इससे ऐसा विभाजन पैदा हो जाएगा, जिसे भरने में सदियां गुजर जाएंगी।