राहुल वाकई आग से खेल रहे है: मगर उनके साथ अब देश खड़ा है!
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वाकई आग से खेल रहे हैं। उन्होंने जो अरुण जेटली की धमकी की बात कही है यह वही साल 2019 था जब राहुल, सोनिया गांधी, प्रियंका की एसपीजी सुरक्षा व्यवस्था वापस ली गई थी;
- शकील अख्तर
टैरिफ 7 अगस्त से लागू होने वाला है। जनता को मतलब ही नहीं मालूम। अमेरिका जाने वाला गारमेंट, दूसरी चीजें 25 प्रतिशत टैक्स देने के बाद वहां व्यापारी, उद्योगपति पहुंचा पाएगा? उसका कहना है कि वह दूसरे देशों से जो यही सामान कम कीमतों पर अमेरिका भेजेंगे वह कंपीट ( मुकाबला) कर ही नहीं पाएगा। उत्पादन कम हो जाएगा। मजदूर, कर्मचारियों की छंटनी होगी।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वाकई आग से खेल रहे हैं। उन्होंने जो अरुण जेटली की धमकी की बात कही है यह वही साल 2019 था जब राहुल, सोनिया गांधी, प्रियंका की एसपीजी सुरक्षा व्यवस्था वापस ली गई थी। प्रधानमंत्री मोदी के लिए राहुल सबसे बड़ी चुनौती हैं। ऐसे ही लाखों
करोड़ रुपया उनकी छवि खराब करने के लिए खर्च नहीं किया गया। और अभी भी किया जा रहा है। लेकिन अब असर नहीं हो रहा। कारण? राहुल का निरंतर लड़ने रहना, जनता के सवाल उठाते रहना और आरोपों, मुकदमों से विचलित नहीं होना है और इसकी वजह जो राहुल बताते हैं सही है।
परिवार ने यही सिखाया है। राहुल के शब्दों में बुजदिलों से नहीं डरना। यहां से आप समझ सकते हैं कि मोदी, भाजपा, गोदी मीडिया भक्त सब क्यों रात-दिन परिवार को कोसते रहते हैं। परिवार की बहादुरी की परंपराएं उन्हें सबसे ज्यादा प्रस्टेशन ( कुंठा) देती हैं। इसका कोई इलाज नहीं है।
प्रसिद्ध लेखक सरदार पूर्ण सिंह ने अपने बहुचर्चित निबंध 'सच्ची वीरता' में लिखा है कि वीरता की कभी नकल नहीं हो सकती। वीरता को बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते। वीरता तो अंदर की चीज है। यह वह असाधारण गुण है जो या तो होता है या नहीं होता। उन्होंने बहुत उदाहरण दिए हैं। इतिहास से। लंबा निबंध है। अगर देश में वीरता के गुण फिर से विकसित करना हैं तो
पढ़ना चाहिए। यह कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होता है और वीर नेतृत्व से जनता में प्रवाहित होता है।
सरदार पूर्ण सिंह ने यह भी लिखा है कि 'हर बार दिखावे और नाम की खातिर छाती ठोककर आगे बढ़ना और फिर पीछे हटना पहले दरजे की बुजदिली है।' राहुल की वीरता ही मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब है। वे लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज देकर कहते हैं कहो ट्रंप को झूठा! मोदी नहीं बोल पाते। वे जनरलाइज ( सरलीकरण) कर के कहते हैं किसी ने सीज फायर नहीं करवाया। यह किसी क्या होता है? क्या नेपाल और श्रीलंका करवा रहे थे।
'किसी' की तरह ही मोदी ने कहा था 'कोई!' याद है ना! न कोई घुसा है न कोई है। राहुल ने उस समय भी प्रधानमंत्री से बहुत सवाल पूछे थे। मगर जवाब किसी का नहीं मिला।
मोदी जी के भाषणों से जनता भ्रमित हो सकती है मगर राहुल नहीं। और राहुल क्या अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी कोई उनकी बातों पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। दुनिया भर में डेलिगेशन पहुंचाए। वापस आने पर उन्हें डिनर पर बुलाया। खूब फोटो शूट हुए। खासतौर से कांग्रेस के बिना पार्टी से पूछे गए हुए नेताओं के साथ। उसी को विदेश नीति समझ लिया। जैसे केरल में अपने एक कार्यक्रम में शशि थरूर को देखकर कहा था कि अब कांग्रेस की रातों की नींद गायब हो जाएगी।
कांग्रेस की तो हुई नहीं। देश की जरूर हो गई। ट्रंप ने 25 प्रतिशत टैरिफ ठोक दिया। और फिर अपमानजनक तरीके से कहा कि पेनल्टी और लगाऊंगा। वह होता कौन है एक स्वतंत्र सार्वभौमिक देश पर जुर्माना लगाने वाला? मगर
