भगवान का जन्म होने के बाद भक्तों ने 108 कलशों से पांडुकशिला पर किया जन्माभिषेक
दुनिया में सम्मान और मजा बहुत है, आनंद तो वीतरागता में ही है : आचार्य विशुद्ध सागर;
रायपुर। ज्ञानियों शांति अलग है,मजा अलग है और आनंद अलग है। मित्रों मजा तो आपको टीवी देखने से भी आ सकता है लेकिन आनंद तो वीतरागता में ही आता है। आप आनंद की ओर दौडऩा। आनंद अहिंसा है क्योंकि आनंद में क्लेष, संक्लेषता,द्वेष,राग नहीं होता। आज से प्रयास करो कि कोई काम न हो, काम करने का मन नहीं करें, बस आनंद में रहने का प्रयास करो।
योगीश्वर विषयों से बचने के लिए तपस्या करते हैं और ध्यान में लीन होकर आनंद लेते हैं। विश्वास मानो मोक्ष आनंद से ही होगा, ज्ञानियों दुनिया में सम्मान और मजा खूब है लेकिन आनंद वीतरागता में ही है। यह संदेश सन्मति नगर फाफाडीह में मंगलवार को आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज ने धर्मसभा में दिया। भगवान का जन्म होने के बाद भक्तों ने 108 कलशों से पांडुकशिला पर जन्माभिषेक किया।
आचार्यश्री ने कहा कि जहां आनंद है,प्रसन्नता और खुशी है, वह स्थान ज्ञानियों पंच परम गुरु के चरण हैं। संसार में जब व्यक्ति परिपूर्ण रूप से थक चुका होता है,संपूर्ण आश्रव समाप्त हो जाते हैं,तब वह परमात्मा के आश्रव पर लग जाता है। यही कारण है कि आज जो व्यक्ति आस्था और विश्वास से भरा होता है, फिर उसको दुनिया में कोई दिखाई नहीं देता है। संसार में आकांक्षाए आस्था को जन्म देती है और आस्था आकांक्षा को विराम दे देती है।
आचार्यश्री ने कहा कि कार्य करना कठिन नहीं है, कार्य का निर्णय लेना कठिन है। कार्य किसी का कठिन नहीं होता,कार्य का निर्णय कठिन होता है। चाहे जज हो, वकील हो इनको पैसे कार्य के लिए नहीं निर्णय लेने के लिए मिलते हैं, हर व्यक्ति को वकील की आवश्यकता पड़ जाती है, मात्र बात करने और बात रखने के लिए पैसे मिलते हैं। ज्ञानियों जिसको बनी बात मिल जाती है, उसकी बात बिगड़ती नहीं है।
विकास चाहिए तो यदि आपके गुरु भाई भी आप से सलाह मांगे तो एक ही सलाह देना च्च्गुरु बुद्धि विशेषताज्ज् जिन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया है उनको मैंने गिरते भी देखा है,अपने स्वयं के नियम बनाते हैं उनको टपकते देखा है, इसलिए जो परम गुरु अरहंत देव तीर्थंकर देव ने कहा है वह मुझे स्वीकार करना है,जो सच्चा गुरु होगा वह परम गुरु तीर्थंकर की बात ही बताएगा।
आचार्यश्री ने कहा कि अर्हत दर्शन कहता है आनंद के साथ जियो,आनंद का जीवन ही अहिंसा है,यही रसायन है, इस पर आपको सोचना पड़ेगा,इस पर चिंतन करना चाहिए। मजा आजीवन हिंसा है एवं रसायन शास्त्र कह रहा है कि आनंद का जीवन ही अहिंसा है। जहां तुम जी रहे हो यदि आनंद होता तो आप मंदिर कभी नहीं आते, गुरुओं के पास नहीं आते,बाघेश्वरी जिन भारती जिनवाणी के पास कभी नहीं आते,इसलिए आनंद और मजा में अंतर समझिए। आप दिनभर मजा लूट सकते हो लेकिन आनंद कभी एक क्षण ही मिलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि विषयों और कषायों में मजा मिल सकता है लेकिन आनंद नहीं मिलता है। विषय कषाय के मजे में अंत में पश्चाताप होता है,अश्रुपात व अपयश होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जिस सुख में द्वंद नहीं होता उसका नाम आनंद है, जिस सुख में आग नहीं जलती,ज्वालाए नहीं भडक़ती उसका का नाम आनंद है,पांच इंद्रिय सुखों का अभाव होता है और सुख मिलता है उसका नाम आनंद है,कर्म ईंधन को जो जला दे उसका नाम आनंद है और जो कर्म इकठ्ठे करा दे उसका नाम मजा है। हमेशा ध्यान रखना अच्छा खाओगे तो आपका पेट भरता है और लोक में यश मिलता है। अच्छा खाने वालों को यश तो मिलता ही,पेट भी भरता है, शरीर स्वस्थ होता है,धर्म भी पलता है। उल्टा सीधा खाने वालों का शरीर खराब होता है,अपयश मिलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि विश्वास मानो यदि किसी के यहां भोजन करने गए और बोल दिया कि रात में रोटी नहीं खाता हूं तो आपको मलाई मिलेगी और यह बोल दिया कि मैं मलाई भी नहीं खाता, चारों प्रकार के आहार पानी का त्याग है तो विश्वास मानो लोक पूज्य धर्म का सम्मान मिलेगा।
शुद्ध भोजन करने वाले को शुद्ध सम्मान मिलता है। यही तो सीखना है, लोग सोचते हैं काम चलेगा, अरे मित्र काम चलेगा शब्द आते ही सम्मान चले जाता है। शुद्ध खाना कितना सरल है, शुद्ध खाने के लिए आपको सोचना पड़ता है तो शुद्ध भावों के लिए कितना सोचना पड़ेगा ? जितने लोगों ने मेरी बात मान ली है उनको भजन करके भोजन मिलता है, अन्यथा संसार में तो लोगों को किलकिल करके खाना पड़ता है।