नीतीश और भाजपा का नकाब खिंच गया

बिहार में 15 दिसंबर को एक ऐसी घटना घटी जिसने महिला अस्मिता की रक्षा के गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-12-17 22:00 GMT

बिहार में 15 दिसंबर को एक ऐसी घटना घटी जिसने महिला अस्मिता की रक्षा के गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र दे रहे थे। इस दौरान अपना नियुक्ति पत्र लेने आई महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब उन्होंने सबके सामने मंच पर ही खींच लिया। इस घटना का वीडियो भी सामने आया और कोई संदेह नहीं कि नीतीश कुमार ने पूरे होशो हवास में हिजाब पहनी महिला का अपमान किया। हिजाब खींचने की अभद्रता की। एक पल को इस घटना को हिंदू-मुस्लिम नजरिए से हटकर देखें तो यह वैसा ही कुकृत्य है मानो किसी महिला का घूंघट उसकी अनुमति के बिना उठा देना या किसी का दुपट्टा खींच देना। हद तो यह है कि इस घटना पर माफी मांगना तो दूर नीतीश कुमार या उनकी पार्टी जेडीयू या उनकी सहयोगी भाजपा ने अब तक इस पर अफसोस तक नहीं जताया है। बल्कि इसे मामूली घटना बताकर चलता किया जा रहा है। मुख्यमंत्री को बचाने के लिए कहा जा रहा है कि वे यह देख रहे थे कि जिसे नियुक्ति पत्र मिल रहा है, वह सही व्यक्ति है या नहीं। इससे ज्यादा लचर तर्क नहीं हो सकता, क्योंकि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जाने से पहले बाकायदा कई स्तरों पर सुरक्षा होती है, पहचान पत्र देखे जाते हैं और जिन्हें नियुक्ति पत्र मिलना था, वो कौन हैं, इसकी भी शिनाख्त हुई होगी। अगर नीतीश कुमार को फिर भी पड़ताल करनी थी, तो वे नुसरत परवीन को हिजाब हटाने कह सकते थे, लेकिन खुद बढ़कर हिजाब खींचना अक्षम्य है।

कांग्रेस ने तो इस मुद्दे पर नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग की है। राजद,पीडीपी, सपा समेत कई दल नीतीश कुमार की आलोचना कर रहे हैं। जबकि अखिल भारतीय मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगा है, साथ ही न्यायपालिका को इस मामले में दखल देने की अपील की है।

दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश में केबिनेट मंत्री संजय निषाद ने तो नीतीश कुमार के बचाव में कह दिया कि बुर्का उतरने पर इतना बवाल हो गया, अगर कहीं और छू देते तो क्या होता। वो भी तो आदमी ही है ना। संजय निषाद के इस बयान पर भी विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई है। समाजवादी पार्टी की नेता सुमैया राणा ने इस टिप्पणी को आपत्तिजनक बताते हुए लखनऊ के कैसरबाग थाने में नीतीश कुमार और संजय निषाद दोनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी। जिसके बाद संजय निषाद का कहना है कि उनकी बात को गलत संदर्भों में लिया गया। वे तर्क दे रहे हैं कि भाषा पर पूर्वांचल के प्रभाव से उनकी बात को गलत समझ लिया गया। मान लें कि संजय निषाद को ठीक तरीके से नहीं समझा गया, लेकिन हिजाब खींचने को उन्होंने गलत नहीं माना, यह तो जाहिर ही है।

संजय निषाद ने कहा है कि इस मामले पर राजनीति की जा रही है। नीतीश कुमार के काम को जनता जानती और समझती है। जनता बार-बार उन्हें समर्थन दे रही है और मुख्यमंत्री बना रही है। उन्होंने जो काम किया है, वह जनता के सामने है। आगे भी जनता ही तय करेगी कि उन्हें समर्थन देना है या नहीं। यानी महिला के अपमान पर आपत्ति जताने को राजनीति कहा जा रहा है। और बार-बार जीतने या 10 बार मुख्यमंत्री बन जाने का यह अर्थ कतई नहीं है कि नीतीश कुमार को किसी के भी साथ, कैसा भी व्यवहार करने की छूट मिली है। जीत किसी को भी मर्यादा भंग करने की इजाज़त नहीं देती।

नीतीश कुमार ने पहली बार महिला विरोधी कार्य नहीं किया है। विधानसभा के भीतर उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की अभद्र तरीके से आलोचना की थी, इससे पहले जब वे राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री थे, तब नवंबर 2023 में राज्य विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण और महिला शिक्षा के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने विवादित बयान दिया था। उस समय उनके विरोध में बैठी भाजपा ने नीतीश कुमार के बयान को शर्मनाक और भद्दा बताते हुए माफी की मांग की थी, लेकिन आज भाजपा को नीतीश कुमार की हरकत पर कोई शर्मिंदगी नहीं है। महिला आयोग भी इस मुद्दे पर चुप है। कम से कम इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राष्ट्रीय महिला आयोग या राज्य महिला आयोग ने नीतीश कुमार पर कोई एक्शन नहीं लिया है।

वहीं इस घटना की पीड़ित डॉक्टर नुसरत ने सरकारी नौकरी न करने का फैसला किया है। और घटना के अगले दिन ही वे बिहार छोड़कर कोलकाता चली गई हैं। उनके भाई ने बताया कि, 'उसने नौकरी न करने का पक्का मन बना लिया है। लेकिन, मैं और परिवार के सभी लोग उसे अलग-अलग तरीकों से मनाने की कोशिश कर रहे हैं। हम उसे यह भी समझा रहे हैं कि यह गलती किसी और की है। हमारा कहना है कि किसी और की गलती के लिए उसे क्यों बुरा महसूस करना चाहिए या तकलीफ उठानी चाहिए।Ó बता दें कि डॉक्टर नुसरत परवीन के पति एक कॉलेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के तौर पर काम करते हैं। नुसरत परवीन ने कहा कि मैं यह नहीं कह रही हूं कि मुख्यमंत्री ने जानबूझकर ऐसा किया, लेकिन जो हुआ वह मुझे अच्छा नहीं लगा। वहां बहुत सारे लोग मौजूद थे, कुछ लोग हंस भी रहे थे। एक लड़की होने के नाते वह मेरे लिए अपमान जैसा था। उन्होंने कहा कि मैंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक हिजाब में ही पढ़ाई की है। घर, बाजार या मॉल, हर जगह मैं हिजाब पहनकर जाती रही हूं और कभी ऐसी स्थिति नहीं आई। मेरे अब्बू-अम्मी ने हमेशा यही सिखाया कि हिजाब हमारी संस्कृति का हिस्सा है। मेरी गलती क्या थी, यह मुझे समझ नहीं आ रहा। उस दिन को याद करके मैं सहम जाती हूं।

इस घटना के बाद नुसरत परवीन अपना हौसला कमजोर न पड़ने दें, यही दुआ की जा सकती है। लेकिन अब बिहार के लोगों को सोचना होगा कि जीविका दीदी के नाम पर महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए डालकर भाजपा और जेडीयू ने जीत हासिल कर ली। लेकिन हिजाब प्रकरण ने इनके चेहरों से नकाब उतार दिया है।

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