ललित सुरजन की कलम से- क्षेत्रीय दलों की सीमायें
'इस समय प्रदेशों की राजनीति जिस तरह से करवटें बदल रही हैं उसकी भी सटीक विवेचना अभी देखने नहीं मिली है;
'इस समय प्रदेशों की राजनीति जिस तरह से करवटें बदल रही हैं उसकी भी सटीक विवेचना अभी देखने नहीं मिली है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी हाल में प्रदेशव्यापी अधिकार यात्रा निकाली। इस यात्रा के दौरान उन्हें जगह-जगह उग्र विरोध का सामना करना पड़ा। कई जगह पर उन्हें काले झंडे दिखाए गए और जैसी कि खबर है पुलिस ने कोई छह-सात सौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
मुझे याद आता है कि अभी चार माह पूर्व रणबीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या के बाद बिहार में जगह-जगह उपद्रव हुए थे। यह स्थिति हैरान करने वाली है। ऐसा सामान्य तौर पर माना जाता है कि नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में प्रदेश में सुशासन देने के लिए माकूल कदम उठाए थे जिसका पुरस्कार उन्हें दुबारा विजय के रूप में मिला।
मीडिया में उन्हें एक लोकप्रिय नेता के रूप में चित्रित किया जाता है, फिर ऐसा क्या हुआ कि उनके खिलाफ लोग सडक़ों पर आ गए। क्या इसके पीछे जदयू की आपसी गुटबाजी है या फिर भाजपा और जदयू के बीच दरार आ गई है या कहीं ऐसा तो नहीं है कि नीतीश विरोधी आंदोलन खड़ाकर उनके प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न भंग किया जा रहा हो।
'यह भी विचारणीय है कि यूपीए से तृणमूल के अलग हो जाने के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में क्या परिवर्तन आते हैं। विगत एक वर्ष के दौरान प्रदेश की जनता ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उग्र तेवरों और हठीलेपन को खूब देखा है। ममता बनर्जी अपनी जरा सी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पातीं; यह बात उन सबको नागवार गुजर रही है जो कल तक सीपीआईएम विरोध के चलते उनके पक्ष में खड़े थे। महाश्वेता देवी ने तो अपनी अप्रसन्नता खुलकर जाहिर की है।'
(देशबन्धु में 4 अक्टूबर 2012 को प्रकाशित)
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