1954 में जोड़ा गया ‘ए‘ जम्मू-कश्मीर में मौलिक अधिकारों पर एक तलवार : भीमसिंह

नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक ने कहा मौलिक अधिकार का अस्तित्व उस दिन से जम्मू-कश्मीर के भारतीय नागरिकों के लिए खत्म हो गया, जब उसे अनुच्छेद 35 में ‘ए‘ को को जोड़कर उसकी पहचान समाप्त कर दी गई;

Update: 2017-08-24 19:52 GMT

नई दिल्ली। नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक एवं स्टेट लीगल एड कमेटी के कार्यकारी चेयरमैन प्रो.भीमसिंह ने जम्मू-कश्मीर के लोगों विशेष तौर पर 26 अक्टूबर, 1947 में तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह के हस्ताक्षर से भारत संघ में शामिल हुए जम्मू-कश्मीर के उन लोगों से, जो 1953 से पुलिस की बर्बरता के शिकार रहे हैं, कहा कि यह एक त्रासदी है कि भारतीय संविधान के अध्याय-3 में दिए गए मौलिक अधिकार का अस्तित्व उस दिन से जम्मू-कश्मीर के भारतीय नागरिकों के लिए खत्म हो गया, जब 14 मई, 1954 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से अनुच्छेद 35 में ‘ए‘ को जोड़कर उसकी पहचान समाप्त कर दी गई यानि जम्मू-कश्मीर में रहने वाले नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिये गये।

प्रो.भीमसिंह ने मीडिया द्वारा प्रकाशित उस स्टोरी पर आश्चर्यक व्यक्त किया, जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए जोड़ा गया था।

उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह झूठ है और इसका स्टेट सब्जेक्ट से कोई सम्बंध नहीं है। अनुच्छेद 35 में ‘ए‘ तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा 1954 में जोड़ा गया था, जिससे जम्मू-कश्मीर में रहने वाले भारतीय नागरिकों के भारतीय संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार छीन लिये जायं, जिनकी गारंटी भारतीय संविधान में दी गई है और कहा गया है कि किसी भी एजेंसी के जरिये इन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि जब शेख अब्दुल्ला दक्षिण में कहीं जेल में थे तो 1954 में राष्ट्रपति की मुहर और हस्ताक्षर से जम्मू-कश्मीर के लोगों को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 35 में संशोधन पूरी तरह गैरकानूनी, असंवैधानिक और उन भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार के खिलाफ है जो जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी हैं।

उन्होंने कहा कि 35ए के जम्मू-कश्मीर लोगों को दिए गए स्टेट सब्जेक्ट का अनुच्छेद 370 में राष्ट्रपति को दिए गए अधिकार से कोई भी संबंध नहीं है। स्टेट सब्जेक्ट जो महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया था, इसका कोई भी संबंध 35ए की तलवार से नहीं है।

प्रो.भीमसिंह ने बुद्धिजीवियों, विचारकों, गैरसरकारी संगठनों और अन्य सभी लोगों से अनुच्छेद 35ए के अर्थ और दायरे को पढ़ने की अपील की, जिससे लोगों की जिंदगी बनाने में कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

इसका न केवल नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह जम्मू-कश्मीर के भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को रोकता है। जम्मू-कश्मीर में हमारे भाई अनुच्छेद 35 के अर्थ और दायरे को पढ़ें और कल, आज और कल के सत्ता के भूखे राजनेताओं से दूर रहें।

हम जम्मू-कश्मीर के लोगों को भारतीय संविधान के अध्याय-3 में निहित सभी मौलिक अधिकारों की आवश्यकता है, ताकि जम्मू-कश्मीर के लोग भय के बिना सांस ले सकें और देश के बाकी हिस्सों में अपने भाइयों की तरह सम्मानित जीवन जी सकें। अनुच्छेद 35ए एक तलवार है, एक ढाल नहीं है।

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