बच्चों से वैज्ञानिक चिंतन छीनने का अपराध
पूर्व केंद्रीय मंत्री, हमीरपुर से भाजपा सांसद और भरी सभा में गोली मारो जैसे नारे लगाकर भीड़ को उकसाने वाले अनुराग ठाकुर के निशाने पर अब शायद देश के बच्चे आ गए हैं;
पूर्व केंद्रीय मंत्री, हमीरपुर से भाजपा सांसद और भरी सभा में गोली मारो जैसे नारे लगाकर भीड़ को उकसाने वाले अनुराग ठाकुर के निशाने पर अब शायद देश के बच्चे आ गए हैं। वैसे अकेले अनुराग ठाकुर ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के कई नेता, मंत्री और समर्थकों के निशाने पर इस समय वे मासूम बच्चे हैं, जिन्हें गलत दिशा में धकेल कर, उनकी तर्क और चिंतन शक्ति को छीन कर अपने राजनैतिक मकसद के इस्तेमाल की रणनीति भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बनाई है। इसमें अमीरों के बच्चे तो शायद बच भी जाएं, लेकिन गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे कैसे मानसिक तौर पर सुरक्षित रह पाएंगे, यह गंभीर चिंता का विषय है।
नारदजी पहले पत्रकार थे, भगवान गणेश की प्लास्टिक सर्जरी हुई है, मोरनी मोर के आंसू से गर्भवती होती है, पहला विमान भगवान विश्वकर्मा ने बनाया के बाद, अब हनुमान जी को पहला अंतरिक्ष यात्री बताया गया है। बीते शनिवार, अंतरिक्ष दिवस के मौके पर अनुराग ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के पेखूबेला में पीएम श्री नवोदय विद्यालय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने बच्चों से पूछा कि अंतरिक्ष जाने वाला पहला व्यक्ति कौन था। इसके जवाब में बच्चों ने कहा कि नील आर्मस्ट्रांग; जिसे सुनकर अनुराग ठाकुर ने कहा कि मुझे लगता है अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति हनुमान जी थे। पता नहीं अनुराग ठाकुर को कौन सी पौराणिक, धार्मिक पुस्तकों से यह ज्ञान मिला है कि हनुमान जी ने सबसे पहले अंतरिक्ष की यात्रा की। क्योंकि धार्मिक कहानियों को ही विज्ञान का सच मानना है, तब भी हनुमान जी से पहले उनके पिता मारुत, सूर्य, इंद्र, वरुण आदि देवताओं को अंतरिक्ष यात्री कहा जा सकता है, बल्कि ये तो अंतरिक्ष निवासी ही हैं। अपने कथन से अनुराग ठाकुर ने ये तो बता दिया कि पौराणिक कथाओं और पात्रों के बारे में भी उनका ज्ञान पूरा नहीं है। हालांकि इससे देश को फर्क नहीं पड़ता कि किसी नेता को किसी धर्म का कितना ज्ञान है या नहीं। फर्क इससे पड़ता है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को संविधान का ज्ञान है या नहीं। इस मामले में अनुराग ठाकुर की अज्ञानता चिंतित करती है। क्योंकि उन्होंने न केवल बच्चों के सही जवाब को एक धार्मिक संदर्भ की कसौटी पर गलत करार दिया, बल्कि इसके बाद श्री ठाकुर ने विद्यालय के शिक्षकों से जो आग्रह किया, वो और खतरनाक और एक हद तक भविष्य के साथ अपराध भी है।
अननुराग ठाकुर ने तर्क दिया कि ज्ञान परंपराओं का विस्तार अंग्रेजों द्वारा हमें दी गई पाठ्यपुस्तकों से आगे आना चाहिए। उन्होंने शिक्षकों से अनुरोध किया बच्चों को हमारे वेदों, हमारी पाठ्यपुस्तकों और हमारे ज्ञान की ओर भी ले जाने की कोशिश करें। इससे बच्चों को बहुत कुछ देखने का मौका मिलेगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51-ए(एच) प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य बताता है कि वह 'वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना' विकसित करे। इसका अर्थ है कि तर्कों, तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर सोचें, अंधविश्वासों से बचें, मानवतावादी मूल्यों को अपनाएं, और नई जानकारी के आधार पर अपने विश्वासों को संशोधित करने के लिए खुले रहें। अनुराग ठाकुर ने ठीक इसके उलट बात की। सांसद महोदय ने ये बातें सरकारी विद्यालय में कहीं, जहां अमूमन उन गरीब और साधारण परिवारों के बच्चे आते हैं, जो महंगी शिक्षा का बोझ नहीं उठा सकते। सरकारी स्कूलों में अगर उन्हें अच्छी शिक्षा मिले तो आगे जाकर इन बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। लेकिन भाजपा सांसद उन्हें वेद-पुराणों की शिक्षा देने पर जोर दे रहे हैं, ताकि भाजपा को हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करने में आसानी हो। डीएमके सांसद कनिमोझी ने इस घटना पर लिखा है कि विज्ञान कोई पौराणिक कथा नहीं है। कक्षाओं में युवाओं को गुमराह करना ज्ञान, तर्क और हमारे संविधान में निहित वैज्ञानिक सोच की भावना का अपमान है। कनिमोझी के अलावा अन्य विपक्षी सांसदों को भी इस बयान का विरोध करना चाहिए।
हैरानी की बात ये है कि अनुराग ठाकुर ने इसी कार्यक्रम में अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की हालिया उपलब्धियों का जिक्र किया। और इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया। दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी ने भी अंतरिक्ष दिवस पर कहा है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में नए-नए मील के पत्थर लगाना भारत और भारत के वैज्ञानिकों का स्वभाव बन गया है। लेकिन श्री मोदी ये भूल रहे हैं कि उनके शासनकाल में पैदा हुए बच्चे वैज्ञानिक अभी नहीं बने हैं, जिस काम का श्रेय प्रधानमंत्री ले रहे हैं, वो दरअसल पूर्ववर्ती सरकारों के वक्त शिक्षित लोगों का कमाल है। पं.नेहरू जैसे दूरदर्शी नेता का कमाल है जिनकी वैज्ञानिक सोच ने देश को उत्कृष्ट संस्थान दिए।
यह संयोग ही है कि अंतरिक्ष यात्रा पर की गई बेतुकी बात उस समय हुई है जब दूसरे अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला भारत लौटे हैं और अभी उनके स्वागत का सिलसिला चल ही रहा है। श्री शुक्ला को भी अनुराग ठाकुर के इस बयान की भर्त्सना करनी चाहिए। क्योंकि देश ने उन्हें अंतरिक्ष में भेजने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए हैं, तो उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें। केवल सत्ता का गुणगान करने से उनकी जिम्मेदारी पूरी नहीं होगी। प्रधानमंत्री से मुलाकात में शुभांशु शुक्ला ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा था कि '1984 में जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे, तो किसी राष्ट्रीय कार्यक्रम के अभाव के कारण उनके मन में अंतरिक्ष यात्री बनने का विचार नहीं आया था। लेकिन अब उन्हें खुशी है कि बच्चे उनसे पूछते हैं कि अंतरिक्ष यात्री कैसे बन सकता हूं?'
अपने इस बयान से श्री शुक्ला मोदी सरकार को खुश कर सकते हैं, लेकिन सच यही है कि उनकी ये उपलब्धि केवल मोदी सरकार की देन नहीं है। अंतरिक्ष कार्यक्रम सतत चलने वाली प्रक्रिया है और इसे किसी भी राजनीति से बचाकर ही रखना चाहिए।