जमीन खरीदी-बिक्री का धंधा पड़ा मंदा, लक्ष्य से दूर पंजीयन विभाग
केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी लागू करने तथा नोटबंदी जैसे कदम उठाये जाने के बाद प्रापर्टी डीलिंग का धंधा चौपट हो गया है;
68 करोड़ के लक्ष्य के विरूद्ध 45 करोड़ ही मिल सके
वित्तीय वर्ष के पांच दिन शेष
जांजगीर। केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी लागू करने तथा नोटबंदी जैसे कदम उठाये जाने के बाद प्रापर्टी डीलिंग का धंधा चौपट हो गया है। जिसका सीधा असर राजस्व हानि के रूप में रजिस्टार विभाग में देखा जा रहा है। जहां इस बार 68 करोड़ के राजस्व आय का लक्ष्य पूरा करने विभाग का पसीना छूट रहा है। जबकि सत्र में पांच दिन का ही समय शेष है। जानकारी की माने तो अब तक 45 करोड़ की राशि राजस्व के रूप में विभाग को मिल पाया है।
बढ़ते औद्योगिकीकरण व शहरीकरण के बीच युवाओं में प्रापर्टी डीलिंग का काम तेजी से फल-फूल रहा था। मगर केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय कसावट के उपायों के तहत जीएसटी जैसा कानून लाने एवं नोटबंदी जैसे कदम ने इस धंधे को चौपट कर दिया है।
इससे पूर्व रजिस्ट्री के दौरान नगद राशि का प्रावधान होता था, जिसमें आसानी से कालाधन खप रहा था और प्रापर्टी खरीदी-बिक्री करने वाले आसानी से इनकम टैक्स विभाग की नजरों से बच जाया करते थे। मगर अब भुगतान चेक के माध्यम से किया जाना अनिवार्य हो जाने तथा जीएसटी लागू होने के चलते इस धंधे में कालाधन का उपयोग नहीं हो पा रहा है। ऐसे में जमीन खरीदी-बिक्री कराने वाले बिचौलिये अब बेरोजगार हो गये है।
वहीं इसका नुकसान राजस्व हानि के रूप में शासन को भी हो रही है। गौरतलब है कि जिले में प्रतिवर्ष लोग अपनी सुविधाओं के हिसाब से जमीन की खरीदी-बिक्री के माध्यम से जो शुल्क जमा होता है। वह राज्य शासन के खाते में चली जाती है।
वित्तीय वर्ष 2017-18 में जिला पंजीयक विभाग को जमीन खरीदी-बिक्री के माध्मय से 68 करोड़ रूपए राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। विभाग बीते 11 माह 20 दिन में 42 करोड़ की भी राजस्व आय प्राप्त कर सका है। जबकि अभी भी 26 करोड़ राजस्व आय प्राप्त करना बाकी है। वहीं वित्तीय वर्ष समाप्त होने में महज कुछ दिन ही शेष बचे है।
नोटबंदी के साथ-साथ जीएसटी का असर भी जमीन खरीदी-बिक्री पर पड़ा है। पहले की अपेक्षा अब लोग जमीन की खरीदी-बिक्री कम कर दिये है। देखा जाये तो पिछले वर्ष जमीन के दामों में कोई वृद्धि नहीं की गई थी। वहीं इस वर्ष विभाग द्वारा जांच पड़ताल पर केन्द्रीय मूल्यांकन समिति रायपुर को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। जमीन का कीमत घटाने बढ़ाने का काम मूल्यांकन समिति तय करती है।
जमीन का कीमत बढ़ेगा या घटेगा यह अप्रैल माह में ही बता चल पायेगा। हर जगह जमीन का कीमत रिहायसी इलाका, सड़क, खेत सहित अन्य जगहों की हिसाब से तय होती है। इसके अलावा पहले जहां शासकीय कार्यालय में नगद राशि के माध्यम से जमीन खरीदी-बिक्री की जाती थी।
समय के साथ नियम में बदलाव किया गया है। अब जमीन की खरीदी-बिक्री ऑनलाईन के माध्यम से होती है। साथ ही साथ कार्यालय में जमीन की खरीदी-बिक्री की राशि चेक एवं ऑनलाईन के माध्यम से कराया जाता है। जमीन की खरीदी-बिक्री प्रक्रिया ऑनलाईन होने की वजह से जो लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुये है। उनकों भी अब सर्तक होकर काम करना पड़ रहा है।
जिला स्तरीय मूल्यांकन समिति ने इस बार व्यवसाय बाजार के रूप को देखते हुये जमीन के दाम में वृद्धि नहीं करने का प्रस्ताव भी राज्य शासन को भेजा है। हालांकि इस संबंध में अंतिम निर्णय केन्द्रीय मूल्यांकन समिति ही तय करेगी। जिले में एक पंजीयक कार्यालय के साथ 10 उपपंजीयक कार्यालय के माध्यम से जमीन की रजिस्टी की जाती है।
आयकर विभाग से नजर
बचाना हो रहा मुश्किल
शासन द्वारा निर्धारित गाईड लाईन एवं जमीन के वास्तिवक भारी अंतर है। गांव में कृषि योग्य जमीन के कीमत 7 से 10 लाख प्रति एकड़ है, वहीं शासन गाईड-लाईन के यह कीमत 15 से 20 लाख तक है। ऐसे में दोगुनी कीमत पर कोई जमीन की खरीदी-बिक्री करता है, तब वह आयकर विभाग के नजर में आ जायेगा।
वहीं अगर गाईड-लाईड से कम कीमत में जमीन खरीदी करता है, तो भी आयकर विभाग द्वारा अंतर की राशि पर 10 प्रतिशत टैक्स व पेनाल्टी के लिए नोटिस थमा दिया जाता है। ऐसे में जमीन खरीदी करने वाले के समक्ष दोहरी मुसीबत खड़ी हो जाती है। जमीन अधिक दाम में बेच देते है तो आयकर विभाग के नजर में आ जाते है। वहीं कम दाम में जमीन बेचने पर पेनाल्टी के साथ बिक्रीकर्ता को भी नोटिस थमा दिया जाता है। ऐसे में परेशानी दोनो तरफ से है।