नेहरू के जेल जीवन का विश्लेषण

इस दौर में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर अनेक तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं;

Update: 2024-12-08 02:23 GMT

- रोहित कौशिक

इस दौर में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर अनेक तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं। पंडित नेहरू के बारे में ऐसे लोग भी आधारहीन टिप्पणी करने लगते हैं जिन्हें न ही तो भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन की कुछ जानकारी है और न ही उन्होंने नेहरू को पढ़ा है। एक खास विचारधारा वाले लोगों द्वारा अपने कुछ पूर्वाग्रहों के कारण भी नेहरू जी पर जानबूझकर ऐसी टिप्पणियां की जाती हैं जिनसे उनके निहित स्वार्थों की पूर्ति हो सके। हालांकि इन टिप्पणियों को पढ़कर ऐसे लोगों पर दया ही ज्यादा आती है। ऐसे माहौल में प्रख्यात पत्रकार और लेखक पंकज चतुर्वेदी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'जवाहरलाल हाजिर हो'में नेहरू जी के जेल जीवन और उनके मुकदमों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक में पंकज चतुर्वेदी ने पंडित नेहरू की जेल यात्राओं का विश्लेषण करने के साथ ही नेहरू जी के व्यक्तित्व और उस दौर के वास्तविक इतिहास को भी रेखांकित किया है।

अक्सर संघ से जुड़े लोग यह आरोप लगाते हैं कि नेहरू जी ने भी एक माफीनाफा लिखा था। इस बात को लेकर विवाद होता रहता है कि नाभा में नेहरू को दो साल की सजा हुई लेकिन अचानक उन्हें रिहा कर दिया गया। नेहरू जी पर यह आरोप लगता है कि उन्हें इसलिए रिहा किया गया क्योंकि उन्होंने यह माफीनामा लिखा था कि वे कभी नाभा नहीं आएंगे। इस किताब की खासियत यह है कि इसमें पंकज चतुर्वेदी ने यह बताया है कि नेहरू के माफीनामे का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इस दौर में जो लोग नेहरू को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं, उन्हें जवाब देने के लिए यह किताब एक महत्त्वपूर्ण और जरूरी दस्तावेज है। अक्सर एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत यह प्रदर्शित करने की कोशिश की जाती है कि नेहरू का संघर्ष हजारों अनाम क्रान्तिकारियों के संघर्ष के सामने कुछ भी नहीं था। इस किताब को पढ़कर नेहरू के संघर्ष और देश के लिए उनके जज्बे का पता चलता है।

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से पढ़े कई जरूरत से ज्यादा बुद्धिमान लोगों को तो यह भी जानकारी नहीं है कि नेहरू जी जेल भी गए थे। यह किताब ऐसे लोगों के दिमाग का जाला साफ करने में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, बशर्ते वे बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने दिमाग का जाला साफ करने की इच्छा रखते हों। पंकज चतुर्वेदी ने इस किताब के माध्यम से बताया है कि पंडित नेहरू कुल 3259 दिल जेल में रहे। यदि एक साल में 365 दिन गिनकर हिसाब लगाया जाए तो तो उन्होंने अपनी जिंदगी के लगभग आठ साल, तीन महीने जेल में गुजारे। नेहरू जी 1922 में पहली बार जेल गए और 1945 में आखिरी बार रिहा हुआ। इस बीच वे कुल नौ बार जेल गए। कुछ लोगों द्वारा यह भ्रम फैलाया जाता है कि जवाहरलाल नेहरू को जेल में भी सभी सुविधाएं मिलती थीं। इस किताब में पंकज चतुर्वेदी ने बताया है कि नेहरू जी कई बार अंधेरी कोठरी में भी रहे और उन्हें सश्रम कारावास की सजा भी हुई।

17 दिसम्बर 1921 को 'जवाहरलाल हाजिर हो'की पहली आवाज लगी थी लेकिन नेहरू जी ने इस मुकदमे को एक नाटक बताया। दूसरे मुकदमे में भी पंडित नेहरू ने भारतीय दंड संहिता की उन धाराओं का मजाक उड़ाया जिनके तहत उन पर मुकदमा दर्ज किया गया था। नेहरू जी पर तीसरा मुकदमा पंजाब की एक रियासत में चला। यहां उन्हें अंधेरी कोठरी में रखा गया। पंडित नेहरू की चौथी जेल यात्रा 14 अप्रैल 1930 से 11 अक्टूबर 1930 तक हुई। उनकी पांचवीं जेल यात्रा 19 अक्टूबर 1930 से 26 जनवरी 1931 तक नैनी जेल में हुई। उनकी छठी जेल यात्रा भी संघर्षों से भरी रही। सातवीं जेल यात्रा भी कई पड़ावों से गुजरी। आठवीं जेल यात्रा गोरखपुर से शुरू हुई और बाद में उन्हें देहरादून भेज दिया गया। नेहरू जी की नौवीं जेल यात्रा अहमदनगर (महाराष्ट्र), बरेली और अल्मोड़ा जेल में रही। इस दौर में संघ की विचारधारा के लोगों द्वारा जिस जवाहरलाल नेहरू को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है क्या ऐसे लोगों ने सच्चे अर्थों में उस जवाहरलाल नेहरू को समझने की कोशिश की है ?क्या ऐसे लोग यह जानते हैं कि मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू यानी पिता और पुत्र दोनों एक साथ जेल मेें रहे थे ? क्या ऐसे लोगों को यह जानकारी है कि जवाहरलाल नेहरू की मां स्वरूप रानी और दोनों बहनें-विजय लक्ष्मी और कृष्णा भी जेल में रही थीं ? जो लोग नेहरू जी की जेल को सुविधाजनक बताते हैं, अगर वे लोग इस किताब को पढ़ेंगे तो उन्हें सारे उत्तर आसानी से मिल जाएंगे।

नैनी जेल की कुत्ता बैरक में सबसे पहले राजनीतिक कैदी जवाहरलाल नेहरू ही थे। इससे पहले नैनी की कुत्ता बैरक में खूंखार सजायाफ्ता कैदी ही रखे जाते थे। बाद में इसका इस्तेमाल राजनीतिक कैदियों को बंद करने के लिए किया जाने लगा। कुत्ता बैरक 100 फुट व्यास का गोल होता था। इस बैरक के बारे में नेहरू लिखते हैं-'मैं सोचता हूं कि यह मेरा महज ख्याल ही है या यह सच्चाई है कि चौकोनी दीवार की बनिस्बत गोल दीवार में आदमी को अपने कैद होने का ज्यादा भान होता है। कोनों और मोंड़ों के न होने से यह भाव हमारे मन में और भी बढ़ जाता है कि हम यहां दबाए जा रहे हैं। दिन के वक्त यह दीवार आसमान को भी ढक लेती थी और उसके एक छोटे हिस्से को ही देखने देती थी।' इतना पढ़ने के बाद भी अगर कोई इंसान नेहरू के संघर्ष को कम आंकता है तो इसे उसका पूर्वाग्रह ही कहा जाएगा। ऐसी किताब लिखने में सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि किताब के बोझिल होने की संभावना बनी रहती है। पंकज चतुर्वेदी ने अपने श्रम और कौशल से इस किताब को इस तरह लिखा है कि अंत तक रोचकता बनी रहती है। नेहरू जी पर इस श्रमसाध्य शोध के लिए पंकज चतुर्वेदी बधाई के पात्र हैं।

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