हरियाणा में भाजपा की बढ़ती परेशानियां
ऐसे में जब हरियाणा के विधानसभा चुनाव के लिये केवल एक माह का समय बचा हुआ है, सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ चली हैं;
ऐसे में जब हरियाणा के विधानसभा चुनाव के लिये केवल एक माह का समय बचा हुआ है, सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ चली हैं। 90 सीटों वाली विधानसभा में जैसे ही भाजपा ने अपने 67 उम्मीदवारों की सूची जारी की, कई नेताओं के इस्तीफों की झड़ी लग गयी। इनमें कुछ वर्तमान विधायक हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने टिकट न मिलने के कारण त्यागपत्र दे दिये हैं। पहले से कमजोर चल रही भाजपा को इनकी नाराज़गी महंगी पड़ सकती है, खासकर कांग्रेस की बढ़ती ताकत के बरक्स। रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा तो दिया ही है, देश की सबसे अधिक धनी महिलाओं की सूची में कई मर्तबा शीर्ष पर रहने वाली सावित्री जिंदल ने हिसार विधानसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर संगठन को मुश्किल में डाल दिया है। उधर दूसरी तरफ हरियाणा में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने के लिये इच्छुक लोगों की लम्बी फेहरिस्त है। सम्भवत: यहां कांग्रेस का आम आदमी पार्टी से गठबन्धन हो सकता है। एक ओर इंडिया की मजबूती तो दूसरी तरफ भाजपा में मचा घमासान चौंकाने वाले नतीजे दे सकता है।
5 अक्टूबर को होने जा रहे मतदान के लिये भाजपा ने 9 विधायकों की टिकटें काटी हैं और खुद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को लाडवा सीट से उतार दिया है जबकि वे करनाल के विधायक हैं। यह सीट कुरुक्षेत्र के अंतर्गत आती है जहां से सावित्री जिंदल के पुत्र नवीन जिंदल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और सांसद बने हैं। बड़ी बात नहीं कि खुद सैनी की राह वहां कठिन हो सकती है। पूर्व मंत्री करण देव कांबोज ने भी टिकट न मिलने के कारण पार्टी के अलविदा कह दिया है। वे रादौर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं परन्तु इस बार भाजपा ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से केवल तीन दिन पहले आये श्याम सिंह राणा को उतार दिया है जिससे कांबोज नाराज़ हैं। इतना ही नहीं, मंत्री रणजीत सिंह चौटाला ने भी टिकट न मिलने के कारण पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है। हालांकि सैनी को विश्वास है कि इन सभी को मना लिया जायेगा। वे सभी को पार्टी के मजबूत नेता मानते हैं। दूसरी तरफ सावित्री जिंदल ने तो साफ कह दिया है कि यह उनका आखिरी चुनाव है और वे कोई भाजपा की सदस्य भी नहीं हैं जो भाजपा नेतृत्व के हिसाब से चलेंगी। उन्होंने साफ किया कि वे जनता की इच्छा पर चुनाव लड़ने जा रही हैं।
भाजपा की परेशानी यह भी है कि वहां जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से उसका गठबन्धन पहले ही टूट चुका है और वहां एनडीए जैसी कोई चीज़ रह ही नहीं गयी है। ऐसे में अगर टिकट बंटवारे को लेकर पहले से ही ऐसी भगदड़ मच गयी है तो उसके प्रदर्शन पर विपरीत असर पड़ना लाजिमी है। इसके विपरीत कांग्रेस पूरा प्रयास कर रही है कि उसका आप के साथ गठबन्धन हो जाये और इसके लिये वह उसके साथ सीटों के सम्मानजनक बंटवारे की कवायद में जुटी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव से कांग्रेस ने यह सबक लिया है कि यथासम्भव गठबन्धन बनाए जाएं। मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी द्वारा गठबन्धन के प्रस्ताव को 'अखिलेश-वखिलेश' कहकर हवा में उड़ा दिया था। उससे भी सीख लेते हुए अब गठबन्धन के मसलों को खुद राहुल गांधी डील कर रहे हैं।
बताया जाता है कि हरियाणा में साथ लड़ने का पैगाम राहुल ने एक अपने एक नज़दीकी के हाथों भिजवाया है। कहा जा रहा है कि बात सकारात्मक दिशा में बढ़ रही है। कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री का अब तक कोई चेहरा घोषित न करना उसी रणनीति का एक हिस्सा कहा जा रहा है। यह नाम दोनों दलों के द्वारा सम्भवत: संयुक्त रूप से घोषित करने की मंशा हो। जम्मू-कश्मीर में भी देखें तो नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबन्धन को अंतिम रूप देने का काम राहुल गांधी एवं पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ही किया है।
हरियाणा में कांग्रेस की भी बड़ी जंगी तैयारी बतलाई जा रही है। बुधवार को 34 सीटों पर चर्चा पूरी कर ली गयी थी, जिनमें से 32 सीटों के प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप दे दिया गया। वहीं पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को भी चुनावी अखाड़े में उतारने का ऐलान कभी भी हो सकता है। यहां महिला पहलवानों तथा विनेश के साथ ओलिम्पिक में जो खेला हुआ उसे लेकर भी भाजपा के प्रति लोगों में बहुत क्रोध है। इसके अलावा किसानों द्वारा आंदोलन का जो दूसरा दौर चला है, उसका केन्द्र भी हरियाणा ही है। पहले आंदोलन के दौरान दिल्ली की तीनों सीमाओं (टिकरी, गाजीपुर और सिंघू) पर किसान डटे थे, इस बार उन्हें हरियाणा के शंभू में ही रोक दिया गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य के कई गांवों में भाजपा प्रत्याशियों को प्रवेश करने से ही मनाही थी।
हरियाणा में ताजा हुई एक और घटना से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। फरीदाबाद के एक युवा आर्यन मिश्रा को भाजपा समर्थित गोरक्षकों ने गो तस्करी के शक में 23 अगस्त को गोली मार दी थी जिससे उसकी मौत हो गयी। इसे लेकर वहां का सवर्ण तबका भी खासा नाराज है जिसका असर चुनावी परिणामों पर देखने का मिल सकता है। भाजपा से बड़े पैमाने पर नेताओं के त्यागपत्र. तो वहीं कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने की उत्सुकता हरियाणा के सियासी मौसम में बदलाव का संकेत है।