भाजपा की उलझन
भारत के संसदीय इतिहास में शायद पहली मर्तबा हो रहा है जब किसी राजनैतिक दल को विधानसभा के चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिला हो और वह हफ्ते भर से अपना मुख्यमंत्री तलाश रही हो;
भारत के संसदीय इतिहास में शायद पहली मर्तबा हो रहा है जब किसी राजनैतिक दल को विधानसभा के चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिला हो और वह हफ्ते भर से अपना मुख्यमंत्री तलाश रही हो। जिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीज़े 3 दिसम्बर को निकले उनमें से तेलंगाना में कांग्रेस के रेवंत रेड्डी और मिजोरम में जोराम पीपुल्स मूवमेंट के लालदुहोमा ने मुख्यमंत्री का पद ग्रहण कर कामकाज भी प्रारम्भ कर दिया है, ले-देकर छत्तीसगढ़ के मुखिया के रूप में विष्णुदेव साय का चयन कर उसकी तलाश एक राज्य में रविवार को समाप्त हुई। और सोमवार को मध्यप्रदेश में मोहन यादव के नाम पर मुहर लग पाई है।
परन्तु भारतीय जनता पार्टी अब भी राजस्थान के मुख्यमंत्री का निर्धारण नहीं कर पाई है। यह अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा के लिये आश्चर्यजनक है। उसके इतिहास व सांगठनिक स्वरूप को देखें तो यह एक हद तक सही भी लगता है लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे मुख्यमंत्री बनाने में जिस एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा है, उससे यह मिथक भी टूट रहा है।
यह संकट पूर्वानुमानित था। जब तीनों ही राज्यों में कई सांसदों और केन्द्रीय नेताओं को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारा गया, तभी आभास हो गया था कि इन राज्यों में भाजपा जीते या हारे, उसे इस तरह के संकट से गुजरना होगा। चूंकि उस समय इन तीनों ही राज्यों में भाजपा की पराजय का अंदेशा था, इसलिये सम्भवत: भाजपा नेतृत्व ने मामले की गम्भीरता का अंदाजा नहीं लगाया होगा। अप्रत्याशित रूप से इन राज्यों में उसे जो जीत मिली है, उसके बाद उसके समक्ष समस्या आन खड़ी हुई है- कौन बनेगा मुख्यमंत्री? छत्तीसगढ़ एक आत्मसंतोषी राज्य है जहां लोगों की महत्वाकांक्षाएं वैसी प्रबल नहीं है। साथ ही, यहां केन्द्र के मंत्री या सांसद विधायकी का चुनाव लड़ने के लिये उतारे गये, उनमें कोई भी ऐसा बड़ा चेहरा नहीं हैं जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर वैसी बड़ी पहचान हो। यहां के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की ही शिनाख्त होती है लेकिन वे भी अपनी विनम्रता और सौम्यता के लिये जाने जाते हैं। उनके बारे में पहले से ही अनुमानित था कि अगर उन्हें यह पद नहीं मिलता तो भी वे संगठन के खिलाफ न तो अपना रोष व्यक्त करेंगे या कोई बड़ा कदम उठाएंगे। यह उन्होंने साबित भी किया। साय को मुख्यमंत्री बनाकर उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाने का तय हुआ तो उन्होंने इस प्रस्ताव को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया।
रही बात राजस्थान व मध्यप्रदेश की, तो दोनों ही राज्यों में भाजपा के समक्ष जटिल परिस्थिति है। राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री और वहां भाजपा की सबसे प्रभावशाली नेत्री वसुंधरा राजे सिंधिया हैं जिनका बड़ा सम्मान है पर यहां शीर्ष कमान की पसंद के चेहरे अन्य लोग हैं, मसलन बाबा बालकनाथ, गजेन्द्र सिंह शेखावत, किरोड़ीमल मीणा, दीया कुमारी, अश्विनी वैष्णव, अर्जुन मेघवाल आदि। छत्तीसगढ़ के रमन सिंह की ही तरह वसुंधरा की भी यहां चुनाव प्रचार के दौरान घोर उपेक्षा हुई थी। उनके समर्थक वह दृश्य नहीं भूल सकते जब राज्य भाजपा का घोषणापत्र भरे मंच पर उनके हाथ से छीन लिया गया था। उसके बाद उन्हें पकड़ाये गये घोषणापत्र को महारानी साहिबा ने हाथ तक नहीं लगाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, किसी ने भी चुनावी प्रचार सभाओं में उनके कामों का ज़िक्र नहीं किया। यहां तक कि कई सभाओं में वे गैर मौजूद रहीं। बताया जा रहा है कि उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर जाहिर कर दिया है कि वे यह पद छोड़ेंगी नहीं। उनके साथ 60 से अधिक विधायकों के मजबूती के साथ खड़े बतलाये जाते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह ने इन विधायकों की बाड़ेबंदी कर रखी है। भाजपा नेतृत्व को इस बात की भी आशंका है कि वे निवर्तमान कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हाथ मिलाकर सरकार तक बना सकती हैं। 199 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा के 115 और कांग्रेस के 69 विधायक हैं। राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का असमंजस ऐसा विकट है कि रविवार को दिल्ली से आने वाले पर्यवेक्षकों ने अपनी जयपुर यात्रा भी रद्द कर दी।
कुछ ऐसी ही स्थिति मध्यप्रदेश में भी रही। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी चुनाव प्रचार के दौरान पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया था। उनके कामों का उल्लेख तो दूर, उनका नाम भी मोदी-शाह द्वारा नहीं लिया जाता था। उनके धुर विरोधी भी मानते हैं कि चौहान यहां अपने दम पर कांग्रेस के जबड़े से जीत निकाल लाए हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर आगे राज्य की राजनीति कैसे मोड़ लेगी। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल केन्द्रीय कृषि मंत्री रहे नरेन्द्र तोमर को भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष बना दिया है और जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। इसका अर्थ यही है कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे कई दिग्गज हैं जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, अब उन्हें किसी न किसी तरह आलाकमान को संभालना होगा।
छत्तीसगढ़ में अलबत्ता नये मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण की तैयारियां प्रारम्भ हो गई हैं, मध्यप्रदेश में भी जल्द ही मोहन यादव की सरकार बन जाएगी, लेकिन राजस्थान में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तय नहीं हो सका है।