किसकी ओवर स्मार्टनेस के कारण नहीं चल रही सिटी बस; स्मार्ट सिटी, नगर निगम, आरटीओ, पुलिस या बस ऑपरेटर?

लगता है शहर के अधिकारी ही नहीं चाहते हैं कि लोगों को सिटी बस सेवा का लाभ मिले। तभी वे इन बसों को चलाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं कर रहे हैं।;

Update: 2023-06-12 09:55 GMT
ग्वालियर: हर बार बड़ी बड़ी बातें करने के बाद भी शासन प्रशासन ग्वालियर शहर को सिटी बस की सुविधा देने मै असफल रहे हैं। स्मार्ट सिटी, नगर निगम, आरटीओ के बीच आपसी खींचतान और समन्वय की कमी कहें या बस ऑपरेटर की मनमर्जी; कारण जो भी हो लेकिन बसें सड़कों पर नहीं दौड़ पा रही हैं। बस ऑपरेटर नए रूट का परमिट आरटीओ से मांग रहा है। जिसके एवज में 60 हजार रुपया भी आरटीओ में जमा है। लेकिन आरटीओ का कहना है कि बस ऑपरेटर पुराने रूट प्र ही बस नहीं चला पा रहा। नए परमिट के मुद्दे को छोड़ भी दिया जाए, तो पहले से निर्धारित चार रूटों पर भी ये बसें नहीं दौड़ रही हैं। बस ऑपरेटर इसकी वजह कहीं सड़कों को कहीं ट्रैफिक को तो कहीं सड़कों पर आटो-टैंपो और ई-रिक्शा की बेतहाशा बढ़ती तादाद को बता रहा है।

आपको बता दें कि ग्वालियर शहर में सिटी बस चलाने का ठेका स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन ने नीरज ट्रेवल्स को दिया है। जिसके संचालक सावंत सिंह माहौर व सोनू माहौर हैं। लगभग 10 करोड़ कीमत की 26 बसें इन्होंने खरीदी थीं। जिसमे 13 वातान कूलित व अन्य 13 सामान्य हैं। यह केंद्र सरकार की योजना है जिसमें बसों पर 40% सब्सिडी भी दी गई थी। केंद्र सरकार की मंशा साफ थी कि शहर के नागरिकों को सस्ती व सहज शहरी ट्रांसपोर्ट मिले। इन बसों को संचालन शहर के विभिन्न रूटों पर होना था। तत्कालीन स्मार्ट सिटी सीईओ महीप तेजस्वी के समय पर सिटी बसों का संचालन अच्छे से शुरू हुआ। लेकिन उनके जाते ही यह सेवा धराशाई हो गई। इसके बाद वर्ष 2019 में तत्कालीन कलेक्टर अनुराग चौधरी ने पुनः पहल की। टैंपो और बसों के चलने का समय निर्धारित किया। इसके चलते बसों का संचालन बहुत सुगम हो गया, लेकिन कोविड काल में यह व्यवस्था भंग हो गई, इसके चलते बस आपरेटर को घाटा उठाना पड़ रहा था। तब से सिटी बस सेवा पूरी तरह ठप्प पड़ी है।  इन बसों को चलाने का तरीका या तो वर्तमान अधिकारियों को पता नहीं है, या बस ऑपरेटर की मनमर्जी इन सारे विभागों प्र हावी है। 

कुछ दिन पूर्व स्मार्ट की में बस ऑपरेटर की मीटिंग 3 बजे होना थी। दोपहर 1 बजे तक स्मार्ट सिटी को ही यह पता नहीं था कि मीटिंग होना है। देशबन्धु ने जब स्मार्ट सिटी पी आर ओ  से पूछा तो उन्होंने बैठक की जानकारी से ही इंकार कर दिया। लगभग एक घंटे बाद उन्होंने कॉल करके बताया कि मीटिंग तो है, नगर निगम आयुक्त ले रहे हैं, उनके है कार्यालय में होगी। लेकिन नगर निगम में भी यह बैठक नहीं हो सकी। ऐसा बताया गया कि स्वास्थ्य कारणों से बस ऑपरेटर सावंत माहौर उपस्थित नहीं हो सके। मतलब न मीटिंग होगी न बस चलेंगी। स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन जब बस नहीं चला पा रहा है तो उसे यह काम छोड़ देना चाहिए। नगर निगम जनहित के कामों को कितनी गम्भीरता से लेता है यह तो शहर की जनता भलीभांति जानती है। आरटीओ की कार्यशैली से हर वह व्यक्ति परिचित है हो इस विभाग के चक्कर लगा चुका है।

