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'सूजी' के सहारे सिंध में माताएं कुपोषण से लड़ रही हैं

ग्रामीण सिंध में, लगभग आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सुजावल की माताएं यूनिसेफ की कक्षाओं के जरिए सूजी और दाल से सादा, किफायती खाना बनाना सीख रही हैं. ये छोटे-छोटे बदलाव जिंदगी बचा सकते हैं

सूजी के सहारे सिंध में माताएं कुपोषण से लड़ रही हैं
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ग्रामीण सिंध में, लगभग आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सुजावल की माताएं यूनिसेफ की कक्षाओं के जरिए सूजी और दाल से सादा, किफायती खाना बनाना सीख रही हैं. ये छोटे-छोटे बदलाव जिंदगी बचा सकते हैं.

मांओं का एक समूह, अपने भूखे बच्चों को गोद में लिए एक शिक्षक के मार्गदर्शन में सूजी का भोजन तैयार कर रहा है. उनके चेहरों पर थकान और उम्मीद दोनों झलक रही हैं, और यह तस्वीर इस सच्चाई को बदलने का एक प्रयास है कि दक्षिणी पाकिस्तान में लगभग हर दो में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है.

सिंध वास्तव में कराची जैसे प्रमुख बंदरगाह शहरों और देश के वित्तीय केंद्र का घर है, और यहां जहां रोशनी और रौनक कभी कम नहीं होती, लेकिन हकीकत यह है कि कुछ ही घंटों की दूरी पर स्थित ग्रामीण सिंध के बच्चे भूख और बीमारी के कारण कुपोषण का शिकार हैं.

सिंध प्रांत के एक रेगिस्तानी गांव सुजावल में, धूप से झुलसे, दुबली-पतली हड्डियों वाले सुस्त बच्चे भीषण गर्मी में मुरझा रहे हैं, इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता माताओं को पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के बारे में शिक्षित कर रहे हैं और भोजन के बारे में मिथकों को दूर कर रहे हैं.

मां और बच्चे दोनों पौष्टिक भोजन से दूर

25 साल की शहनाज कहती हैं, "पहले, हम अपने बच्चों को सिर्फ आलू खिलाते थे क्योंकि वह हमेशा घर पर मौजूद रहता था." वह बताती हैं कि उनके छह बच्चे हमेशा कमजोर और बीमार रहते थे. लेकिन एक साल के स्वास्थ्य प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने बच्चों की खाने की आदतें बदल दीं. अब वह उनके खाने में दाल और सूजी शामिल करती हैं और उनकी बेटी अब स्वस्थ है.

एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, सिंध के पिछड़े ग्रामीण इलाकों में पांच साल से कम उम्र के 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 20 प्रतिशत गंभीर रूप से कुपोषित हैं. इस क्लास में सामाजिक कार्यकर्ता आजमा, मांओं को सूजी से खाना बनाना सिखाती हैं, जो बाजार में आसानी से मिलती है और सस्ती भी है.

उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "सूजी सस्ती है, 50 रुपये में यह एक सप्ताह तक चल सकती है, अगर आप छह महीने के बच्चे को रोजाना एक से दो चम्मच खिलाएं."

सिंध प्रांत, जिसकी आबादी 5.5 करोड़, वहां गर्भनिरोधक वर्जना है और बड़े परिवार आदर्श माने जाते हैं. वहां 3,500 माताओं को यूनिसेफ द्वारा विकसित कुकिंग क्लास से लाभ मिला है.

23 साल की कुलसूम, जो अपने छठे बच्चे को जन्म देने वाली हैं, कहती हैं कि गांवों की कई महिलाओं की तरह, वह भी अपने बच्चों को तली हुई ब्रेड खिलाती थी. उन्होंने कहा कि उनके एक बच्चे की मौत हो गई और उनका सबसे छोटा बच्चा बहुत कमजोर है, इसलिए उसे उसकी देखभाल करनी पड़ती है.

क्या खाते हैं छोटे बच्चे

सिंध के गांवों में बच्चों को छह महीने बाद खाना खिलाया जाता है. उन्हें जो खाना दिया जा रहा है वह बड़ों का बचा हुआ खाना होता है, जिसमें मसालेदार खाने शामिल होते हैं जिन्हें उनका छोटा और कमजोर पेट बर्दाश्त नहीं कर सकता.

यूनिसेफ के पोषण विशेषज्ञ मजहर इकबाल कहते हैं, "सबसे बड़ी समस्या अलग-अलग पोषण मूल्यों वाले खाद्य पदार्थों का कम सेवन है."

पाकिस्तान में 38 प्रतिशत बच्चे यूनिसेफ द्वारा सुझाए गए आठ खाद्य समूहों में से केवल दो या उससे कम ही खाते हैं. इसके अलावा, मांस केवल विशेष चूल्हों पर पकाया जाता है, लेकिन चिकन, हड्डियां, दालें और बीन्स जैसे सस्ते खाद्य पदार्थों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. इसके अलावा, सब्जियों और फलों को अक्सर तला जाता है, जिससे उनका पोषण मूल्य कम हो जाता है.

बख्तावर करीम के बेटे की एनीमिया से मौत हो गई, अपनी एक साल की बेटी को देखते हुए उन्होंने कहा, "मेरे पास पैसे नहीं हैं और हम कभी खाते हैं और कभी नहीं." उनकी बेटी का पेट सूजा हुआ है और उसके बाल बहुत पतले हैं.

महिलाओं के हिस्से में बचा हुआ खाना

गांवों के 72 प्रतिशत बच्चों की तरह, उनकी बेटी भी नाटे कद की है. यह दर पाकिस्तान के राष्ट्रीय औसत 42 प्रतिशत से कहीं ज्यादा.

इकबाल के मुताबिक, "सिंध में 45 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं कम उम्र में शादी और बार-बार गर्भधारण के कारण एनीमिया से ग्रस्त हैं. जब ये महिलाएं मां बनती हैं, तो उनके बच्चे कम वजन के पैदा होते हैं और उनके कुपोषित होने की संभावना ज्यादा होती है."

पाकिस्तान में ग्लोबल अलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशन की प्रमुख फराह नाज के मुताबिक उन्हें बार-बार महिलाओं को यह समझाना पड़ता है कि अंडे और फल खाने से महिलाओं को पीरियड्स के दौरान ज्यादा रक्तस्राव नहीं होता.

इसके अलावा, गांवों में यह रिवाज है कि खाने की थाली पहले पुरुषों के सामने रखी जाती है और महिलाएं हमेशा पुरुषों का बचा हुआ खाना खाती हैं. बेशक, वे घर और खेतों में दिन भर कड़ी मेहनत करती हैं, और जब घर में भोजन खत्म हो जाता है तो सबसे पहले उनके खाने में कटौती होती है.


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