एसआईआर की समय सीमा में संशोधन

देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम यानी एसआईआर की समय सीमा एक सप्ताह के लिए बढ़ा दी गई है;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-12-02 00:44 GMT

देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम यानी एसआईआर की समय सीमा एक सप्ताह के लिए बढ़ा दी गई है। पहले निर्वाचन आयोग ने इसके लिए अंतिम तारीख 4 दिसम्बर रखी थी, लेकिन अब 11 दिसम्बर तक प्रक्रिया चलेगी। आयोग ने रविवार 30 नवंबर को तीन-पेज के आदेश में यह घोषणा की है। संशोधित कार्यक्रम के मुताबिक अब गणना अवधि 4 दिसम्बर की बजाय 11 दिसम्बर को समाप्त होगी। मसौदा सूची का प्रकाशन 9 की जगह 16 दिसम्बर को होगा और अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 14 फरवरी को किया जाएगा।

गौरतलब है कि विपक्ष शुरु से इस सवाल को उठा रहा है कि एसआईआर करवाने की इतनी हड़बड़ी क्यों है। अगर आयोग ने इसे पूरे देश में करवाने का फैसला लिया भी है तो इसके लिए पर्याप्त मानव संसाधन, प्रशिक्षण और वक्त लिया जाना चाहिए। चंद दिनों में इतनी गहन प्रक्रिया को यूं निपटाया नहीं जा सकता। विपक्ष की यह आपत्ति तब और महत्वपूर्ण हो गई जब बूथ स्तर के अधिकारियों पर अत्यधिक दबाव के कारण यह प्रक्रिया जानलेवा तक बन गई। बीएलओ को कम समय में घर-घर जाकर इस बड़े काम को पूरा करने के लिए भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है, यह कटु सत्य है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से बीएलओ द्वारा आत्महत्या से मौतें भी सामने आई हैं।

गौरतलब है कि ज्यादातर बीएलओ स्कूल शिक्षक या सरकारी कर्मचारी हैं। एक बीएलओ को औसतन हजार से बारह सौ मतदाताओं तक पहुंचना पड़ रहा है। घर-घर जाकर फॉर्म बांटना, इक_ा करना और फिर उनका डिजिटाइजेशन करना दुसाध्य और लंबी प्रक्रिया है, जिसे पूरा करते-करते बीएलओ का दैनंदिन जीवन प्रभावित हो रहा है। बहुत से बीएलओ इस वजह से बीमार पड़ चुके हैं, किसी-किसी की मौत पर उनके परिजनों ने एसआईआर के दबाव को ही जिम्मेदार ठहराया है। कई जगहों पर आरोप है कि लक्ष्य पूरा न करने पर बीएलओ को नौकरी से निकालने, वेतन काटने या प्राथमिकी दर्ज करने की धमकियां भी मिली हैं। बंगाल में खुदकुशी करने वाली बीएलओ रिंकू तरफदार ने लिखा था कि उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण नहीं मिला। पुरानी वेबसाइट से डेटा नहीं मिला। ऑनलाइन फॉर्म जटिल प्रक्रिया है। ऐसे कुछ और प्रकरण भी सामने आए हैं। इन वजहों से प.बंगाल में तो चुनाव आयुक्त कार्यालय के बाहर धरना देने तक की नौबत आ गई।

ये सामान्य घटनाएं नहीं हैं, क्योंकि एक संवैधानिक प्रक्रिया को असामान्य तरीके से लागू किया गया है। विपक्ष का कहना है कि 2003 में भी एसआईआर हुआ था, लेकिन तब ऐसी कोई घटना नहीं हुई। अब हो रही है, तो जाहिर है व्यवस्था में कोई खामी है। विपक्ष लगातार इसे टालने या ज्यादा समय की मांग कर रहा था। अब इस पर चुनाव आयोग ने एक सप्ताह बढ़ाया है। आयोग ने समय सीमा बढ़ाने का बचाव करते हुए कहा कि यह विस्तार चुनाव अधिकारियों को मतदाताओं की मसौदा सूची प्रकाशित करने के लिए अतिरिक्त समय देने के लिए किया गया है। इसे कहते हैं रस्सी जल गई बल नहीं गए। वैसे एक सप्ताह बढ़ाना पर्याप्त नहीं है। कम से कम 3 से 5 महीने बढ़ाकर इत्मीनान से काम किया जाता तो शायद ऐसी पुख्ता मतदाता सूची तैयार होती, जिसमें गड़बड़ी की गुंजाइश नाममात्र की बचती।

ध्यान रहे कि छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, पुड्डुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप इन 12 राज्यों में एसआईआर हो रही है। जिसमें 51 करोड़ मतदाताओं के नामों, पतों, उम्र आदि की जांच हो रही है। यानी इस समय 51 करोड़ मतदाताओं का हक एसआईआर पर टिका है।

चुनाव आयोग का कहना है कि एसआईआर का उद्देश्य 'कोई योग्य मतदाता बाहर न रहे और कोई अयोग्य नाम न रहे' सुनिश्चित करना है। लेकिन विपक्षी दल इसे 'वोट चोरी' का हथियार मानते हैं। बिहार चुनाव के बाद ये आरोप और तेज हो चुके हैं। बिहार चुनाव से पहले ही एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। लेकिन बिहार चुनाव हो भी गए और सुप्रीम कोर्ट ने कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया। अब अगले चुनाव पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम हैं। और सुप्रीम कोर्ट में बस सुनवाई ही चल रही है।

इस बीच महाराष्ट्र में नगरीय निकाय चुनाव से पहले पता चला है कि मुंबई में करीब 11 लाख मतदाता डुप्लीकेट हैं। ये आंकड़े राज्य चुनाव आयोग से ही मिले हैं। जो कुल मतदाताओं का करीब 10.64प्रतिशत हिस्सा माने जा रहे हैं। इसका मतलब यही है कि विपक्ष जो आरोप लगा रहा है, वो बेबुनियाद नहीं हैं। महाराष्ट्र चुनावों में फर्जी मतदाताओं की वजह से विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी की हार हुई, यह कारण भी विपक्ष ने गिनाया। फिलहाल महाराष्ट्र में तो एसआईआर नहीं हो रहा है, लेकिन चुनाव आयोग को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि लोकसभा चुनावों से पहले एसआईआर क्यों नहीं करवाया गया। 2003 के बाद अब 22 साल बाद इस प्रक्रिया को क्यों कराया जा रहा है और इसकी आपत्तियों को ठीक से सुना क्यों नहीं जा रहा।

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