हिंसाग्रस्त मणिपुर, अकेले तिरंगा लहराते मोदी
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है। मैतेई कट्टरपंथी संगठन 'अरम्बाई टेंगोल' के नेता की कथित गिरफ्तारी के बाद इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में व्यापक विरोध प्रदर्शन होने लगा, जिसका असर इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, काकचिंग और बिष्णुपुर जिलों इन पांच जिलों पर खास तौर से देखा गया;
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है। मैतेई कट्टरपंथी संगठन 'अरम्बाई टेंगोल' के नेता की कथित गिरफ्तारी के बाद इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में व्यापक विरोध प्रदर्शन होने लगा, जिसका असर इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, काकचिंग और बिष्णुपुर जिलों इन पांच जिलों पर खास तौर से देखा गया। प्रदर्शनकारियों ने नेता की रिहाई की मांग करते हुए क्वाकीथेल और उरीपोक में सड़क के बीचों-बीच टायर और पुराने फर्नीचर जलाए, वहीं इंफाल पूर्व जिले के खुरई लामलोंग में एक बस में आग लगा दी। क्वाकीथेल में कई गोलियों की आवाजें सुनी गईं लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि गोलियां किसने चलाईं। खबर फैली कि गिरफ्तार नेता को राज्य से बाहर ले जाया जा सकता है तो प्रदर्शनकारियों ने तुलीहाल में इंफाल हवाई अड्डे के द्वार का घेराव भी किया और सड़क के बीच में सो गए।
ये सारा हाल जाहिर करता है कि विरोध प्रदर्शन और कितना बढ़ सकता है। इसके बाद एहतियातन प्रशासन ने इन पांच जिलों में इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाओं को भड़काने वाले चित्र, अभद्र भाषा और घृणास्पद वीडियो संदेशों के प्रसारण के लिए सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर उपयोग कर सकते हैं, जिससे मणिपुर राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है।
प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी तो निभाई है, लेकिन जिस कानून और व्यवस्था का हवाला देकर फिर से इंटरनेट सेवाएं बंद की गई हैं, क्या उसका कोई नामलेवा अभी राज्य में बचा है, यह सवाल अब सीधे केंद्र सरकार से किया जाना चाहिए।
पिछले 2 सालों से मणिपुर अशांत बना हुआ है। मई 2023 में भड़की हिंसा की चपेट में पूरा राज्य आ गया, और हत्या, लूटपाट, आगजनी की असंख्य घटनाओं के बीच दो युवतियों के साथ बलात्कार और नग्न परेड जैसी अमानवीय, नृशंस घटनाएं भी हुईं। जिसकी गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठी। ऐसी भयावह परिस्थिति किसी सैन्य शासन या तानाशाही वाले देश या किसी युद्धग्रस्त देश में घटती तो यह सवाल नहीं उठता कि सरकार क्या कर रही है। हमने पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से लेकर मध्य एशिया या अफ्रीका के कई कमजोर देशों में इस तरह की घटनाओं को होते देखा है, क्योंकि वहां लोकतंत्र नहीं है या अगर है तो उसे कमजोर कर दिया गया है। इसके बाद यही गनीमत लगती है कि भारत में लोकतंत्र बना हुआ है, जिसमें आम जनता रोजमर्रा की परेशानियों से भले जूझे, लेकिन इस तरह के अतिरेक से बची रहती है। किंतु दो सालों से मणिपुर के हाल देखकर सवाल उठता है कि क्या वाकई लोकतंत्र के रास्ते पर देश चल रहा है या केवल दिखावा हो रहा है।
दो साल हो गए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अब तक एक बार भी मणिपुर नहीं गए, संसद में भी उन्होंने इस राज्य के हालात पर तभी बयान दिया जब विपक्ष ने अपना दबाव बनाया और सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देना पड़ा। इस बीच मणिपुर में बड़ी मुश्किल से मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दिया और 100 से अधिक दिनों से अब वहां राष्ट्रपति शासन लागू है। हालांकि इस बीच भाजपा की तरफ से सरकार बनाने के दावे पेश किए जाते रहे हैं। लेकिन शायद विधायकों को केंद्र की भाजपा से हरी झंडी नहीं मिल रही। शायद भाजपा अब मणिपुर की जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहती है। बीते 2 साल से ज़्यादा समय से जारी हिंसा में 270 से ज़्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा चुके हैं और हज़ारों लोग घायल हुए हैं। करीब 60 हजार लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
इन दो सालों में श्री मोदी ने देश-विदेश की करीब 3 सौ यात्राएं की हैं, लेकिन मणिपुर जाने के लिए दो-तीन घंटे का वक्त भी उन्होंने नहीं निकाला। न ही वे दिल्ली बैठकर मणिपुर के मुद्दे को हल करने के लिए किसी तरह गंभीर दिख रहे हैं। अगर ऐसा होता तो शायद परिणाम सामने रहते। मगर इस समय ऐसा लग रहा है मानो भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए मणिपुर अस्तित्व ही नहीं रखता है। अपने ही देश के एक राज्य के साथ यह सौतेला व्यवहार आखिर नरेन्द्र मोदी क्यों कर रहे हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है। अभी भाजपा मोदी सरकार के 11 सालों का जश्न देश भर में मनाने की तैयारी में है। खुद श्री मोदी ने इस बारे में ट्वीट किया कि बीते 11 सालों में हमारी सरकार का हर कदम सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के प्रति समर्पित रहा है। इन वर्षों में हमने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे न सिर्फ ऐतिहासिक हैं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के जीवन को सरल और बेहतर बनाने में सहायक रही हैं। हमें पूरा विश्वास है कि हम अपने इन प्रयासों से एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत का सपना जरूर साकार करेंगे।
प्रधानमंत्री से पूछा जाना चाहिए कि सेवा, सुशासन, गरीब कल्याण जैसे शब्दों का मणिपुर में कोई स्थान है या नहीं। जम्मू-कश्मीर जाकर पुल से अकेले तिरंगा लहराकर अपनी देशभक्ति और देशसेवा प्रदर्शित करने की नाटकीयता श्री मोदी को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती, अगर वे वाकई तिरंगे के तहत आने वाले तमाम राज्यों को समभाव से देखते हुए ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाते। अभी तो राहुल गांधी जैसे विपक्ष के नेताओं से ही उम्मीद है कि वे मणिपुर के लोगों के कष्ट बांटेंगे।