बदल रही है मानसिकता, भिंड जिले में लड़कियों का अनुपात बढ़ा
मध्यप्रदेश के चंबल संभाग ने एक समय था जब बेटियों को कोख में मारने की कुप्रथा थी, लेकिन बदलते समय के साथ अब यह अंचल बेटियों के जन्म के मामले में प्रदेश के दूसरे जिलों से आगे पहुंच चुका है;
भिण्ड । मध्यप्रदेश के चंबल संभाग ने एक समय था जब बेटियों को कोख में मारने की कुप्रथा थी, लेकिन बदलते समय के साथ अब यह अंचल बेटियों के जन्म के मामले में प्रदेश के दूसरे जिलों से आगे पहुंच चुका है।
भिंड में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का अनुपात सबसे कम रहा है। लेकिन अब 9 माह के आंकड़े यह बताते है कि न सिर्फ लड़कियों के प्रति यहां के लोगों में जागरूकता आयी है, बल्कि मानसिकता बदली है।
यहीं कारण है कि भिंड जिले में लड़कियों का अनुपात बढ़ा है। इस साल जनवरी से लेकर सितंबर तक जिले में 10 हजार 407 बच्चों ने और 9 हजार 669 बच्चियों ने जन्म लिया। जबकि पिछले आकड़े बताते है कि 1000 लड़कों पर 843 बच्चियों का जन्म दर रहा।
बताया जाता है कि अंतिम पायदान पर खडा चंबल संभाग का भिण्ड जिला अब प्रथम स्थान पर आने का गौरव हासिल कर चुका है। यह जिला एसआरबी (सेक्स रेसो एट बर्थ) यानी जन्म लिंगानुपात में 32.75 प्रतिशत की बढ़त लेकर सबसे ऊपर आया है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ जे पी एस कुशवाह ने बताया कि जिले के लोगों की सोच बदल रही है। इस सोच में और बदलाव की जरुरत है। लोगों की समझ में आ रही है कि बेटी अब बोझ नहीं है।
यही कारण है कि 51 जिलों में इस साल के लिंगानुपात में भिंड सबसे ऊपर है। और यह आंकडा अब नीचे न आने पाए ऐसे प्रयास अभी से किए जाने लगे है।
कलेक्टर इलैया राजा टी ने कहा कि इस साल अब तक बेटियों की जन्म की स्थिति प्रदेश में सबसे अधिक है, जिसे हम सबको निरंतर बनाए रखना है। गांवों में लोगों के बीच अभी और जागरूकता लाने की जरूरत है।
हर समाज के लोगों को बेटियों को बचाने के लिए आगे आना चाहिए। भिण्ड जिला एक ऐसा क्षेत्र रहा जहां बेटियों को बहुत से लोग जन्म ही नहीं लेने देते, बेटियों को कोख में ही मार देने की कुप्रथा वर्षों से चली आ रही थी।
उन्होंने बताया कि इस लिंगानुपात में कुछ गांव तो 1000 पर 500 से भी कम बेटियों की संख्या वाले रहे हैं। प्रदेश के 51 जिलों में लिंगानुपात में सबसे नीचे ही रहा यह जिला लिंगानुपात में आगे बढ़ा है।