देश सेवा- नौकरी के साथ भी, नौकरी के बाद भी

सात अगस्त 2025 को भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटना हुई थी;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-20 21:57 GMT

सात अगस्त 2025 को भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटना हुई थी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर 1 घंटे 11 मिनट तक कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट पर 22 पन्नों का प्रजेंटेशन दिया था। राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि इस सीट पर 6.5 लाख वोट में से 1 लाख वोटों की चोरी हुई है। कांग्रेस के शोध में यहां एक लाख के करीब गलत पते और एक ही पते पर थोक मतदाताओं और नकली मतदाताओं का पता चला। जिसका पूरा खुलासा राहुल गांधी ने किया था। महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में मतदाता सूची में हेर फेर करके भाजपा ने चुनाव जीता है, यह आरोप तो विपक्ष पहले से लगा रहा था। लेकिन यह पहली बार था जब किसी एक सीट का इस तरह पूरा कच्चा-चिठ्ठा मीडिया के जरिए देश के सामने रखा था।

राहुल गांधी के इस खुलासे के फौरन बाद ही चुनाव आयोग ने इस पर फेक और मिसलीडिंग यानी फर्जी और भ्रामक होने का ठप्पा तो लगा दिया, साथ ही एक प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा पेश करने कहा था। जबकि राहुल गांधी का कहना था कि वे कोई हलफनामा पेश नहीं करेंगे, उन्होंने अपनी बात सबूतों के साथ रखी है, अब दारोमदार चुनाव आयोग पर है कि वह इसे या तो गलत साबित करे या फिर अपनी गलती माने। लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा कुछ नहीं किया।

अगस्त के बाद सितम्बर और इसी महीने की 4 तारीख को राहुल गांधी ने दो और प्रेस वार्ताएं की और उन दोनों में फिर से इसी तरह की मतदाता सूची की गड़बड़ी को दिखाया, जिसके बूते भाजपा ने चुनाव जीता। राहुल गांधी केवल मुंहजबानी आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि सबूतों के साथ उसे मीडिया के सामने रख रहे हैं। अपनी तीनों प्रेस वार्ताओं में राहुल मंच पर अकेले ही थे और पत्रकारों को खुला अवसर दिया गया कि वे राहुल गांधी से प्रश्न-प्रतिप्रश्न करें, उन पर तीखे सवाल दागें, उन पर आरोप लगाएं कि कांग्रेस कई राज्यों में हार चुकी है, इसलिए ऐसे आरोप लगा रही है। यानी पत्रकारों के पास पूरा मौका था कि वे अपने सवालों से राहुल गांधी को ऐसा घेरें कि उन्हें जवाब देना मुश्किल हो जाए। लेकिन ऐसा एक ही सूरत में हो सकता है जब राहुल गांधी के पास कोई जवाब न हो, या अपने बचाव में सामने रखने के लिए तथ्य न हों। आंकड़ें, तथ्य और सबूत तीनों से लैस होकर ही राहुल गांधी ने पत्रकारों का सामना किया, इसलिए अब तक किसी ने भी उन्हें गलत साबित नहीं किया। जबकि भाजपा ने चुनाव आयोग पर लगते हर आरोप पर आगे बढ़कर सफाई दी और इसमें राहुल गांधी पर निशाना साधा कि वे संवैधानिक संस्था को बदनाम कर रहे हैं।

