विश्व भर में डॉक्टरों के अनुसार प्रतिदिन छह घंटे का काम सर्वोत्तम विकल्प

ऐसा लगता है कि इंफोसिस के अध्यक्ष एनआर नारायण मूर्ति उस लोकप्रिय कविता को भूल गये हैं जो हमें स्कूल के दिनों में पढ़ाई गई थी;

Update: 2023-11-09 02:54 GMT

- डॉ अरुण मित्रा

श्री मूर्ति को यह समझना चाहिए कि उत्पादकता के लिए काम के अतिरिक्त घंटे मायने नहीं रखते, बल्कि अनुकूल वातावरण में काम करने वाला खुश स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादकता बढ़ा सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे देश में लाखों लोग नौकरी की तलाश में हैं जिनकी सेवाओं का उचित योजना के माध्यम से उपयोग करने की आवश्यकता है।

ऐसा लगता है कि इंफोसिस के अध्यक्ष एनआर नारायण मूर्ति उस लोकप्रिय कविता को भूल गये हैं जो हमें स्कूल के दिनों में पढ़ाई गई थी। कविता का शीर्षक था -'द क्राई ऑफ द चिल्ड्रेन', और कवयित्री थीं एलिजाबेथ बैरेटब्राउनिंग। वह इंग्लैंड में चिमनी साफ करने वाले बच्चों की स्थिति को समर्पित थी जिन्हें खतरनाक उद्योगों में लंबे समय तक काम करवाया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप अनेक गंभीर बीमारियों की चपेट में आने और अंतत: जल्दी ही मर जाने की संभावनाएं थीं। कविता बच्चों पर उनके नियोक्ताओं द्वारा थोपे गये शारीरिक श्रम की जांच करती है। यह अगस्त 1843 में ब्लैकवुड पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

चार्ल्स डिकेंस ने भी 19वीं सदी के मध्य में इंग्लैंड में बच्चों से ली जाने वाली कड़ी मेहनत के बारे में लिखा है। लेकिन उसके बाद से इंग्लैंड काफी आगे बढ़ गया है। सभी बच्चे स्कूल जायें, उन्हें उचित पोषण और आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल मिले, उसकी व्यवस्था की गई। हालांकि, महान हस्तियों की ये रचनाएं सभी श्रेणियों के श्रमिकों पर लागू होती हैं, चाहे वे शारीरिक काम करते हों या सफेदपोश काम करते हों। नारायण मूर्ति ने युवाओं से कहा है कि वे भारत को अपना देश मानें और देश की प्रगति के लिए प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करें।

इस प्रस्ताव का विभिन्न नजरिये से विश्लेषण करने की आवश्यकता है, जैसे ट्रेड यूनियन, स्वास्थ्य, सामाजिक और उत्पादन पर तकनीकी विकास के प्रभाव के दृष्टिकोण से। लंबे समय तक चले संघर्ष के परिणामस्वरूप श्रमिकों को आठ घंटे काम, आठ घंटे की नींद और बाकी आठ घंटे मनोरंजन और परिवार के लिए देने का कानूनी अधिकार मिल सका।

ट्रेड यूनियनों ने प्रति सप्ताह 70 घंटे के काम को अस्वीकार कर दिया है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से श्रमिकों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत समय सीमा के खिलाफ है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, भारत में लोग काम पर अधिकतम समय बिताते हैं लेकिन उन्हें सबसे कम वेतन मिलता है। इसका मतलब यह है कि श्रमिकों का बहुत अधिक शोषण और कानून का उल्लंघन हो रहा है। यह संगठित और गैर-संगठित दोनों क्षेत्रों पर लागू होता है।

उदाहरण के तौर पर, शताब्दी एक्सप्रेस और वंदे भारत जैसी विशेष ट्रेनों में खानपान सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारी कम वेतन पर प्रति दिन लगभग 18 घंटे काम पर बिताते हैं। ऐसे लाखों लोग हैं जो मिठाई की दुकानों में काम कर रहे हैं या गिग कर्मचारी हैं जो हर दिन काम पर समान संख्या में घंटे बिताते हैं। नये तकनीकी विकास के आगमन के साथ, कंपनियों का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है, उनका लाभ भी कई गुना बढ़ गया है, लेकिन लाभ शायद ही श्रमिकों तक पहुंच पाया है।

