प्रेरणा का समता भवन

इन दिनों मुझे ओडिशा के बरगढ़ शहर के समता भवन में लंबे प्रवास का मौका मिला है। हालांकि मैं इस बार निजी काम से आया हूं, पर किसान संगठन के कई कार्यकर्ताओं से मिलकर पुरानी यादें ताजा हो गईं हैं;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-09-05 19:09 GMT
  • बाबा मायाराम

यहां कार्यकर्ता बनाना, किसान संगठन का संचालन करना, आंदोलनों का मार्गदर्शन करना, उन्हें ताकत देना,विकल्प विचारों का निर्माण करना, सांस्कृतिक आंदोलन से जनचेतना जगाना, प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना, सादगीपूर्ण और प्रकृति से समन्वय की जीवनशैली जीने को प्रेरित करना इत्यादि काम प्रमुख हैं। यानी समता भवन बहुत ही प्रेरणादायक है, जो संघर्ष और रचना के कई महत्वपूर्ण कामों की विरासत संजोए हुए है, जो प्रेरणादायी है।

इन दिनों मुझे ओडिशा के बरगढ़ शहर के समता भवन में लंबे प्रवास का मौका मिला है। हालांकि मैं इस बार निजी काम से आया हूं, पर किसान संगठन के कई कार्यकर्ताओं से मिलकर पुरानी यादें ताजा हो गईं हैं। इस कॉलम में किसान संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता और विकल्प की राजनीति, सामाजिक परिवर्तन आदि पर चर्चा करना चाहूंगा, जो समता भवन की प्रमुख गतिविधियों में शामिल है।

यह समता भवन का नया कार्यालय है। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक की स्मृति में बना है। कुछ साल पहले इसके उद्घाटन कार्यक्रम में भी शामिल हुआ था। इस कार्यक्रम में चुनाव विश्लेषक व स्वराज इंडिया के योगेन्द्र यादव, समाजवादी शिवानंद तिवारी जैसी हस्तियां शरीक हुईं थी।

इस नए कार्यालय के पूर्व में इसी नाम से दो-ढाई किलोमीटर दूर कच्चा खपरैल वाला कच्चा भवन था। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक ने बरसों उसी कार्यालय में रहकर काम किया है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, लेखन, और कई आंदोलनों का नेतृत्व किया है। मैं पुराने समता भवन में भी किशन जी, लिंगराज भाई से कई बार मिलने आया हूं और उससे मेरी बरसों पुरानी स्मृति जुड़ी हुई हैं।

आगे बढ़ने से पहले सोच रहा हूं किशन जी ( किशन पटनायक ) के बारे में कुछ बताऊं। लेकिन क्या, सिर्फ उनका औपचारिक परिचय दूं। जैसे वे साल 1962 में बहुत ही कम उम्र में सांसद बन गए थे। वे लोकसभा में सबसे युवा सांसद थे। लोहिया के साथी थे, हालांकि वे उनके लेखों व व्याख्यानों में लोहिया का नाम भी नहीं लेते थे। क्योंकि लोहिया की बातों को अपने ढंग से, अपने शब्दों में कहते थे।

साथ ही यह भी बताऊं कि किशन जी का आपातकाल के बाद कुछ बरसों में मुख्यधारा की राजनीति से मोहभंग हो गया तो उन्होंने वैकल्पिक राजनीति खड़ी करने की कोशिश की। पहले उनके साथियों व युवाओं के साथ मिलकर समता संगठन बनाया, फिर जन आंदोलन समन्वय समिति बनाई और बाद में समाजवादी जनपरिषद की स्थापना की। समाजवादी जन परिषद, एक पंजीकृत राजनैतिक दल है, भले ही इसे चुनावी सफलता नहीं मिली, लेकिन कई जन आंदोलन किए, जल, जंगल, जमीन, खदान, किसान, मजदूर, आदिवासियों की लड़ाई लड़ी। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्यव ( एनएपीएम) के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

किशन जी, सदैव ही उनके मौलिक लेखन और यशस्वी व्याख्यानों से जनसाधारण को चेतनशील बनाने का काम करते रहे। वे मानते थे कि नई राजनीति खड़ी करने के लिए जनसाधारण को ही आगे आना होगा। वे उनके आखिरी समय तक सामयिक वार्ता नामक मासिक पत्रिका के संपादक रहे, इसके माध्यम से कई बहसें, संवाद चलाए, नया नजरिया दिया, जटिल मुद्दों को सरल ढंग से समझाया।

उनकी राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित बेस्ट सेलर पुस्तक विकल्पहीन नहीं है दुनिया बहुचर्चित रही है। इसके अलावा, किसान आंदोलन-दशा और दिशा, भारतीय राजनीति पर एक दृष्टि भी राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। भारत शूद्रों का होगा, उनकी एक और महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसके अलावा, उनके लेखों के संग्रह की कुछ किताबें और प्रकाशित हुई हैं।

किशन जी .युवा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने में विशेष रूचि लेते थे। देशभर में जहां भी उन्हे संभावनाशील युवा मिले, उनसे लगातार संवाद, संपर्क व उनका राजनैतिक प्रशिक्षण जीवन भर करते रहे। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के इटारसी व पिपरिया के युवा भी किशन जी व समाजवादी विचारधारा होकर समता संगठन से जुड़ गए थे। देश भर में कई जगह उनके प्रभाव से युवा आकर्षित हुए थे।

