सपनों को संवारने वाला शिल्पकार: शिक्षक
प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर विचारों की छलछलाती सोच कुछ नया लिखने की प्रेरणा प्रदान करती महसूस की जाती है;
- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
एक सच्चा शिक्षक अपनी महानता से आपको प्रभावित नहीं करना चाहता बल्कि वह आपको यह एहसास कराना चाहता है कि आपके पास स्वयं को खोजने का कौशल है। हमारे राष्ट्र निर्माता को यह याद रखना होगा कि एक प्रतिभाशाली शिक्षक न केवल आज के बच्चे की जरूरतों को पूरा करने वाला माध्यम है बल्कि हर बच्चे के भविष्य में आशाओं और सपनों को संवारने वाला बड़ा शिल्पकार भी है।
प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर विचारों की छलछलाती सोच कुछ नया लिखने की प्रेरणा प्रदान करती महसूस की जाती है। मैं अपने शिक्षकीय अनुभव पर कुछ लिखूं या फिर मेरे अपने गुरुओं की महिमा का गान करूं, समझ पाने में असमर्थ हूं। कभी यह विचार भी मन में उठने लगते हैं कि ऐसे कौन से कारण हैं जिनके चलते आज के कुछ शिक्षक इस महान पेशे को कलंकित कर जाते हैं, क्या आज की सम्मानजनक वेतन प्रणाली ने ऐसे शिक्षकों के जीवन में अमर्यादित आचरण का बीजारोपण किया है? आर्थिक संपन्नता के चलते ही कहीं शिक्षकीय पेशा अपने कर्तव्य से विमुख तो नहीं हो रहा है? ऐसे सवाल अंतर्मन में इसलिए हिलोरे मार रहे हैं कि आज से लगभग आधी शताब्दी पूर्व इस महत्वपूर्ण पेशे में संलग्न लोगों को मिलने वाला वेतन पारिवारिक जरूरतों के लिए अपर्याप्त था, किंतु शिक्षकों का आचरण वास्तव में गुरुओं की श्रेणी का हुआ करता था। वर्तमान समय में कुछ लोगों के कारण इस पेशे में आई सामाजिक गिरावट ने यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या आज भी शालाओं को गुरुकुल का पर्याय माना जा सकता है? मेरी आत्मा से निकला उत्तर नकारात्मक जान पड़ता है! शिक्षक दिवस के दिन इन बदली हुई परिस्थितियों में बहुत कुछ ऐसा लिखा जा सकता है जो भारतीय संस्कृति को नागवार गुजरता हो।
एक शिक्षक के रूप में इस सेवा को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को एक नहीं अनेक पैमानों पर खरा उतरना पड़ता है। अपनी छवि गुरु के रूप में स्थापित करने का सपना उसी दशा में पूरा हो सकता है, जब एक शिक्षक सबसे पहले अपने रहने और कपड़े पहनने के तरीकों का भलीभांति ध्यान रखें। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि जब भी एक शिक्षक अपनी कक्षा में प्रवेश करे, वह खुद को पूरे अनुशासन की परिधि में तौल ले । कारण यह कि हर विद्यार्थी अपने शिक्षक को अपना आदर्श मानतस्र हंै। एक शिक्षक द्वारा पढ़ाई गई विषय सामग्री बच्चों के मस्तिष्क पर व्यापक प्रभाव छोड़ती है। आगे चलकर यही शिक्षा एक अच्छे समाज के निर्माण में महती भूमिका निभाती है। इसी कारण कहा जाता है- ०२१०शिक्षक ही राष्ट्र का निर्माता है।' जब हम शिक्षक के रूप में एक अच्छे व्यक्तित्व की बात करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में अपने जीवनकाल के सबसे अच्छे शिक्षक की तस्वीर घूमने लगती है । यह तस्वीर इसलिए हमारे सामने आती है, क्योंकि हमने उस शिक्षक से वह सब कुछ सीखा है जिसके चलते आज सम्मानजनक स्थान पर खड़े हैं। वही एक अच्छा शिक्षक माना जा सकता है, जो खुद को कुछ बोलने से पहले तौलता हो कि उसकी वाणी का प्रभाव सकारात्मक होगा या नकारात्मक? एक शिक्षक का बेहतरीन व्यक्तित्व उसके बोलने के तरीके पर निर्भर करता है। एक शिक्षक का बेहतरीन वक्ता होना ही वह गुण है जिसके चलते उसके विद्यार्थी उसे पसंद करने लगते हैं। प्रत्येक शिक्षक को यह स्मरण रखना चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों से बेसिर पैर की बात न करे। ऐसे शिक्षक विद्यार्थियों के प्रेरणा स्त्रोत नहीं हो सकते।
