छठ पर्व में राजनीति की घुसपैठ

पूर्वांचलियों के लिए महापर्व समान छठ पूजा चार दिनों की धूमधाम के साथ संपन्न हुई;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-10-28 21:52 GMT

पूर्वांचलियों के लिए महापर्व समान छठ पूजा चार दिनों की धूमधाम के साथ संपन्न हुई। बीते कुछ बरसों में बिहार और उत्तरप्रदेश के अलावा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में भी छठ की धूम दिखने लगी है, क्योंकि इन राज्यों में बड़ी संख्या में रोजगार, शिक्षा या व्यवसाय के लिए पूर्वांचल से लोग आकर बस गए हैं। छठ पर्व में 36 घंटे का कठिन व्रत किया जाता है और व्रतियों के अलावा पूरा परिवार स्वच्छता पर खास ध्यान देता है। इस पर्व में नदियों की महत्ता, खेती का सम्मान नए सिरे से रेखांकित किया जाता है। छठ का प्रसाद घर पर ही बनता है, और इसी का वितरण सबमें होता है। अर्घ्य देने के वक्त सूप में गन्ना, मूली, कंद, सेब, केले जैसे मौसमी फल होते हैं। इस लिहाज से देखें तो दीपावली, करवा चौथ, क्रिसमस आदि के विपरीत छठ पर्व ने अब तक बाजार को अनाधिकार प्रवेश से रोक कर रखा है। हालांकि राजनीति ने लोक आस्था के इस पर्व में अपनी घुसपैठ कर ही ली है।

हिंदी पट्टी पर भाजपा धार्मिक भावनाओं को भुनाते हुए ही अपना दबदबा बढ़ा पाई है। पहले ये भावनाएं राम मंदिर से जुड़ी हुई होती थीं, अब मंदिर बन गया है तो भाजपा ने अपनी रणनीति में हिंदू धर्म के पर्व त्योहारों को सियासत का जरिया बना लिया है। नवरात्रि पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व्रत और कन्यापूजा करते दिखते हैं। रामलीलाओं का हिस्सा बनते हैं। दीपावली पर अयोध्या में दीए जलाने का रिकार्ड बनने लगा है और अब दिल्ली जीतने के बाद यहां भी यह सिलसिला शुरु हो गया है। छठ पूजा पर भी दिल्ली में हलचल रहती ही थी, लेकिन इस बार बिहार चुनाव के कारण भाजपा ने मानो इसे अपना राजनैतिक पर्व मनाने के लिए इस्तेमाल किया। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी अर्घ्य देते नजर आईं, ताकि पूर्वांचलियों से निकटता दिखा सकें। इस बार तो राष्ट्रपति मुर्मू के अर्घ्य देने की तस्वीरें भी सामने आईं। बिहार के नेताओं के घरों पर शुरु से छठ पूजा होती रही है। लेकिन बिहार चुनावों के कारण सोशल मीडिया पर सभी ने छठ पूजा की खूब सारी तस्वीरें डालीं, ताकि जनता को बताया जा सके कि छठी मैया से उन्होंने आशीर्वाद मांगा है।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार तस्वीरों की इस प्रतियोगिता में चूक गए। उनकी तैयारी तो पूरी थी कि दिल्ली के वासुदेव घाट पर जाकर अर्घ्य वे दें और फिर उन तस्वीरों को जनता तक पहुंचाएं। भाजपा समर्थित मीडिया के कुछ एंकर्स भी वासुदेव घाट जाकर, रेखा गुप्ता का साक्षात्कार कर यह माहौल बना चुके थे कि भाजपा सरकार के आते ही यमुना नदी साफ हो गई है। लेकिन इन्हीं खबरों के बरक्स आम आदमी पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज और कुछ पत्रकारों ने यमुना नदी की सफाई की पोल खोल दी, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री मोदी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने और बिहार चुनाव से ठीक पहले छठी मईया के नाम पर भावनाओं को भुनाने का मौका नहीं मिला। भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के आने को लेकर कई जगह पोस्टर-बैनर लगाए थे। खुद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इस अवसर के इंतजार में थीं कि श्री मोदी वासुदेव घाट पर डुबकी लगाते तो हाईकमान के सामने उनके अंक कुछ और बढ़ जाते। लेकिन मीडिया के एक हिस्से ने पड़ताल कर यह सच जनता के सामने ला दिया कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक नकली यमुना बनाई गई है और उसमें साफ पानी लाकर डाला गया है। कुछ स्वतंत्र यूट्यूबर्स ने वीडियो के जरिए दिखाया कि सोनिया विहार से पानी की पाइपलाइन लाकर उसमें गंगा का पानी डाला गया। यही बात आप नेता सौरभ भारद्वाज भी कई दिन पहले से बता रहे थे।

भाजपा नेताओं ने दावा किया था कि दिल्ली में भाजपा सरकार ने यमुना को छठ पर खासतौर से साफ कराया है। लेकिन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पल्ला को छोड़कर शहर के अधिकांश हिस्सों में यमुना का पानी स्नान के लिए अयोग्य है। नदी में अमोनिया और जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर उच्च है, जो गंभीर जैविक प्रदूषण का संकेत देता है। बेहतर व्यवस्थाओं के दावों के बावजूद, नदी की स्थिति बिहार अभी भी प्रदूषित ही बनी हुई है। आप नेता सौरभ भाद्वाज ने यह दावा भी किया कि यमुना नदी में गंदगी के कारण बने झाग को दबाने के लिए उसी रसायन का छिड़काव किया गया, जिसका विरोध केजरीवाल सरकार के समय भाजपा के लोग किया करते थे। आप ने सोशल मीडिया पोस्ट्स में आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री का ख्याल रखने के लिए फिल्टर्ड पानी की आपूर्ति अलग से की गई, लेकिन गंदगी से भरी यमुना के जल से लोगों की जान पर जो आफत आ रही है, उसका ख्याल भाजपा सरकार को नहीं है।

इन आरोपों में दम है, क्योंकि यमुना नदी बरसों बरस से प्रदूषित हो रही है और उसे साफ करने के गंभीर प्रयास सिरे से नदारद हैं। इसमें जनजागरुकता का अभाव तो है ही, क्योंकि नदियों, तालाबों, कुंओं, बावड़ियों समेत तमाम जलस्रोतों का रखरखाव समाज ने करना छोड़ दिया है। इसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी है कि वही इन्हें ठीक करेगी। हालांकि बाढ़ या सूखे जैसे हालात में जनता ही नुकसान उठाती है। वहीं राजनैतिक दल तो इसमें भी मुनाफा कमा लेते हैं, उनके लिए प्रदूषण विरोधी दलों को घेरने का एक जरिया ही है। इसे खत्म करने में अगर दलों की दिलचस्पी होती तो पहले कांग्रेस का शासन, फिर आप का शासन और अब भाजपा का शासन, किसी न किसी शासन में यमुना नदी साफ होती हुई दिखाई पड़ती। इसलिए अब सरकार के स्वच्छता वाले झांसे में न पड़कर लोग खुद नदी, हवा आदि की सुध लें।

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