लेकिन यह सब परिचय अधूरे से हैं, वे समतामूलक धारा और देशज समाजवाद के बीच सेतु थे। किशन जी मौलिक चिंतकों में से एक थे, जिन्होंने देश-दुनिया की समस्याओं पर गहरा चिंतन, विश्लेषण, नजरिया और व्याख्या प्रस्तुत की। वे वैकल्पिक राजनीति के सूत्रधार थे। उनका मानना था कि जन आंदोलन के गर्भ से विकल्प की राजनीति खड़ी की जा सकती है।

सामाजिक कार्यकर्ता व समाजवादी विचारक लिंगराज बताते हैं कि समता भवन की परिकल्पना किशन जी ने की थी, जब साल 1980 में समता संगठन का गठन हुआ और उन्होंने बरगढ़ में ज्यादा समय रहना शुरू किया, तो समता भवन को इसका केन्द्र बनाया गया। उन्हीं दिनों पश्चिम ओडिशा में उस समय गंदमार्दन आंदोलन, खदान विरोधी आंदोलन चल रहे थे, उन सबका केन्द्र समता भवन ही हुआ करता था।

यह सिलसिला बाद में भी चलता रहा। चाहे स्थानीय स्तर पर वह नियमगिरी की लड़ाई हो या काशीपुर की, या फिर राष्ट्रीय स्तर किसान संगठन में सक्रिय होने की बात हो या कृषि के तीन काले कानूनों की लड़ाई हो, सभी में समता भवन में न केवल चर्चा होती थी, बल्कि यहां के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर इनमें हिस्सा भी लिया।

समता भवन, रचनात्मक गतिविधियों का भी केन्द्र रहा है। प्राकृतिक खेती उनमें से एक है। जीरो बजट खेती के प्रणेता सुभाष पालेकर के किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम गांव-गांव में आयोजित किए गए हैं। इससे प्रभावित होकर कई किसान प्राकृतिक खेती के प्रयोग कर रहे है। देसी बीजों को बचाने का काम भी किया जा रहा है।

इसके अलावा, यह भवन सांस्कृतिक आंदोलनों का केन्द्र भी है। यहां गांव के स्थानीय युवाओं को नाटकों और गीतों का प्रशिक्षण देकर जन जागरण का काम किया जाता है। कई सामाजिक व राजनैतिक मुद्दों पर नाटकों का मंचन किए गए है। इसके साथ कई सामाजिक मुद्दों जैसे शराब बंदी, शादी-विवाह में फिजूलखर्ची व तामझाम पर रोक इत्यादि भी नाटकों के मुद्दे रहे हैं।

आंदोलन के साथ जन शिक्षण को भी बहुत महत्व दिया जाता है। यहां से पहले भूमिपुत्र, व किशन जी के बाद वर्ष 2004 के बाद भी विकल्प विचार नामक पत्रिका का प्रकाशन होता रहा।

किशन पटनायक के निधन के बाद उनकी स्मृति में एक ट्रस्ट भी बनाया गया है। इस ट्रस्ट का नाम किशन पटनायक समता ट्रस्ट है। इसके तहत उनके जन्मदिन पर रक्तदान का कार्यक्रम और पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में व्याख्यान का आयोजन किया जाता है। इन व्याख्यानों में देश की जानी-मानी हस्तियां शामिल हो चुकी हैं। इसी माह 27 सितंबर को किशन जी की पुण्यतिथि भी है, जिसकी तैयारी की जा रही है।

इस कार्यालय का कामकाज पूरी तरह चंदा पर आधारित है। गांव से चावल व नगद राशि एकत्र की जाती है और उसी से कार्यक्रम होते हैं। सरकारी व विदेशी धन से संगठन को परहेज है। यह पूरी तरह लोगों के चंदे से ही चलता है, यह बहुत आदर्श स्थिति है।

समता भवन का परिसर हरा-भरा है। यहां फलदार पेड़ व सब्जियां भी लगी हैं। कार्यालय के प्रबंधन में लगे कार्यकर्ता किशोर भाई पेड़-पौधों की देखरेख में काफी समय. लगाते हैं। इस वर्ष पके जामुन भी कार्यकर्ताओं को खाने मिले। अभी अमरूद खा रहे हैं। इसके अलावा, नींबू, सहजन इत्यादि भी हैं।

आमतौर पर हम देखते हैं कि सार्वजनिक कामों में श्रम की अवहेलना की जाती है, लेकिन समता भवन में इसे प्रमुखता दी जाती है। सादगीपूर्ण और तामझामरहित जीवनशैली यहां की विशेषता है।

कुल मिलाकर, यह भवन सिर्फ ईंट-गारे सीमेंट से ही नहीं बना है, बल्कि इसमें किसान, मजदूर और जनसाधारण के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई लगी है। यहां भेदभावरहित और बराबरी का माहौल है। यहां का माहौल पिरामिडनुमा नहीं है, बल्कि खुला और लोकतांत्रिक ढांचा है।

यहां कार्यकर्ता बनाना, किसान संगठन का संचालन करना, आंदोलनों का मार्गदर्शन करना, उन्हें ताकत देना,विकल्प विचारों का निर्माण करना, सांस्कृतिक आंदोलन से जनचेतना जगाना, प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना, सादगीपूर्ण और प्रकृति से समन्वय की जीवनशैली जीने को प्रेरित करना इत्यादि काम प्रमुख हैं। यानी समता भवन बहुत ही प्रेरणादायक है, जो संघर्ष और रचना के कई महत्वपूर्ण कामों की विरासत संजोए हुए है, जो प्रेरणादायी है।

 

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