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सर्दियों में सांस पर हमला: अस्थमा और सीओपीडी के अचानक बढ़ने का कारण क्या?

सर्दियां आते ही ठंडी हवा की चुभन कई लोगों के लिए सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं बल्कि सांस पर हमला बन जाती है

सर्दियों में सांस पर हमला: अस्थमा और सीओपीडी के अचानक बढ़ने का कारण क्या?
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नई दिल्ली। सर्दियां आते ही ठंडी हवा की चुभन कई लोगों के लिए सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं बल्कि सांस पर हमला बन जाती है। अस्थमा और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) मरीजों के लिए यह मौसम हर साल एक ही डर लेकर आता है—कहीं अचानक सांस रुक न जाए, कहीं खांसी-कफ इतनी न बढ़ जाए कि अस्पताल जाना पड़े। डॉक्टरों का कहना है कि तापमान गिरते ही फेफड़ों के रास्ते सिकुड़ जाते हैं और ज़रा-सा ट्रिगर भी बड़ा संकट बन सकता है।

इसी वजह से शोधकर्ता लगातार यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर सर्दियों में ही ये रोग क्यों ज्यादा बिगड़ते हैं। ब्रिटेन में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन “ द कॉजेज एंड कॉसिक्योन्सेस ऑफ सीजनल वेरिएशन इन सीओपीडी” (2014) में पाया गया कि सीओपीडी रोगियों में दिसंबर से फरवरी के महीनों में फ्लेयर-अप की दर लगभग दोगुनी हो जाती है। इसी तरह यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल में प्रकाशित (2011) के अध्ययन में भी यही निष्कर्ष निकला कि ठंड का मौसम सीओपीडी को ज्यादा गंभीर बना देता है और हॉस्पिटल में भर्ती होने वाली संख्या बढ़ जाती है।

वैज्ञानिक बताते हैं कि एक बड़ा कारण ठंडी और सूखी हवा है। जब कोई व्यक्ति सांस लेता है, तो ठंडी हवा सीधा फेफड़ों की नलिकाओं को संकुचित कर देती है। यह ब्रोन्कोकन्सट्रिक्शन तेजी से बढ़े तो मरीज को घबराहट, सीटी जैसी आवाज और सांस के तेजी से फूलने जैसी समस्या हो सकती है। दमे के मरीजों में यह प्रतिक्रिया और भी जल्दी होती है।

हाल ही में पोलैंड में किए गए एक शोध में यह भी पाया गया कि सिर्फ ठंड ही नहीं, बल्कि ठंड के साथ बढ़ता वायु-प्रदूषण—विशेषकर पीएम 2.5 और पीएम 10—स्थिति को और खतरनाक बना देता है। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट (नेचर) में 2025 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सर्दियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर सीओपीडी और अस्थमा के मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की संभावना में साफ-साफ वृद्धि दर्ज की गई।

सिर्फ बाहर की हवा नहीं, घर का वातावरण भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। सर्दियों में अधिकांश घर बंद रहते हैं, खिड़कियां कम खुलती हैं और हीटर, गैस-स्टोव, धुएं और बदली हुई नमी मिलकर अंदर की हवा को और हानिकारक बना देते हैं। एटमॉस्फियर जर्नल में प्रकाशित एक शोध (2021) ने तो यहां तक दिखाया कि हर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान गिरने पर भी सीओपीडी बढ़ने का खतरा लगभग 1 फीसदी तक बढ़ सकता है। यानी जितनी ठंड, उतना जोखिम बढ़ता जाता है।

इन सबके ऊपर, सर्दी-जुकाम और वायरल संक्रमण की सक्रियता सबसे बड़ी चिंता है। फ्लू और सामान्य सर्दी वाले वायरस इस मौसम में ज्यादा फैलते हैं। अगर यह वायरस पहले से संवेदनशील फेफड़ों में पहुंच जाएं तो सूजन तेजी से बढ़ती है और मरीज को सांस लेने में भारी दिक्कत शुरू हो सकती है। यही वजह है कि डॉक्टर सर्दियों में वैक्सीन, मास्क और भीड़ से बचने पर इतना जोर देते हैं।


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