इन्जीनियर्स डे पर उठी अभियन्ताओं को उचित सम्मान और अधिकार देने की माँग
बिजली इन्जीनियरों ने इन्जीनियर्स डे पर कहा कि अभियन्त्रण सेवाओं में अभियंताओं को उचित सम्मान और अधिकार दिए बिना इन्जीनियर्स डे समारोह मात्र रस्मअदायगी है;
लखनऊ। बिजली इन्जीनियरों ने इन्जीनियर्स डे पर कहा कि अभियन्त्रण सेवाओं में अभियंताओं को उचित सम्मान और अधिकार दिए बिना इन्जीनियर्स डे समारोह मात्र रस्मअदायगी है और सही मायने में विकास हेतुइसमें गुणात्मक बदलाव लाने की जरूरत है।
भारत रत्न एम. विश्वेसरैया के जन्म दिन 15 सितम्बर को सारे देश में इन्जीनियर्स डेके रूप में मनाया जाता है।
इस अवसर पर ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे, उप्रराविप अभियंता संघ के अध्यक्ष जी के मिश्र,महासचिव राजीव सिंह ने प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ से माँग की कि राज्य की इन्जीनियरिंग सेवाओं के प्रमुख सचिव और सी एम डी जैसे पदों पर विशेषज्ञ अभियंताओं की तैनाती की जाए तभी सही मायने में प्रदेश का विकास तीव्र गति से हो सकेगा।
उन्होंने 1970 के दशक का उदाहरण देते हुए कहा कि1970 के दशक में सरकारों ने अभियंत्रण सेवाओं और अभियंताओं के महत्त्व को समझा और इंजीनियरिंग विभागों का पूर्ण दायित्व योग्य व विशेषज्ञ अभियंताओं को दिया गया।बिजली और सिंचाई दो ऐसे प्रमुख विभाग थे जिनके प्रमुख सचिव पद पर विभाग के वरिष्ठ अभियंताओं को तैनात किया गया और अच्छे परिणाम आने शुरू हो गए।देश में सबसे पहले 110 मेगावॉट क्षमता की थर्मल इकाई (ओबरा में 1979 में ) के नियोजन,डिजाइन,निर्माण और संचालन का श्रेय उप्र के बिजली अभियंताओं के नाम है।
देश के प्रथम भूमिगत हाइडिल पावर स्टेशन का निर्माण व संचालन छिबरो (डाक पत्थर - अब उत्तराखंड ) में उप्र के अभियंताओं ने ही किया।देश में सर्वप्रथम 400 के वी पारेषण लाइन और उपकेन्द्र के नियोजन,निर्माण और संचालन का कार्य उप्र के इंजीनियरों ने ही किया। 765 के वी पारेषण लाइन और उपकेंद्र भी देश में सबसे पहले उप्र के इंजीनियरों ने ही संचालित किया।पी डब्लू डी से बने नए निगमों उप्र सेतु निगम और उप्र निर्माण निगम ने न केवल देश के अन्य प्रांतों अपितु विदेश में भी प्रतिस्पर्धात्मक बिडिंग के जरिये नए प्रोजेक्ट हासिल कियेऔर रिकार्ड समय में उनका सफल निर्माण कर प्रदेश का गौरव बढ़ाया।
ग्रामीण विद्युतीकरण को गति मिलने से ही उप्र के किसान की वर्षा पर निर्भर रहने की विवशता काफी कुछ कम हुई।प्रदेश भर में फैला हुआ सड़कों का विस्तृत जाल जिससे गाँव, कस्बों और शहरों से जुड़ते गए, अभियंताओं की ही देनहैं।लेकिन 70 के दशक की इन सफलताओं के बावजूद अभियंताओं को हटाकर इंजीनियरिंग विभागों की बागडोर पुनः नौकरशाहों को दे दी गयी और अभियंताओं को पुनः उन्ही के विभाग में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है।
आज हालात बहुत खराब हो चुके हैं। 30 - 35 साल की नौकरी के अनुभवी अभियंता के बॉस और सुपर बॉस बहुत कम सर्विस के ऐसे नौकरशाह बन रहे हैं जिन्हें न तो विभाग के विषय का ज्ञान होता है और न ही वह किसी जटिल तकनीकी समस्या का कोई समाधान ही बता सकते हैं।दुष्परिणाम सामने है।कभी देश में अग्रणी रहने वाला उत्तर प्रदेश अब प्रगति की दौड़ में बिहार और उड़ीसा जैसे प्रांतों से भी पिछड़ता जा रहा है।
उन्होंने बताया कि 1969 में केंद्र सरकार द्वारा गठित प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में साफ़ तौर पर अनुशंसा की गयी थी कि इंजीनियरिंग विभागों का कार्य पूरी तरह विशेषज्ञ इंजीनियरों को ही दिया जाये और इंजीनियरों को सामान्य सेवाओं की तुलना में अधिक वेतन दिया जाये। 1974 में उप्र में गठित बी डी सानवाल कमेटी ने भी इंजीनियरों को अधिक वेतन देने और सचिव बनाये जाने की सिफारिश की किन्तु दोनों रिपोर्टोंपर कोई अमल होना तो दूर की बात है उलटे अभियंत्रण सेवाओं और अभियंताओं की निरंतर हो रही उपेक्षा ने आज प्रदेश की प्रगति के चक्के को ही जाम कर दिया है।
देश के स्वतंत्र होने से पहले तीन प्रमुख सेवायें थीं| आई सी एस,आई पी और आई एस ई।इनमे से आई सी एस अब आई ए एस के नाम से और आई पी अब आई पी एस के नाम से चल रही है किंत आई एस ई अर्थात इंडियन सर्विसऑफ इंजीनियर्स की जरूरत नहीं समझी गयी।यदि इंजीनियरिंग सेवाओं और इंजीनियरों की देश के विकास में महती भूमिका है तो अखिल भारतीय इंजीनियरिंग सेवा का पुनर्गठन और भी आवश्यक है,यह स्वीकार करना चाहिए।