ललित सुरजन की कलम से - मंगलौर, कारकल, मुड़बिदरी
'यद्यपि मंगलौर ने आधुनिक शैली के एक नगर का रूप ले लिया है, फिर भी यह तथ्य तसल्लीदायक है कि शहर में आज भी हरियाली खूब है तथा प्रदूषण का स्तर बहुत कम व शहर ने अपनी प्राचीनता को बचा रखा है;
'यद्यपि मंगलौर ने आधुनिक शैली के एक नगर का रूप ले लिया है, फिर भी यह तथ्य तसल्लीदायक है कि शहर में आज भी हरियाली खूब है तथा प्रदूषण का स्तर बहुत कम व शहर ने अपनी प्राचीनता को बचा रखा है।
मोटे तौर पर रेलवे स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम की ओर याने समुद्र तट से लगकर पुराना शहर बसा हुआ है, जबकि नई बसाहट उत्तर की तरफ हो रही है। आते-जाते मंगलौर में हम तीन दिन रुके जिसमें दो सुखद अनुभवों का उल्लेख मैं करना चाहूंगा।
एक तो ऑटो रिक्शा मीटर से चलते हैं, ड्रायवर सभ्यतापूर्वक पेश आते हैं और अजनबियों को बेवकूफ नहीं बनाते। दूसरा अनुभव रोचक है। हम लोग सड़क पर आटो की तलाश में धीरे-धीरे चल रहे थे, बारिश होने लगी थी, मैं शायद कुछ तेज चल रहा था।
एक मिनट बाद मुड़कर देखा तो पाया कि एक अनजान तरुणी ने अपने छाते में श्रीमती जी को साथ ले लिया था। आज के दौर में ऐसा सौजन्य कल्पनातीत ही था।'
(देशबन्धु में 20 अगस्त 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/08/blog-post_21.html