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सबक्लेड 'के' फ्लू: यूके, यूएस और कनाडा में बढ़ते केस, क्या है यह नया खतरा?

दुनिया एक बार फिर इन्फ्लूएंजा के एक नए रूप से जूझ रही है। इस बार चर्चा में है ‘सबक्लेड के’, एच3एन2 फ्लू का उभरता हुआ स्ट्रेन, जिसके कारण यूके और कनाडा में केस अचानक बढ़ गए हैं

सबक्लेड के फ्लू: यूके, यूएस और कनाडा में बढ़ते केस, क्या है यह नया खतरा?
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‘सबक्लेड के’, एच3एन2 फ्लू का स्ट्रेन तेजी से बढ़ रहा; यूके, यूएस और कनाडा में बढ़े केस

नई दिल्ली। दुनिया एक बार फिर इन्फ्लूएंजा के एक नए रूप से जूझ रही है। इस बार चर्चा में है ‘सबक्लेड के’, एच3एन2 फ्लू का उभरता हुआ स्ट्रेन, जिसके कारण यूके और कनाडा में केस अचानक बढ़ गए हैं। यह नाम जितना तकनीकी लगता है, असल में उतना ही चिंता का विषय इसलिए बना है क्योंकि यह वेरिएंट असामान्य रूप से फैल रहा है और कुछ देशों में अस्पतालों पर दबाव बढ़ा चुका है।

जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय को तो लगभग महीने भर पहले पूरे देश में इन्फ्लूएंजा को आधिकारिक महामारी घोषित करना पड़ा। जापान में फ्लू सीजन आमतौर पर बाद में चरम पर पहुंचता है, लेकिन इस बार संक्रमण सितंबर–अक्टूबर से ही उफान पर था। कई प्रांतों में स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा था।

यूके के पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों के अनुसार, इस सीजन में फ्लू समय से पहले और तेजी से बढ़ा है। स्कूलों में अनुपस्थिति की दर बढ़ने, बुजुर्गों में अस्पताल में भर्ती होने और कई शहरों में एक साथ क्लस्टर मिलने का एक बड़ा कारण यही सबक्लेड 'के' है। कनाडा में भी हाल के हफ्तों में फ्लू टेस्ट पॉजिटिविटी रेट में उछाल दर्ज किया गया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा तेज है। देश के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह स्ट्रेन युवा व्यक्तियों के बीच भी तेजी से फैला है, जिससे नियंत्रण मुश्किल हो रहा है।

एच1एन1 वायरस (स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाने वाला सांस का इन्फेक्शन) की तुलना में, एच3एन2 वायरस अक्सर ज्यादा गंभीर लक्षणों से जुड़े होते हैं। इनमें तेज बुखार, थकान, शरीर में तेज दर्द, गले में खराश, ठंड लगना, नाक बहना या बंद होना और उल्टी या दस्त की समस्या हो सकती है।

अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार अमेरिका में 2010 के बाद से फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। एक्सपर्ट्स को चिंता है कि सबक्लेड 'के' से और ज्यादा मामले और मौतें भी हो सकती हैं। सीडीसी का ये भी कहना है कि इस साल वैक्सीनेशन भी कम हुआ है।

ड्यूक यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर और इंफेक्शियस डिजीज स्पेशलिस्ट कैमरन वोल्फ ने मीडिया आउटलेट 'द हिल' को बताया, "जरूरी नहीं कि यह ज्यादा गंभीर होने के कोई संकेत दे रहा हो। मुझे लगता है कि यह हमारी पिछली इम्यूनिटी से कुछ हद तक बच गया है, और शायद इसीलिए हम सीजन की शुरुआत में उन्हें आम तौर पर जितने देखते हैं, उससे ज्यादा देख रहे हैं।"

विशेषज्ञ इसे ‘जेनेटिक ड्रिफ्ट’ का हिस्सा बताते हैं—फ्लू वायरस हर साल छोटे-छोटे बदलाव करता है और जब बदलाव कुछ ज्यादा हो जाते हैं, तब संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि पहले की प्रतिरक्षा पूरी तरह कारगर नहीं रहती। सबक्लेड 'के' भी इसी क्रम का हिस्सा है, लेकिन इसकी खासियत यह है कि यह वेरिएंट कई देशों में लगभग एक ही समय पर उभरा, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसियां भी सतर्क हो गई हैं।

वैक्सीन की प्रभावशीलता को लेकर फिलहाल मिश्रित संकेत हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल के फ्लू शॉट्स इस स्ट्रेन के खिलाफ उचित सुरक्षा देते हैं, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि इसकी उच्च संक्रामकता बताती है कि वैक्सीन कवरेज बढ़ाना जरूरी है। जिन देशों में वैक्सीनेशन दर कम है, वहां यह लहर और बढ़ सकती है।

भारत के लिए भी यह रुझान चेतावनी की तरह है। यहां मौसमी फ्लू के मामलों में अक्सर सर्दियों और वसंत में बढ़ोतरी होती है, और वैश्विक ट्रेंड आमतौर पर दक्षिण एशिया में कुछ हफ्ते बाद असर दिखाता है। हवाई यात्राओं, छात्र विनिमय कार्यक्रमों और अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के कारण फ्लू स्ट्रेन जल्दी देश में प्रवेश कर जाते हैं।

कुल मिलाकर, सबक्लेड 'के' कोई ‘सुपर फ्लू’ नहीं है, लेकिन इसकी तेजी से बढ़ती मौजूदगी बताती है कि फ्लू को हल्के में लेना महंगा पड़ सकता है। दुनिया कोविड के बाद सतर्क है, लेकिन फ्लू वायरस हमेशा याद दिलाता है कि अगला खतरा किसी भी सीजन में उभर सकता है—और तैयारी हर बार पहले से बेहतर होनी चाहिए।


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