केवल ही मैन नहीं थे धर्मेन्द्र

Update: 2025-11-24 20:30 GMT

लाखों सितारे हो सकते हैं, लेकिन धर्मेंद्र सिफ़र् एक ही हो सकता है। राजीव विजयकर की किताब 'धर्मेंद्र- नॉट जस्ट ए ही-मैन' के पुस्तक विवरण की यह पंक्ति धर्मेन्द्र के निजी और फिल्मी करियर पर बिलकुल सटीक बैठती है। विजयकर की किताब का शीर्षक 'धर्मेंद्र- नॉट जस्ट ए ही-मैन' भी सर्वथा उचित ही है। 24 नवंबर को 89 बरस की उम्र में धर्मेन्द्र ने आखिरी सांस ली, तो देश भर में दुख की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर तमाम क्षेत्रों के दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। मीडिया में हिंदी फिल्मों के ही मैन के तौर पर धर्मेन्द्र को याद किया जा रहा है। हालांकि आज जिस तरह का एक्शन और स्टंट कई फिल्म कलाकार करते हैं, वैसा धर्मेन्द्र ने कभी नहीं किया। लेकिन 1966 में आई फूल और पत्थर फिल्म के एक दृश्य में जब गुंडे, शराबी के रोल में धर्मेंद्र एक भिखारी और विधवा पर अपनी शर्ट उतार कर पहना देते हैं, तो लोगों ने उनकी कसरती काया को पसंद किया और एक्शन करने के कारण ही मैन का तमगा उनके साथ ताजिंदगी चस्पां हो गया।

हालांकि कसरती कद-काठी वाले धर्मेन्द्र के चेहरे पर ऐसी सादगी, भोलापन और रूमानियत थी कि लोग उनकी सुंदरता के भी कायल रहे। करीब 60 सालों के फिल्मी करियर में धर्मेन्द्र ने बंदिनी, सत्यकाम, अनुपमा जैसी आदर्शवादी फिल्में कीं तो चुपके-चुपके और शोले में अपने अभिनय की छाप ऐसे छोड़ी कि उनका दोहराव कोई और कलाकार कर ही नहीं पाया। धर्मेन्द्र से पहले राजकपूर, दिलीप कुमार, देवानंद, अशोक कुमार जैसे सितारों की तूती बोलती थी, तो उनके साथ-साथ राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार बने। बाद में शाहरुख खान, सलमान खान के दीवाने फैंस तैयार हुए, लेकिन धर्मेन्द्र का जलवा शुरु से लेकर आखिर तक कायम ही रहा। हालांकि हकीकत, ममता, शोले, चुपके-चुपके, ड्रीमगर्ल, सीता और गीता जैसी फिल्में करने के बाद धर्मेन्द्र ने बी ग्रेड की भी कई फिल्में कीं, जिनमें न अच्छी कहानी थी, न ढंग का अभिनय था और दर्शक धर्मेन्द्र से निराश भी हुए, लेकिन फिर भी दिलों में वे ऐसी पैठ बना चुके थे, जो वक्त के साथ कमजोर नहीं पड़ी।

लुधियाना के नरसाली गांव में एक गणित शिक्षक के घर जन्मे धर्मेन्द्र का मुंबई तक का सफर किसी फिल्मी कहानी जैसा ही है, जिसमें ख्वाब, शोहरत, प्रेम प्रसंग, दिल टूटना, जिंदगी की दिशा बदल जाना जैसे सारे मसाले हैं। मां-बाप के घर पर धर्मेन्द्र की पहचान धरम सिंह देओल के रूप में थी। 10वीं कक्षा में धर्मेन्द्र ने 1948 में आई दिलीप कुमार की फ़िल्म शहीद देखी। उस फ़िल्म और दिलीप कुमार ने उनके दिल पर ऐसा जादू किया कि उन्होंने अभिनेता बनने की ठान ली। दस साल बाद 1958 में फ़िल्मफ़ेयर मैगज़ीन ने एक टैलेंट हंट की घोषणा की जिसमें बिमल रॉय और गुरुदत्त जैसे दिग्गज शामिल थे। धर्मेन्द्र ने इसमें हिस्सा लिया, और यहीं से मुंबई और उनके अटूट रिश्ते की शुरुआत हो गई। धर्मेन्द्र ने बंदिनी फिल्म में काम शुरु किया, लेकिन अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे' के लिए भी उन्हें इस बीच लिया गया। पैसों की तंगी के बीच धर्मेन्द्र ने इस फिल्म को पूरा किया और उसके बाद उनका फिल्मी सफर अनवरत जारी रहा, जो अब उनकी मौत के बाद भी कायम रहेगा। अगले महीने की 25 तारीख को धर्मेन्द्र की फिल्म इक्कीस रिलीज़ हो रही है। यानी दर्शक अपने चहेते अभिनेता को मौत के एक महीने बाद पर्दे पर सक्रिय देखेंगे। जिंदगी कभी-कभी फिल्मों की तरह ही जादुई हो जाती है।

