वक्फ़ बोर्ड: सरकार की मंशा पर सवाल
संसद के जारी मानसून सत्र में केन्द्र सरकार ने वक्फ़ बोर्ड कानूनों में संशोधन करने के उद्देश्य से गुरुवार को विधेयक पेश किया जिसका विपक्ष ने जबर्दस्त विरोध किया;
संसद के जारी मानसून सत्र में केन्द्र सरकार ने वक्फ़ बोर्ड कानूनों में संशोधन करने के उद्देश्य से गुरुवार को विधेयक पेश किया जिसका विपक्ष ने जबर्दस्त विरोध किया। इसके साथ ही सरकार में सहयोगी दल टीडीपी का रवैया भी खुलकर समर्थन देने वाला नहीं रहा। बल्कि टीडीपी सांसद जीएम हरीश बालयोगी ने विधेयक के लिए अपनी पार्टी का सशर्त समर्थन करते हुए कहा कि अगर वक्फ संशोधन विधेयक को आगे की जांच के लिए संसदीय समिति को भेजा जाता है तो वे इसका विरोध नहीं करेंगे। टीडीपी के इस हस्तक्षेप और इंडिया ब्लॉक के कड़े विरोध के बाद इस विधेयक को संसदीय समिति को भेजने का फैसला लिया गया। यह एक तरह से संसद में मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका है।
सरकार का कहना है कि संशोधन कानून के जरिये वक्फ़ बोर्ड को मिले असीमित अधिकारों को नियंत्रित किया जायेगा, उसके कामकाज को पारदर्शी बनाया जायेगा और उसमें सभी वर्गों, खासकर महिलाओं एवं कमजोर वर्ग के मुसलमानों की भागीदारी बढ़ाई जायेगी। दूसरी तरफ़ विपक्षी दलों का मानना है कि इसके पीछे सरकार की मंशा साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करने की है और वक्फ़ बोर्ड की जमीनों को हथियाना है। इस पर चर्चा जारी है लेकिन यदि संख्या बल के आधार पर सरकार इसे पास कराने में कामयाब होती है तो यह अल्पसंख्यकों में असंतोष और निराशा का एक और कारण बनेगा।
मूलत: 1955 में लागू किये गये और साल 2013 में संशोधन के साथ जारी बोर्ड कानून में फिर से बदलाव के अनेक प्रस्ताव हैं। बेहतर कामकाज और संचालन के नाम से 44 संशोधन लाए जाने की सरकार की तैयारी है। सरकार के मुताबिक इस संशोधन द्वारा केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के जरिये वक्फ़ के पंजीकरण को व्यवस्थित करना है। इसमें प्रस्ताव है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ़ संपत्ति के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधितों को नोटिस देना होगा और इसमें राजस्व कानूनों के अनुसार कार्रवाई होगी। सरकार का तो कहना है कि संशोधन विधेयक का उद्देश्य बोर्डों के कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता लाना तथा महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना है।
सरकार का दावा है कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय की मांग पर किया जा रहा है। जबकि विरोधी दल मानते हैं कि रजिस्ट्रेशन की नयी प्रणाली बोर्डों को परेशान करेगी एवं उनमें शासकीय दखलंदाजी बढ़ाएगी। उनकी शक्तियों में कटौती होगी जो धार्मिक कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप जैसा होगा। वक्फ़ बोर्ड कानून 2013 के संशोधन में वक्फ़ बोर्डों को व्यापक शक्तियां देता है। इसलिये भाजपा को इससे तकलीफ़ है। वक्फ़ अधिनियम, 1995 (2013 में संशोधित) की धारा 3 के तहत 'वकीफ़' (जो मुस्लिम कानून द्वारा धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए संपत्ति समर्पित करता है) द्वारा 'औकाफ़' (दान की गई और वक्फ़ के रूप में अधिसूचित संपत्ति) को नियमित करने के लिए बना था। 1954 का अधिनियम पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान वक्फ़ के कामकाज हेतु प्रशासनिक संरचना देने के उद्देश्य से बना था। तब वक्फ़ बोर्डों के पास शक्तियां थीं, जिनमें ट्रस्टियों और मुत़वल्लियों (प्रबंधकों) की भूमिकाएं भी शामिल थीं।
अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं उनकी धार्मिक आजादी में कटौती करने वाले वक्फ़ बोर्ड कानून संशोधन का स्वाभाविकत: कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद मुस्लिमीन आदि की तरफ से संसद में विरोध किया गया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स पर कहा है कि- 'वक़्फ़ बोर्ड में संशोधन एक बहाना है।
रक्षा, रेलवे, राजस्व भूमि की तरह उसकी ज़मीनें बेचना निशाना है। वक्फ़ बोर्ड की ज़मीनें 'भाजपाइयों के लाभार्थ योजना' की श्रृंखला की कड़ी मात्र है। अखिलेश ने कहा कि इस बात की लिखकर गारंटी दी जाए कि वक्फ़ बोर्ड की ज़मीनें बेची नहीं जाएंगी।' एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने हालिया कहा था कि मोदी सरकार बोर्ड की स्वायत्तता छीनना और उसके कामों में हस्तक्षेप करना चाहती है जो धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। उनका तो आरोप रहा है कि भाजपा बोर्डों और वक्फ़ संपत्तियों के खिलाफ रही है। लोकसभा में भी उन्होंने इन शंकाओं को दोहराया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार हिंदुत्व के एजेंडे पर काम कर रही है। संरचना में संशोधन से प्रशासनिक अराजकता और बोर्ड की स्वायत्तता खत्म होगी। इस पर सरकार का नियंत्रण हो जायेगा। लोकसभा में भी इसका विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान हिंदू एंडोमेंट या सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के लिए नहीं है। वक्फ़ की सम्पत्तियां सार्वजनिक प्रॉपर्टी नहीं हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सरकार दरगाह और वक्फ़ जैसी परिसम्पत्तियां हथियाना चाहती है?
प्रस्तुत विधेयक को संविधान पर हमला बतलाते हुए कांग्रेस के सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार यह प्रावधान कर रही है कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ़ बोर्ड के सदस्य होंगे जो धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। उनके अनुसार इसके बाद ईसाइयों और फिर जैनियों का नंबर आएगा। उन्होंने चेताया कि जनता अब इस तरह की विभाजनकारी राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी।
माना जा रहा है इस विधेयक संशोधन का संसद की तरह ही देश भर में बड़ा विरोध होगा क्योंकि लोगों को दिख रहा है कि ऐसा भाजपा द्वारा उसकी अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता के कारण किया जा रहा है। पिछले कार्यकालों में यही सरकार तीन तलाक, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति जैसे कानून लेकर आई थी, वहीं दूसरी ओर देश भर में, खासकर जहां भाजपा की सरकारें हैं, उनमें कभी हिजाब का मुद्दा बनाया गया तो कहीं कथित लव जिहाद की बातें हुईं। उत्तराखंड में समान नागरिकता संहिता को मान्यता दी गयी। भाजपा का मुख्य विमर्श ही समाज में विभाजन पैदा करना है। एक ओर वह हिन्दू-मुस्लिम करती है तो दूसरी ओर उसने बड़े पैमाने अगड़े-पिछड़ों में दरारें पैदा की हैं। इसी के बल पर भाजपा सरकार ने यह लोकसभा चुनाव लड़ा था। उसकी सीटें काफी घटीं लेकिन भाजपा अब भी सोचती है कि सरकार में बने रहने का यही मार्ग है।