कलेक्टर किरण ने लिया हाथी प्रभावित क्षेत्र का जायजा
लोगों की जान खतरे में थी, हाथी किसी भी वक्त धावा बोल सकता था, इस नाजुक घड़ी में ना सोचने के लिए ज्यादा वक्त था, और ना ही बैठकों व विचार विमर्श का मौका;
अंबिकापुर। लोगों की जान खतरे में थी, हाथी किसी भी वक्त धावा बोल सकता था, इस नाजुक घड़ी में ना सोचने के लिए ज्यादा वक्त था, और ना ही बैठकों व विचार विमर्श का मौका। बस जो करना था जल्दी करना था लिहाजा खतरा भी था और जोखिम भी, लेकिन जब जिले का कप्तान खुद इन खतरों से भरे मुहिम को लीड करे तो हौसला बढ़ ही जाता है। कलेक्टर किरण कौशल नेे तत्परता के साथ हाथी के खतरों के बीच फंसे 150 लोगों की जान बचा ली।
खुद टीम को लीड किया पथरीली घाटियों पर चढ़ी और करीब 3 किलोमीटर तक पैदल चली। विधानसभा लुण्ड्रा का वह इलाक़ा लखनपुर ब्लॉक का हिस्सा है, लेकिन वहाँ जाने के लिए सबसे सुगम राह जो है वो मैनपाट की दुरुह पहाड़ियों से होकर गुज़रती है। जहाँ पहाड़ियों पर मौजूद नाले सिवाय ट्रैक्टर के किसी और वाहन को निकलने वाले इजाज़त नहीं देते। यह इलाक़ा है, घटौन,पटकुरा पंचायत का आश्रित गाँव है। पहाड़ियों पर बसे गाँव घटौन की बसाहट बनावट कुछ ऐसी है कि पहुँचने की राह पहाड़ी ही है। जंगलों से घिरे पहाड़ में मौजूद यह आश्रित गाँव हाथियों के परिभ्रमण क्षेत्र का हिस्सा है बीते कई महिनो से सत्रह हाथियों का दल मैनपाट के इस इलाक़े में सक्रिय है। दो दिन पहले इसी गज दल ने गाँव में मौजुद 62 घरों में से 30 घर तोड़ दिए।
डीएम किरण कौशल की कवायद यही रही है कि हाथियों से लड़ा नहीं जा सकता तो हाथियों के लिए जगह ख़ाली कर दी जाए। ताकि वे एक वक्त के बाद वहाँ से निकल जाएँ, प्रभावित क्षेत्र के लोगों के आसपास के इलाक़ों में शिफ़्ट करते हुए। उन्हें वहाँ मौजुद पक्के मकानों जैसे स्कूल आंगनबाड़ी भवनों में खाद्यान्न और दिगर अनिवार्य संसाधनो के साथ रुकवाया जाता है।
बीते दिनों सत्रह सदस्यीय गजदल मैनपाट के जिस इलाक़े में अपनी रिहाईश कर रहा था। उसमें ढांढकेसरा से लेकर घटोन और उससे लगे पहाड़ी इलाक़े उसके परिभ्रमण क्षेत्र में शामिल थे। तब घटोन के बाशिंदों को प्रशासन ने पंचायत मुख्यालय पटकुरा में शिफ़्ट करा दिया था।
बाद में गजदल लौट गया था और इस सूचना पर ग्रामीण वापस आ गए थे, लेकिन गजदल वापस लौट आया क्योंकि उसे धर्मजयगढ जंगल जाने का रास्ता बाधित मिला।
पटौन के ग्रामीणों के घर इसी गजदल के दोबारा लौटने पर हाथियों के निशाने पर आ गए प्रशासकीय अमले की दुबारा बस्ती ख़ाली कराने की समझाईश ग्रामीणों ने नहीं मानी और इसकी सूचना डीएम किरण कौशल को मिली तो वे समझाने अमले के साथ पटोन पहुँच गई।
लेकिन पटोन पहुँचने के लिए निकला डीएम किरण का क़ाफ़िला डांढकेसरा के बाद मौजूद पहाड़ी नाले पर ठिठक गया क्योंकि उसे पार करते हुए लगातार मौजूद उंची नीची संकरी पथरीली राह को केवल ट्रेक्टर ही पार सकता था।
डीएम ने राहत सामग्री ट्रेक्टर पर लदवाया और क़रीब डेढ बजे पैदल प्रभावित गाँव की ओर बढ़ना शुरू किया। तीन किलोमीटर की जटिल पहाड़ी यात्रा क़रीब डेढ घंटे में पूरी हुई और फिर ग्रामीणों के साथ एक-एक घर देखने के बाद डीएम की स्नेहिल समझाईश रंग लाई।
पहाड़ी रास्ते से होकर पैदल पहुँचने वाली डीएम किरण को देख ग्रामीण ख़ुश थे और यही वजह भी थी कि डीएम के यह कहते ही कि चलो पटकुरा रहना स्कुल और आंगनबाड़ी में सुरक्षित रहोगे नहीं जाने की जिद पर टिके ग्रामीण बहुत सहजता से तैयार हो गए।
डीएम किरण ने कहा मुझे हर हाल में पहुँचना था। मुझे अपने लोगो को सुरक्षित करना था। वन मार्ग ही वो साधन था कि मैं जल्दी पहुँचती पहुँच गई और सबसे अहम बात कि लक्ष्य पूरा हुआ मैं ग्रामीणों को सुरक्षित जगह ले आई हूँ। डीएम के इस क़ाफ़िले में स्थानीय विधायक चिंतामणि और जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती फुलेश्वरी सिंह भी शामिल थी।