ललित सुरजन की कलम से- छत्तीसगढ़ : राजनीति में माटीपुत्र (और पुत्रियां)

'अपने और पराए, हम और वे, स्थानीय और आव्रजक जैसी द्वंद्वात्मक श्रेणियां न तो छत्तीसगढ़ के लिए नई हैं, न भारत के लिए और न दुनिया के लिए;

Update: 2025-03-04 03:11 GMT

'अपने और पराए, हम और वे, स्थानीय और आव्रजक जैसी द्वंद्वात्मक श्रेणियां न तो छत्तीसगढ़ के लिए नई हैं, न भारत के लिए और न दुनिया के लिए। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जब अपनी राजनैतिक वैधता स्थापित करने के लिए राजसत्ता द्वारा इन विभाजक श्रेणियों का उपयोग किया गया है

। रंगभेद, नस्लभेद आदि इस सोच की ही उपज हैं। इजरायल और पाकिस्तान का निर्माण ऐसी भावनाओं को उभारने से ही संभव हुआ। अमेरिकी जनतंत्र में बैरी गोल्डवाटर जैसे नस्लवादी नेता हुए तो ब्रिटिश जनतंत्र में इनॉक पॉवेल।हमारे देश में भी ऐसा विभेद पैदा कर राजनैतिक लाभ उठाने वाली शक्तियां कम नहीं हैं।

एक समय तमिलनाडु में तमिल श्रेष्ठता का नारा गूंजा, तो असम में 'बहिरागत' के खिलाफ लंबे समय तक आंदोलन चलता रहा, जो आज भी नए-नए रूपों में प्रकट होते रहता है। महाराष्ट्र में शिवसेना का गठन और विकास इसी भावना पर हुआ।

(देशबंधु में 27 जून 2013 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/06/blog-post_26.html

Full View

Tags:    

Similar News