हरफनमौला शख़्सियत पर एक अच्छी किताब
अभिनेता बलराज साहनी पर संस्मरण और किताबें तो कई हैं, लेकिन याद रखने लायक चंद ही हैं;
- जयनारायण प्रसाद
अभिनेता बलराज साहनी पर संस्मरण और किताबें तो कई हैं, लेकिन याद रखने लायक चंद ही हैं। इन्हीं में से एक है, ज़ाहिद ख़ान के सम्पादन में हाल ही में आई किताब 'बलराज साहनी एक समर्पित और सृजनात्मक जीवन'। 'गार्गी प्रकाशन' से प्रकाशित यह किताब बलराज साहनी की जि़न्दगी पर तो रौशनी डालती ही है, उनके करीबी हमदर्दों जैसे पी.सी. जोशी, ख़्वाजा अहमद अब्बास, जसवंत सिंह कंवल और बलराज साहनी के बेटे अभिनेता परीक्षित साहनी की नज़र में 'वे कैसे थे ?' इसकी भी किताब में मुकम्मल जानकारी हैं। बलराज साहनी कवि, कहानीकार, निबंधकार, रंगकर्मी, शिक्षाविद्, अभिनेता और इप्टा के एक समर्पित कार्यकर्ता भी थे। रावलपिंडी में 1 मई, 1913 को एक दकियानूसी फैमिली में जन्मे और लाहौर में पढ़े, फिर बी.बी.सी. लंदन में नौकरी की। उससे पहले कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के विश्वभारती विश्वविद्यालय (शांतिनिकेतन) में अध्यापन किया। बलराज साहनी का आख़िरी वक्त मुम्बई में बीता। बतौर अभिनेता उन्होंने मुम्बई में रहते हुए अनेक उल्लेखनीय फिल्में की। 'धरती के लाल' (1946), 'दो बीघा ज़मीन' (1953), 'काबुलीवाला' (1961), 'वक्त' (1965) और 'गर्म हवा' (1973)। उनकी जि़न्दगी की ये चंद बेहतरीनफिल्में हैं। 'गर्म हवा' के रिलीज होने से पहले बलराज साहनी का 13 अप्रैल, 1973 को मुम्बई में 59 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। सुखद यह था कि 'गर्म हवा' की डबिंग उन्होंने पूरी कर ली थी।
ज़ाहिद ख़ान की इस पुस्तक का अनुक्रम बताता है कि बलराज साहनी पर यह किताब बहुत मेहनत से सम्पादित की गई है। पुस्तक के आरंभ में अभिनेता बलराज साहनी पर सम्पादक की पढ़ने लायक टिप्पणी है। 'बलराज साहनी : बा-मकसद और ख़ूबसूरती से जी गई बेहतरीन जि़न्दगी' सम्पादक अपनी इस टिप्पणी में लिखते हैं कि ''1936 में बलराज साहनी की पहली कहानी 'शहज़ादों का ड्रिंक' उस समय की मशहूर पत्रिका 'विशाल भारत' में छपी थी। तब बलराज साहनी की उम्र महज़ तेईस साल थीं।'' उस दौर की चर्चित पत्रिकाओं जैसे 'हंस', 'अदब-ए-लतीफ' आदि में बलराज साहनी के अफसाने भी छपे। देश के नवजागरण के लिए उन्होंने काफी काम किया। प्रगतिशील लेखक संघ और भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) में बलराज साहनी ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया। इप्टा की मुम्बई शाखा के वे महासचिव भी बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने काफी काम किया। यह किताब बताती है कि बलराज साहनी के दौर में इप्टा का एक अलग मुकाम था। ज़ाहिद ख़ान की इस पुस्तक में जसवंत सिंह कंवल का लेख 'इंसानियत का मुजस्समा मेरा दोस्त बलराज' सबसे बढ़िया है। इसमें बलराज साहनी की दृष्टि, मेहनत और जोश का पता चलता है। ख़ुद बलराज साहनी का लिखा लेख 'मेरा जीवन-दृष्टिकोण' भी महत्वपूर्ण है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले महासचिव पी.सी. जोशी का लिखा आलेख 'बलराज साहनी : एक समर्पित और सृजनात्मक जीवन' इस पुस्तक की विशिष्ट उपलब्धि है। इस लेख में बलराज साहनी के पौरुष का खुलासा होता है। विचार के प्रति उनका समर्पण और सृजनात्मक जीवन सामने आता है। ख़्वाजा अहमद अब्बास का लिखा लेख 'जन कलाकार थे बलराज साहनी' भी बेहद पठनीय है। अब्बास की इस टिप्पणी में जहां िफल्म 'दो बीघा ज़मीन' और 'काबुलीवाला' में बलराज साहनी के किरदार की जीवंतता का वर्णन है, तो वहीं इप्टा में उनके योगदान का भी। राजेंद्र रघुवंशी का लिखा लेख 'जुहू आर्ट थियेटर' जानकारी से भरा है। इस पुस्तक में एक खंड बलराज साहनी के लिखे आलेख और उनके प्रमुख भाषण का है। जिसमें बलराज साहनी के कई बेहतरीन लेख हैं। 'इप्टा की यादें', 'मेरा सबसे पहला क्लोज़-अप' और 'मैंने 'दो बीघा ज़मीन' में काम किया' समेत सभी आलेख दिलचस्प हैं। एक टिप्पणी 'पृथ्वीराज और नाट्यकला' पर है, जो बलराज साहनी के विशद व्यक्तित्व का खुलासा करती है। पुस्तक के अंत में बलराज साहनी अभिनीत िफल्मों की सूची और उनकी दो चि_ियां शामिल हैं। पुस्तक की छपाई सुरुचिपूर्ण, तो इसका दाम 240 रुपए भी उचित है। यह एक अच्छी किताब है, जो सिनेमा के पाठकों को अपने पास ज़रूर रखनी चाहिए।