हैरानी की बात यह है कि सिटी बस कॉर्पोरेशन में को कुछ हो रहा है। वह केंद्र सरकार की मंशा के बिल्कुल विपरीत है। शहरी क्षेत्र में चलने के लिए केंद्र सरकार से सब्सिडी पर खरीदी गई बसें, लाभ के लिए बस ऑपरेटर्स शहर के बाहरचलाना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कुछ बसें बाहर के रूट पर चल भी रही हैं जबकि शहर के अंदर एक भी सिटी बस नहीं चल रही। ग्वालियर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के पत्र क्रमांक /या शा/ स्मार्ट सिटी/ 2023/ 59 दिनांक 06/01/2023 जो क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को लिखा गया है। उसमे भी नगर निगम सीमा के 25 किलोमीटर तक बसों के संचालन की बात की गई है। जिसमे ग्वालियर से मोहना, ग्वालियर से गोहद, ग्वालियर से डबरा, ग्वालियर से मुरैना, ग्वालियर से बेहट, ग्वालियर से तिगरा रूट का उल्लेख किया गया है। जब बस ऑपरेटर्स निगम सीमा में ही बस संचालन नहीं कर पा रहे तो स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन किस राजनीतिक दवाब में ऐसा आदेश जारी कर रही है?

बड़ा प्रश्न यह है कि जब बस ऑपरेटर यह सब समस्या बता रहे हैं तो अधिकारियों के पास इसका समाधान क्यूं नहीं है? जब केंद्र सरकार की यह योजना शहरी क्षेत्र के नागरिकों को सुविधा देना है। तो अधिकारी निगम सीमा के 25 किलोमीटर में बस संचालन की बात क्यूं कर रहे हैं? यदि बसें शहर से बाहर ही चलाना है तो केंद्र सरकार से सब्सिडी क्यूं ली गई है? क्या स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन बस ऑपरेटर्स को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा कर रहा है? नगर निगम क्षेत्र में बसों के संचालन न होने पर अभी तक कॉर्पोरेशन ने बस संचालक पर कितना जुर्माना लगाया है? 

लगता है शहर के अधिकारी ही नहीं चाहते हैं कि लोगों को सिटी बस सेवा का लाभ मिले। तभी वे इन बसों को चलाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो अधिकारियों को सब पता है, लेकिन ठोस कदम लेने से वे पीछे हट जाते हैं। शहर की सिटी बस सेवा को फेल कराने में सबसे ज्यादा दोष कमजोर इच्छाशक्ति वाले अधिकारियों का है।

यदि  संचालन में लाभ अर्जन एक बड़ी समस्या है। तो यह तो ऐसी वजह है कि जनहित के कई कार्य बन्द हो जाने चाहिए जिनसे लाभ न हो रहा हो। शासन, नगर निगम, पुलिस और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के बीच आपसी समन्वय की भी कमी है। यही कारण है कि शहर के एक रूट पर भी सिटी बसों का संचालन संभव नहीं हो पा रहा है।

सड़कों पर आटो-टैंपो और ई-रिक्शा की बढ़ती जा रही संख्या के चलते ये बसें जाम में फंसती रहती हैं। इन सबकी व्यवस्था भी निगम व जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है। सड़कों पर अन्य छोटे वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण बसों को चलने के लिए जगह नहीं मिल पाती है। कुल मिलाकर शहर में स्मार्ट सिटी कारपोरेशन की सरकारी सिटी बसों के संचालन के लिए सरकार को ही चिंता नहीं है। क्यूंकि सरकार के ही यह सारे विभाग हैं जिनमें समन्वय की कमी है और खामियाजा जनता भुगत रही है। 

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