ललित सुरजन की कलम से- कांग्रेस : ठोस कदम उठाने की जरूरत

'पत्रकारों और प्रोफेसरों की मानें तो कांग्रेस के सामने अब कोई भविष्य नहीं है;

Update: 2025-01-13 09:07 GMT

'पत्रकारों और प्रोफेसरों की मानें तो कांग्रेस के सामने अब कोई भविष्य नहीं है। भाजपा भी यही कह रही है। पांच में से चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की स्थिति सचमुच दुर्बल नजर आती है। इस समय कांग्रेस का यह तर्क बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा कि बारह राज्यों में उसकी सरकार है जबकि भाजपा की सिर्फ पांच में। कांग्रेस ने छह महीने पहले ही तीन विधानसभाएं भाजपा से छीनीं।

इस तथ्य को भी फिलहाल कोई गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है। यदि लोकसभा चुनाव सामने न होते तो शायद जनता को एक संतुलित राय बनाने का अवसर मिल गया होता, लेकिन अब उसके लिए समय कहां बचा है? कांग्रेस का यह तर्क भी बहुत सटीक नहीं है कि लोकसभा और विधानसभा में मतदाता की पसंद एक जैसे नहीं होती। 2009 में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे जैसे आए थे लगभग वे ही लोकसभा में दोहराए गए थे।'

'8 दिसंबर 2013 को कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पत्रकारों से मुखातिब होते हुए जोशीले शब्दों में घोषणा की थी कि वे कांग्रेस पार्टी को बदलकर रख देंगे। आज उस घोषणा को एक माह और एक सप्ताह बीत चुका है। इस बीच में कांग्रेस के युवा नेता ने ऐसा कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जिससे लगे कि कांग्रेस बदलाव के लिए तैयार है। जो स्थिति आठ दिसंबर के पहले थी वही चली आ रही है।

श्री गांधी को कांग्रेस की चाहे जितनी चिंता हो, लेकिन देश और प्रदेश में पार्टी के जो वरिष्ठ नेता हैं उनके चेहरे पर शिकन भी दिखाई नहीं देती। वे सब पहले की तरह अपने गुणा-भाग में लगे हुए हैं। इसका एक शोचनीय उदाहरण मध्यप्रदेश में देखने आया जहां नयी विधानसभा का पहला सत्र शुरू होते तक कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पाई।

छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की जोड़-तोड़ देखने मिली। नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है। दिल्ली में जरूर कांग्रेस ने यह समझदारी दिखलाई कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का रास्ता प्रशस्त किया, लेकिन मुंबई में संजय निरूपम जैसे वाचाल और प्रिया दत्त जैसी गंभीर नेता दोनों एक स्वर में 'आप' से प्रेरणा ग्रहण करने की बात कर रहे हैं, उसे एक प्रहसन ही माना जाना चाहिए।'

(देशबन्धु में 16 जनवरी 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/01/blog-post_15.html

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