प्रख्यात कवि चंद्रकांत देवताले पर शोक सभा का आयोजन
'चंद्रकांत देवताले हिंदी के सबसे निडर और प्रतिबद्ध कवि थे। निम्न मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के संघर्षों के चित्रण में वे त्रिलोचन और नागार्जुन से भी आगे ठहरते हैं;
नई दिल्ली। 'चंद्रकांत देवताले हिंदी के सबसे निडर और प्रतिबद्ध कवि थे। निम्न मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के संघर्षों के चित्रण में वे त्रिलोचन और नागार्जुन से भी आगे ठहरते हैं। स्त्री पुरुष संबंधों और गृहस्थी पर सबसे मार्मिक कविताएं उन्होंने ही लिखी हैं’।
साहित्य अकादेमी द्वारा चंद्रकांत देवताले पर आयोजित शोक सभा में वरिष्ठ कवि विष्णु खरे ने यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उनकी कविताएं हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं और हिंदी पाठक, समाज और इसके कवियों को जोड़कर रखने का बहुत बड़ा काम देवताले ने किया है।
शोक सभा के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने शोक संदेश प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनके लेखन और व्यक्तित्व में अंतर कर पाना संभव नहीं था। युवा पीढ़ी से उनका सघन संवाद था। इसके बाद उनकी स्मृति में मौन रख कर उन्हें शृद्धांजलि दी गई।
मराठी के प्रख्यात कवि चंद्रकांत पाटिल ने उन्हें भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ कवि के रूप में याद करते हुए कहा कि वे सभी भारतीय भाषाओं की काव्य धारा को समझने वाले कवि थे। मराठी में तो वे वहीं के कवि समझे जाते थे। उन्होंने मराठी दलित कविता को लेकर गहरा अध्ययन किया था। मराठी कवियों की नई पीढ़ी उनसे बेहद प्रभावित है।
मंगलेश डबराल ने उनकी कविता 'औरत’का जिक्र करते हुए कहा कि यह हिंदी कविता में स्त्री विमर्श का आरंभ था, जिसे बाद में अन्य लोगों ने अलग-अलग तरीके से आगे बढ़ाया। उनकी कविता में मां, पिता, पत्नी, बेटी बिल्कुल नायाब तरीके से प्रस्तुत हुए हैं।
लीलाधर मंडलोई ने उनकी 'लक्कड़बग्घा हँस रहा है’कविता का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपने समय से बहुत बाद की छवियों को बहुत पहले पहचान लिया था। अपनी कविता में वे दुनिया के सबसे गरीब आदमी की पहचान करते हैं। वे स्त्री के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करने वाले अप्रतिम कवि हैं।
शोक सभा में नूर जहीर, अरुण माहेश्वरी, दिविक रमेश, भारत भारद्वाज, विनोद तिवारी, मदन कश्यप, रवि भूषण, डॉ. सादिक, अशोक कुमार पांडेय, सुजाता आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। शोक सभा में हिंदी जगत के प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार एवं उनके परिवार के सदस्य उपस्थित थे।