अतिरिक्त कामकाजी घंटों के स्वास्थ्य प्रभाव का अध्ययन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि यदि श्रमिक स्वस्थ और खुश हैं तो उत्पादकता बढ़ती है। थका हुआ व्यक्ति कभी भी बेहतर उत्पादन नहीं दे सकता। वे अधिक दुर्घटनाओं और गलतियां करने के लिए भी उत्तरदायी हैं। हमारा जीव लगातार 8 घंटों तक उत्पादक होने में असमर्थ है, विशेष रूप से 'सर्कैडियनरिद्म' के कारण, यानी हमारे दैनिक जैविक चक्र के कारण। हमारा शरीर दिन के दौरान कैसे प्रतिक्रिया करता है यह कई कारकों पर निर्भर करता है: हमारे हार्मोन, हमारा आहार, दिन के उजाले के संपर्क में आना आदि। इन मुद्दों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया है कि हमारे पास एक बहुत विशिष्ट जैविक लय है। इस प्रकार, हम दिन के निश्चित समय में बौद्धिक और शारीरिक रूप से अधिक उत्पादक होते हैं। तो यह मैन्युअल रूप से या स्क्रीन पर सभी कार्यों को प्रभावित करता है जैसा कि आजकल कई युवा कर रहे हैं।

हालांकि प्रबंधकों को उम्मीद है कि उनके कर्मचारी कार्यदिवस के सभी घंटों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे, लेकिन यह एक अवास्तविक उम्मीद है। कर्मचारी हर समय अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाह सकते हैं, लेकिन उनकी प्राकृतिक सर्कैडियन लय हमेशा इस इच्छा के अनुरूप नहीं होगी।

25 सितंबर 2017 को यूमैटर में प्रकाशित एक लेख: 'क्या कम कामकाजी दिन एक खुशहाल, स्वस्थ और अधिक उत्पादक जीवन का रहस्य है?' के अनुसार, दिन में 8 घंटे से अधिक समय तक कार्यालय में रहना समग्र स्वास्थ्य के खराब होने से जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं हृदय रोग या तनाव संबंधी रोग विकसित होने का जोखिम 40 प्रतिशत अधिक रहता है।

वैज्ञानिक आम तौर पर इस बात से सहमत हैं कि आदर्श दैनिक कामकाजी समय लगभग 6 घंटे है, और सुबह में अधिक केंद्रित होता है।
इंश्योरेंस जर्नल द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अधिक काम करने से घायल होने का खतरा 61 प्रतिशत बढ़ जाता है, साथ ही मधुमेह, गठिया और कैंसर जैसी पुरानी बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

शोध से यह भी पता चलता है कि अधिक काम करने से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को कितना नुकसान हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अध्ययन में पाया गया कि हर हफ्ते औसतन 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से औसतन 35-40 घंटे काम करने वालों की तुलना में स्ट्रोक का खतरा 35प्रतिशत और हृदय रोग से मरने का खतरा 17प्रतिशत बढ़ जाता है।

कार्यस्थल पर अधिक काम करने से हमारी सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग लंबे समय तक काम करते हैं, उनमें प्रमुख रूप से अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी होती है, खासकर यदि वे प्रति दिन 11 घंटे से अधिक काम करते हैं।

कर्मचारियों को प्रेरित और संतुष्ट रखने के लिए कार्यस्थल संस्कृति महत्वपूर्ण है। यह भी महत्वपूर्ण हो कि काम करने के लिए सकारात्मक माहौल बनाया जाये और कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाये।

निर्णय कर्ताओं और नीति निर्धारकों को यह महसूस करना चाहिए कि अनुकूल वातावरण में काम करने वाले स्वस्थ कार्यबल और सुरक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी के बिना, उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित होगी जो देश, समाज और नियोक्ताओं के हितों के लिए हानिकारक होगी।

श्री मूर्ति को यह समझना चाहिए कि उत्पादकता के लिए काम के अतिरिक्त घंटे मायने नहीं रखते, बल्कि अनुकूल वातावरण में काम करने वाला खुश स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादकता बढ़ा सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे देश में लाखों लोग नौकरी की तलाश में हैं जिनकी सेवाओं का उचित योजना के माध्यम से उपयोग करने की आवश्यकता है।

नारायण मूर्ति को इसके बजाय मुद्रास्फीति के अनुसार श्रमिकों के वेतन के बारे में बात करनी चाहिए और उन्हें कंपनियों के वास्तविक मुनाफे के अनुरूप बनाना चाहिए। उन्हें उन लोगों को बेनकाब करना चाहिए था जो कर चोरी कर रहे हैं और बैंकों से लिया गया ऋ ण वापस नहीं कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पिछले 10 वर्षों में बैंकों का एनपीए 25 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गया है।

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