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भारत में धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर की चपेट में

लंग यानी फेफड़ों का कैंसर भारत में सबसे जानलेवा बीमारी के तौर पर उभर रहा है. अब इसकी चपेट में आने वाले 40 से 50 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिन्होंने कभी सिगरेट या तंबाकू को हाथ तक नहीं लगाया है

भारत में धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर की चपेट में
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लंग यानी फेफड़ों का कैंसर भारत में सबसे जानलेवा बीमारी के तौर पर उभर रहा है. अब इसकी चपेट में आने वाले 40 से 50 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिन्होंने कभी सिगरेट या तंबाकू को हाथ तक नहीं लगाया है.

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक 2025 के आखिर तक भारत में लंग कैंसर के मरीजों की संख्या करीब 81 हजार तक पहुंच जाएगी. यहां हर 74 लोगों में से एक को इस बीमारी का खतरा है. इस बीमारी से होने वाली सालाना मौतों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई है.

विशेषज्ञों के लिए चिंता की बात यह है कि करीब 80 फीसदी लोगों में इस बीमारी का पता तीसरे या चौथे चरण में लगता है. उस स्थिति में इसका इलाज संभव नहीं है. यही वजह है कि इससे होने वाली मौतों का तादाद साल दर साल बढ़ रही है.

देश के हर हिस्से में इस बीमारी का प्रकोप समान नहीं हैं. पूर्वोत्तर राज्यों में यह दर ज्यादा है. उनके मुकाबले मध्य और पश्चिम भारत में मरीजों की तादाद कुछ कम है. देश में कैंसर से होने वाली कुल मौतों में लंग कैंसर का हिस्सा करीब आठ फीसदी है. ज्यादातर मरीजों में इस बीमारी का पता तीसरे या चौथे चरण में चलने के कारण मृत्यु दर 80 से 90 फीसदी तक है.

महिला मरीजों की तादाद क्यों बढ़ी

विशेषज्ञों का कहना है कि अब लंग कैंसर के जो नए मामले सामने आ रहे हैं उनमें हर चार से में एक मरीज ऐसा होता है जिसने कभी धूम्रपान नहीं किया है. पहले इस रोग का धूम्रपान से सीधा संबंध माना जाता था. लेकिन हालिया अध्ययन रिपोर्ट और विशेषज्ञों का कहना है कि यह पारंपरिक धारणा अब बदल रही है. महिला मरीजों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है. धूम्रपान के लंग कैंसर की प्रमुख वजह होने के बावजूद अब प्रदूषण इसकी एक और बड़ी वजह के तौर पर सामने आया है. वायु प्रदूषण के साथ ही घर के भीतर के प्रदूषण के भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है.

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पल्मोनोलॉजिस्ट यानी फेफड़ा कैंसर विशेषज्ञ डा. सुस्मिता राय चौधरी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "घर के भीतर का प्रदूषण घरेलू महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. महिलाओं का एक बड़ा समूह अपना ज्यादातर समय घर के भीतर बिताता है. उनके काफी समय रसोई में गुजरता है. उनका कहना है कि खाना पकाने के लिए कोयला और लकड़ी जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में इस बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसकी वजह इनसे निकलने वाले धुएं में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मौजूदगी है."

वो बताती हैं कि किचन में हवा का प्रवाह पर्याप्त नहीं होने या खिड़की-दरवाजे बंद होने से खतरा और बढ़ जाता है. महिलाओं के फेफड़ों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होने की वजह से पीएम 2.5 और पीएम 5 आसानी से उसमें चिपक जाते हैं. हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि इस वजह से घरेलू महिलाओं में लंग कैंसर की बीमारी बढ़ रही है. महिलाओं में विशिष्ट आनुवंशिक म्युटेशन, शरीर पर एस्ट्रोजन हार्मोन का प्रभाव और शहरी क्षेत्रों में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की बढ़ती तादाद भी इस बीमारी के कारण के तौर सामने आ रहे हैं.

प्रदूषण भी है कारण

विशेषज्ञों के मुताबिक, देश में खासकर दिवाली के बाद उत्तर भारतीय शहरों में प्रदूषण सुर्खियों में रहता है. दिल्ली के अलावा कोलकाता भी इस मामले में पीछे नहीं है. वैसे तो पूरे साल प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर पर रहती है. लेकिन दीवाली के बाद यह काफी बढ़ जाती है.

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एक अन्य विशेषज्ञ डा. देवराज डीडब्ल्यू को बताते हैं, "औद्योगिक इलाके से निकलने वाले धुएं में कार्सिनोजेन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. इसकी वजह से डीएनए को नुकसान पहुंचता है और कोशिकाओं का असामान्य विकास होने लगता है. यही जो आगे चल कर कैंसर में बदल जाता है. यह भी धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में बढ़ती इस बीमारी की प्रमुख वजह के तौर पर सामने आया है."

उनका कहना है कि मौजूदा जीवनशैली में ऐसे लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है जिन्होंने साग-सब्जी, फल और विटामिन-युक्त भोजन कम कर दिया है. साथ ही वो शारीरिक मेहनत भी कम कर रहे हैं, जिससे लंग कैंसर का खतरा बढ़ रहा है.

जागरूकता ही बचाव

विशेषज्ञों का कहना है कि पहले इस रोग का पता लगाना मुश्किल था. लेकिन विज्ञान की प्रगति के साथ थोड़ी-सी जागरूकता जरूरी है. खासकर धूम्रपान करने वालों लोगों को 45 साल की उम्र के बाद नियमित अंतराल पर सी.टी. स्कैन कराना चाहिए. समय पर इस बीमारी की पहचान से मरीज के स्वस्थ होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.

फेफड़ों के कैंसर के लिए अब तक देश में कोई राष्ट्रीय जांच कार्यक्रम नहीं होने की वजह से जागरूकता ही लोगों को इस बीमारी से बचा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार खांसी होने, सीने में दर्द, मुंह से खून निकलने, थोड़ा सा चलने या सीढ़ी चढ़ने से सांस फूलना और भूख में कमी के साथ ही वजन में गिरावट जैसे लक्षणों को देख कर सचेत हो जाना चाहिए.

पहले माना जाता था कि अगर आप किसी तरह के तंबाकू का सेवन नहीं करते तो आप लंग कैंसर से बचे रहेंगे. लेकिन बढ़ते वायु प्रदूषण ने इस धारणा को तोड़ दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण से जहां तक हो सके बचने और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से इस बीमारी का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है.


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