भेदभाव व अशिक्षा के कारण अपने अधिकारों से दूर हैं किन्नर
देश में किन्नर समुदाय अध्यापक और पुलिस की नौकरियों और करीब ढाई सौ सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं;
नयी दिल्ली| देश में किन्नर समुदाय अध्यापक और पुलिस की नौकरियों और करीब ढाई सौ सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं लेकिन भेदभाव, अशिक्षा और पहचान पत्र न होने जैसी मुश्किलों के कारण वे इन योजनाओं से वंचित है और उनकी आधे से ज्यादा आबादी भीख मांगने को मजबूर है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की किन्नरों पर प्रकाशित ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल चार लाख 90 हजार किन्नरों में से 52 प्रतिशत भीख मांगने, 14 प्रतिशत पारंपरिक रूप से नाच-गाकर बधाई देने, इतने ही सेक्स वर्कर और छह प्रतिशत सामुदायिक संगठन के कामों में लगे हैं।
इस समुदाय के लोग सामाजिक सुरक्षा संबंधी केंद्र और राज्य की 249 योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। इनमें से 49 प्रतिशत योजनाओं में उनका विशेष रूप से उल्लेख है। उत्तर प्रदेश और तमिलनाडुु में अध्यापक और पुलिस बल में उनकी भर्ती हो सकती है।
रियायती दर पर ब्याज, कौशल विकास और अपना उद्यम स्थापित करने जैसी आर्थिक विकास की 49 योजनाओं में लाभार्थी के रूप में किन्नरों का अलग से उल्लेख भी है लेकिन समुदाय के लोगों के पास इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए जरूरी पहचान पत्र नहीं है। सामाजिक कलंक, भेदभाव और अनैतिक बर्ताव से परेशान होकर वे अक्सर अपना घर-बार छोड़ देते हैं जिससे उनके पास स्थायी पता नहीं होता और इसके अभाव में उनका पहचान पत्र नहीं बन पाता है।
इनकी कुल आबादी में से मात्र छह प्रतिशत के पास मतदाता पहचान पत्र है। इन्हें चिकित्सा अधिकारी या मनोवैज्ञानिक से लिंग की पहचान संबन्धी प्रमाणपत्र बनवाना होता है लेकिन अक्सर डाक्टरों का रवैया असहयोगात्मक होता है।
सर्वेक्षण में शामिल किन्नरों में से 794 को कम से कम एक सरकारी योजना की जानकारी थी जबकि 129 ने सिर्फ एक योजना का फायदा उठाया। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में किन्नर कल्याण बोर्ड है लेकिन अधिकांश किन्नरों को इसकी जानकारी तक नहीं है। रिपोर्ट में किन्नरों के स्थायी पते की समस्या का व्यावहारिक हल खोजने, सभी फार्माें में उनकी अलग श्रेणी बनाने तथा उनकी जरूरत के हिसाब से खास योजनाएं तैयार करने की सिफारिश की गयी है।