यूं तो धर्मेन्द्र ने एक से बढ़कर एक यादगार किरदार निभाए हैं, लेकिन शोले में टंकी पर चढ़ जाने वाला दृश्य और धर्मेन्द्र का कहना कि- 'वैन आई डेड, पुलिस कमिंग..पुलिस कमिंग, बुढ़िया गोइंग जेल.. इन जेल बुढ़िया चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड पीसिंग' ऐसा है कि उसे जितनी बार देखो, चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। इसी तरह चुपके-चुपके में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर परिमल जब अपने साढ़ू भाई बने ओमप्रकाश को ड्राइवर बनकर तंग करते हैं, वह भी लाजवाब किरदार है। बिमल रॉय, हृषिकेश मुखर्जी, चेतन आनंद जैसे निर्देशकों ने धर्मेन्द्र के अंदर के कलाकार को खुल कर अभिव्यक्त होने का मौका दिया। 1971 में हृषिकेश मुखर्जी ने फिल्म गुड्डी बनाई थी, इसमें धर्मेन्द्र बतौर धर्मेन्द्र ही आए थे। सहज हास्य से भरपूर इस फिल्म में किशोर-किशोरियों पर ग्लैमर के प्रभाव जैसे गंभीर विषय को बेहद सधे हुए तरीके से दर्शाया गया है।

धर्मेन्द्र ने उम्र के 9वें दशक में आकर भी जो सक्रियता बनाए रखी, वह काबिले तारीफ है। उम्र को वे महज संख्या मानते थे। शायद उनकी ग्रामीण जड़ों का असर था कि वे लोकप्रियता की बुलंदियों को छूने के बावजूद जमीन से जुड़े ही रहे। फिल्मी दुनिया के बहुत से लोगों की तरह उनके जीवन में भी कई विवाद खड़े हुए। 19 बरस की उम्र में प्रकाश कौर से शादी और चार बच्चे होने के बावजूद उन्होंने अपनी सहयोगी कलाकार हेमा मालिनी से प्रेम किया और फिर उनसे शादी करने के लिए इस्लाम अपनाया, क्योंकि प्रकाश कौर ने उन्हें तलाक देने से इन्कार कर दिया था। दूसरी शादी से धर्मेन्द्र को दो बेटियां हुईं। उनके दोनों बेटे सनी और बॉबी देओल के बाद उनके पोते ने भी फिल्मी दुनिया में कदम रखा। ईशा देओल भी फिल्मों में आईं, हालांकि धर्मेन्द्र अपनी बेटियों को फिल्म जगत में नहीं आने देना चाहते थे। शायद वे इसके स्याह पक्ष से उन्हें दूर रखना चाहते थे।

धर्मेन्द्र ने एक बार राजनीति में भी हाथ आजमाया। अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर उन्होंने बीकानेर से लोक सभा चुनाव लड़ा और जीता भी। हालांकि सफल राजनेता की कसौटी पर वे खरे नहीं उतर सके। इसलिए राजनीति में आने को वे बड़ी भूल मानते थे। दरअसल अभिनय के अलावा उर्दू और शायरी से प्यार करने वाले धर्मेंद्र राजनीति के गणित में कमजोर रह गए।

एक सफल जीवन, शानदार करियर, शोहरत, पैसा और अच्छी उम्र लेकर धर्मेन्द्र ने इस दुनिया को अलविदा कहा है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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