प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला। हम किस से क्या खरीदें क्या बेचें? इसका फैसला अब अमेरिका करेगा? क्या दिन ला दिए! और फिर इस अपमान से भी दिल नहीं भरा तो भारत की अर्थव्यवस्था को डेड (मृत ) बता दिया। कहा दफन हो जाओ। इससे बड़ा अपमान और क्या होगा। मगर फिर भी मोदी नहीं बोले।
क्या इससे जनता को फर्क नहीं पड़ रहा? पड़ रहा है मगर स्लो। क्योंकि उसे पूरी बात बताई ही नहीं जा रही। मीडिया पूरा मोदी के प्रभाव में है।
ऐसा नहीं है कि देश में कोई वैकल्पिक मीडिया नहीं है। मगर कांग्रेस भी उसी गोदी मीडिया की खुशामद करने में लगा रहता है जो रोज उसे गालियां देता है। वह कहते हैं ना गुलाम पहले डर से फिर उसे प्रेम हो जाता है मालिकों में से एक उससे जो उसे सबसे ज्यादा गालियां देता है। कांग्रेस के नेता गालियां भी सुनते हैं और मीडिया को खुश करने की कोशिशों में भी लगे रहते हैं।
खैर तो जनता के पास केवल मोदी जी के भाषण पहुंचते हैं पाताल से ढूंढ लाऊंगा, गोली का जवाब गोले से दूंगा। यह कर दूंगा-वह कर दूंगा। मगर ट्रंप को जवाब नहीं दूंगा। चीन का नाम नहीं लूंगा।
टैरिफ 7 अगस्त से लागू होने वाला है। जनता को मतलब ही नहीं मालूम। अमेरिका जाने वाला गारमेंट, दूसरी चीजें 25 प्रतिशत टैक्स देने के बाद वहां व्यापारी, उद्योगपति पहुंचा पाएगा? उसका कहना है कि वह दूसरे देशों से जो यही सामान कम कीमतों पर अमेरिका भेजेंगे वह कंपीट ( मुकाबला) कर ही नहीं पाएगा। उत्पादन कम हो जाएगा। मजदूर, कर्मचारियों की छंटनी होगी।
वैसे ही बेरोजगारी का बुरा हाल है और बढ़ेगी। मगर इन सब पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। वह सिर्फ वोट की राजनीति पर ध्यान केन्द्रित किए हुए है।
एक देश ने पाकिस्तान की आलोचना नहीं की। लेकिन उन्हें जनता को भरमाना आता है। इसी दम पर की मीडिया उसी कहानी को आगे बढ़ाएगा। सरकार कहती है आतंकवाद की सबने की। अरे आतंकवाद की तो खुद पाकिस्तान भी करता है। मगर आतंकवाद फैला कौन रहा है यह एक देश कहने को तैयार नहीं है। विदेश नीति,आर्थिक नीति सब फेल। मगर भाषणों पर सरकार चल रही है।
देश अंदर से खोखला होता चला जा रहा है। मालूम सबको है। बीजेपी आरएसएस के नेताओं को भी मगर बोल कोई नहीं पा रहा। केवल एक अकेला राहुल गांधी लगातार बोल रहा है। हिम्मत करके बोल रहा है। सड़क पर निकल कर बोल रहा है।
गोदी मीडिया से प्रचार करवाया जाता है कि सड़क पर क्यों नहीं आते। पिछले 11 साल में राहुल से ज्यादा कोई सड़क पर रहा है? दो बार पूरे देश की सड़कें नाप दीं। पहले दक्षिण से उत्तर और फिर पूर्व से पश्चिम। और इसके अलावा हाथरस से लेकर मणिपुर, लद्दाख, लखीमपुर हर जगह राहुल पहुंचे। मगर मीडिया दिखाता नहीं उल्टा यह सवाल और करता है कि सड़क पर क्यों नहीं आते?
यह बिल्कुल ठीक वैसा ही जैसे अभी ट्रंप द्वारा इतना अपमान किए जाने के बाद भी विदेश यात्राओं में मोदी के दर्शन हो गए हम धन्य हो गए के वीडियो बनाए और चलाए जाते हैं। इसलिए इन सब तरफ दिखाई जा रही गुडी-गुडी परिस्थितियों में राहुल का सवाल उठाना उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ पहुंचाता है। हर कोशिश राहुल को घेरने की है। जो समस्याएं हैंं उन्हें दूर करने की नहीं। राहुल को चुप कराने की हैं।
अभी राहुल ने जेटली की कोशिश बताई। शायद कभी उन कांग्रेसी नेताओं की भी बताएंगे जिन्होंने उन्हें समझाने की कोशिश की।
राहुल को बताना चाहिए। बताना सोनिया गांधी को भी चाहिए उन्हें डराने की कोशिश कौन-कौन कांग्रेसी नेता करते रहे हैं। यह बातें अब छुपेंगी नहीं। सामने आएंगी। बेहतर है राहुल खुद कांग्रेस के नेताओं के नाम बताएं कि कैसे उनसे कहा था कि यह समय मोदी के खिलाफ बोलने
का नहीं है। और ज्यादा विरोध करने से क्या क्या नुकसान हो सकते हैं।
राहुल नहीं डरे। भाजपा के नेताओं से भी और कांग्रेस के नेताओं से भी। इसलिए अब थोड़ा परिवर्तन दिखाई देना शुरू हुआ है। देश में कई जगह साहस का संचार हो रहा है। अगर इस गति को बढ़ाना है तो थोड़ा कांग्रेस को भी कसना होगा। ढीले घोड़े पर तेज सवारी नहीं की जा सकती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)