वर्तमान समय तेजी के साथ परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर है। आज के बच्चों का जीवन जीने का तरीका पहले की तुलना में पूरी तरह बदल चुका है। खास कर आज की किशोरवय और युवा पीढ़ी की सोच का अध्ययन कर उन्हें शिक्षित करना बड़ी चुनौती है। वर्तमान पीढ़ी जिसमें युवक-युवती दोनों ही शामिल हैं, उन्हें किसी काम में किसी अन्य का हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं। फिर वह उनके माता-पिता सहित शिक्षक ही क्यों न हों? ऐसी परिस्थिति में शिक्षकों का कर्तव्य और अधिक बढ़ जाता है कि उनके विचारों में घुलमिल चुकी विषमता को कैसे बाहर निकालें? यदि एक शिक्षक ही व्यसन के कुचक्र में पड़कर अपनी कक्षाओं में प्रवेश करेगा तो क्या वह आग में घी डालने जैसा नहीं होगा? तब हमें विचार करना होगा कि हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उच्च विचारों को अपने हृदय में कैसे स्थान प्रदान करें? एक अध्यापक शिक्षण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है। यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि एक अध्यापक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। प्रत्येक शिक्षक इस बात को जानता है कि उसका काम न केवल छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है, बल्कि उन्हें आने वाले कल के लिए तैयार भी करना है। तब वर्तमान का शिक्षक खुद को एक ऐसा उपकरण क्यों नहीं मान रहा है, जो उच्च स्तरीय वस्तुओं का उत्पादन कर अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने में सक्षम रहता है। आज एक शिक्षक की चुनौती पहले की तुलना में कहीं ज्यादा है। कारण यह कि अब जमाना 'गूगल' का है ! हर छात्र गूगल और किताबों के माध्यम से अपने ज्ञान को अपडेट करता रहता है। तब एक शिक्षक को हर परिस्थिति में अपने विद्यार्थियों के सवालों का सटीक जवाब देने खुद को अपडेट रखना होगा।
'शिक्षक ही शिक्षा व्यवस्था का हृदय है।' उसके मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से ही जीवन प्रकाशवान हो सकता है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि अब शिक्षक का कार्य बोर्ड पर दो चॉक लेकर खड़ा होना ही नहीं रह गया है बल्कि अपने विद्यार्थियों को बेहतर तरीके से वह सब कुछ प्रदान करना है जिसकी उम्मीद एक शिक्षक के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी चाहती है। समाज निर्माण की भूमिका में आज तैनात समस्त शिक्षकों को यह समझ लेना चाहिए कि 'एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक शिक्षक' पूरी दुनिया बदलने की क्षमता रखते हैं। वास्तव में कहा जाए तो आज जरूरत इस बात की है कि एक अध्यापक खुद को केवल शिक्षक नहीं बल्कि यह मानकर काम करे कि वह जागरूकता पैदा करने की बड़ी मशीन है। शिक्षकों का प्रभाव केवल कक्षा की चहार दीवारी तक ही नहीं उससे भी आगे भविष्य निर्माण तक विस्तृत है। हमारे देश के महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम कहा करते थे- 'शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है, जो व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। यदि लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखें तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।'
एक सच्चा शिक्षक अपनी महानता से आपको प्रभावित नहीं करना चाहता बल्कि वह आपको यह एहसास कराना चाहता है कि आपके पास स्वयं को खोजने का कौशल है। हमारे राष्ट्र निर्माता को यह याद रखना होगा कि एक प्रतिभाशाली शिक्षक न केवल आज के बच्चे की जरूरतों को पूरा करने वाला माध्यम है बल्कि हर बच्चे के भविष्य में आशाओं और सपनों को संवारने वाला बड़ा शिल्पकार भी है। साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एक अच्छा शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों में आशा का बीज बो सकता है। उनके अंदर अंकुरित हो रही कल्पना को प्रस्फुटित कर सकता है। एक शिक्षक ही विद्यार्थियों में सीखने के प्रति जीवटता और जुनून पैदा कर सकता है। इसी कारण शिक्षा को संजीवनी और शिक्षक को हनुमान कहा जाता है।