अब भाजपा का परोक्ष साथ देते हुए 272 लोगों का एक खुला खत सामने आया है। खुद को नागरिक समाज यानी सिविल सोसाइटी का नुमांइदा बताने वाले इस खत के हस्ताक्षरकर्ताओं में सेवानिवृत्त जज, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी शामिल हैं। खत में कहा गया कि चुनाव आयोग भारत की चुनाव प्रणाली का सबसे अहम स्तंभ है। उस पर बार-बार सवाल उठाने से जनता का भरोसा कमजोर होता है और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है। इस खुली चिठ्ठी में लिखा है कि पहले सेना, फिर न्यायपालिका और संसद पर सवाल उठाए गए, और अब चुनाव आयोग को निशाना बनाया जा रहा है। यह एक 'खतरनाक चलन' बन गया है, जिसमें चुनावी हार को छिपाने के लिए संस्थाओं की साख पर हमला किया जा रहा है। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का आरोप लगाया, उसे 'गद्दार' तक कहा और अधिकारियों को धमकाया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कोई आधिकारिक शिकायत या हलफनामा पेश नहीं किया। यह सिर्फ 'राजनीतिक नाराजगी' है, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है। जब विपक्षी पार्टियां जीतती हैं, तब चुनाव आयोग पर कोई आरोप नहीं लगता, लेकिन हार मिलते ही आयोग को दोषी ठहराना शुरू हो जाता है। यह 'राजनीतिक अवसरवाद' है। चिठ्ठी में लिखा है कि टीएन शेषन और एन गोपालस्वामी जैसे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने आयोग को बेहद मजबूत और निष्पक्ष संस्था बनाया है, इसलिए आज उस पर बेबुनियाद हमले लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक हैं। इस चिठ्ठी में अपील की गई है कि सभी भारतीय चुनाव आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास बनाए रखें। फर्जी वोटर, गैर-नागरिक और अवैध प्रवासियों को वोटर लिस्ट से बाहर रखना देश की सुरक्षा और लोकतंत्र दोनों के लिए जरूरी है।

इस खुली चिठ्ठी की सामग्री, उसकी भाषा और चयनित तरीके से राहुल गांधी पर हमला बोलना दिखा रहा है कि हस्ताक्षर करने वाले भले ही सेवानिवृत्त लोग रहे हों, लेकिन यह सब भाजपा के दिशा-निर्देश पर हो रहा है। वैसे सवाल है कि इन सेवानिवृत्त लोगों को केवल राहुल गांधी के आरोप ही क्यों दिख रहे हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाय कुरैशी, राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, परकला प्रभाकर (निर्मला सीतारमण के पति) समेत कई और लोगों ने चुनाव आयोग पर ऐसे ही आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के अलावा आरजेडी, टीएमसी, सपा, वामदल, डीएमके, शिवसेना, एनसीपी ने भी मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। तो फिर अकेले राहुल गांधी को क्यों गलत दिखाया जा रहा है कि वे देश का नुकसान कर रहे हैं। वैसे तो चुनाव आयोग को खुद इतना सक्षम होना चाहिए कि वह अपने ऊपर लग रहे आरोपों को गलत साबित करे और उनका माकूल जवाब दे। लेकिन यहां कभी भाजपा और कभी ऐसे सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे आयोग की ढाल बन कर आ रहे हैं। राहुल गांधी ने जब भी वोट चोरी के आरोप लगाए तो उन्हें कहा गया कि अपनी शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते। क्या यही बात यहां सिविल सोसाइटी के इन लोगों को नहीं कही जानी चाहिए कि आप पीआईएल दायर करिए। फिर अदालत ही तय करेगी कि किसकी रक्षा किससे करनी है। वैसे इन सेवानिवृत्त लोगों को हमारी सलाह है कि दिल्ली का प्रदूषण, ट्रेनों की बदहाली, एसआईआर के काम में कथित बोझ से आत्महत्या करते बीएलओ, आतंकवाद, घुसपैठ, असुरक्षित महिलाएं और न जाने कितने तरह की समस्याएं देश में हैं, जिनका समाधान हो तो देश का वाकई भला हो जाए। क्यों न इन्हें अपना अनुभव, शक्ति और सामर्थ्य वहां लगाना चाहिए। ताकि नौकरी के साथ भी और नौकरी के बाद भी देशसेवा का जज्बा बना रहे।

वैसे इस चिठ्ठी के बाद अब 175 प्रमुख हस्तियों ने बिहार चुनाव, चुनाव आयोग और एसआईआर को लेकर खुला पत्र लिखा है। जिसमें कहा गया, हम देश के नागरिक पूरी तरह पारदर्शी, जवाबदेह, मुक्त और निष्पक्ष चुनावों की मांग करते हैं। हम बिहार चुनाव परिणाम को धोखाधड़ी मानते हैं और विपक्ष से भी यही मांग करते हैं कि वह इन परिणामों को स्वीकार न करे।

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