यूक्रेन संघर्ष : कारगर नहीं हुआ भारत का शांति प्रयास

जैसे-जैसे रूस यूक्रेन के डोनेट्स्क क्षेत्र में पूर्वी शहर पोक्रोव्स्क पर कब्जा करने के करीब पहुंच रहा है;

Update: 2024-09-14 09:38 GMT

- डॉ. मलय मिश्रा

राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने यूरोपीय राजधानियों और अमेरिका की अपनी लगातार यात्राओं में (वाशिंगटन डीसी में कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के साथ) अपनी 10-सूत्री शांति योजना के लिए समर्थन और लड़ाई जारी रखने के लिए हथियारों की लगातार आपूर्ति की पैरवी की है जिसका बाइडेन प्रशासन ने पूरा समर्थन किया है।

जैसे-जैसे रूस यूक्रेन के डोनेट्स्क क्षेत्र में पूर्वी शहर पोक्रोव्स्क पर कब्जा करने के करीब पहुंच रहा है, कुर्स्क में यूक्रेन द्वारा हासिल बढ़त का असर कम हो रहा है। रूस, यूक्रेन के दोनेत्स्क क्षेत्र में पूर्वी शहर पोक्रोव्स्क पर कब्जा करने के करीब पहुंचते हुए कुर्स्क में यूक्रेन द्वारा हासिल की गई बढ़त को चुनौती दे रहा है। वहां कुर्स्क सैनिकों ने कई रूसी गांवों पर कब्जा कर लिया है। स्थिति में लगातार बदलाव होते रहता है। रूस ने अभी एक रणनीतिक स्थान मेमरिक गांव पर कब्जा करने की घोषणा की है जो कीव के रसद केंद्र पोक्रोव्स्क की ओर जाता है और लगभग 20 किमी दूर है। यूक्रेनी सरकार ने पहले ही पोकवोर्स्क में स्थानीय आबादी को इलाका खाली करने के आदेश दे दिए हैं जो बता रहे हैं कि दो युद्धरत देशों के बीच शांति लगातार घट हो रही है। यह भी लगता है कि शांति स्थापना के नई दिल्ली के प्रयास काम नहीं आए हैं। हालांकि पीएम मोदी की हालिया यूक्रेन यात्रा के दौरान शांति प्रयासों से बहुत उम्मीद नहीं की गई थी। युद्ध एक महत्वपूर्ण दौर में पहुंच गया है और दोनों पक्षों की ओर से राहत के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। अगर पीएम की यह यात्रा उनकी पिछली मॉस्को यात्रा पर नाराजगी को शांत करने के लिए थी तो प्रधानमंत्री के मध्यस्थता के इशारे ने गुस्से को शांत करने कोशिश को कम नहीं किया बल्कि उनके यूक्रेनी मेजबान ने अपनी बाद की प्रेस ब्रीफिंग के दौरान इस संघर्ष के बारे में भारत के दृष्टिकोण में कई विसंगतियों की ओर इशारा करते हुए जो कहा है वह उनकी नाराजगी को बताता है।

जुलाई में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक के तुरंत बाद पोलैंड (21-22 अगस्त) और यूक्रेन (23 अगस्त) (यूक्रेन के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर) की पीएम मोदी की योजनाबद्ध यात्रा, रूस और यूक्रेन के बीच 30 महीने के संघर्ष में मध्यस्थता का भारत का सीधा प्रयास प्रतीत होता है। भारत ने शांति के लिए एकमात्र मार्ग के रूप में 'बातचीत और कूटनीति' का आह्वान करने में एक सुसंगत रुख अपनाया है और दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए बातचीत के द्विपक्षीय समाधान के प्रयास किए और दोनों राष्ट्रपतियों ज़ेलेंस्की और पुतिन दोनों के साथ बैठकें कीं। इस सिलसिले में आखिरी बार क्रमश: जून में इटली में जी-7 बैठक और इस साल जुलाई में मास्को में द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के मौके पर बातचीत हुई थी।

शिखर बैठक के दौरान राष्ट्रपति पुतिन को गले लगाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के चित्र जब छप रहे थे उसी वक्त रूसी मिसाइलों ने यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर हमला किया था जिसमें कैंसर से पीड़ित बच्चे मारे गए थे जिसकी वजह से यूक्रेन के राष्ट्रपति नाराज थे। इस हमले ने पश्चिमी देशों को और नाराज कर दिया तथा नाटो की 75 वीं वर्षगांठ के लिए समय में वाशिंगटन डीसी में उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया। उस पृष्ठभूमि के खिलाफ और दोनों बड़े शक्ति गठबंधनों के बीच अपने संतुलन कार्य को जारी रखते हुए, भारत के प्रयासों को यूक्रेनी पक्ष पर चिंताओं को दूर करने और पश्चिम के संघर्ष में जाहिर भारतीय नीति के साथ सहज महसूस करने के लिए सोचा जा सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसने पश्चिम खुश नहीं है क्योंकि भारत ने रूस को हमलावर के रूप में घोषित करने से परहेज किया है एवं संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ कई प्रस्तावों से परहेज किया है। इसके अलावा जी-7 की बैठक के तुरंत बाद 24 जून को स्विट्जरलैंड में यूक्रेन द्वारा आयोजित शांति सम्मेलन में भारत की ओर से जूनियर स्तर का प्रतिनिधि मंडल भेजा गया और बैठक की संयुक्त घोषणा पर भारत की ओर से हस्ताक्षर भी नहीं किए गए। इस सम्मेलन में 80 से अधिक देशों ने भाग लिया था। एक निष्पक्ष शांतिदूत के रूप में भारत की स्थिति को इस संघर्ष के संदर्भ में अच्छा नहीं माना गया।

इस बीच, यूक्रेन द्वारा रूस के दक्षिणी कुर्स्क क्षेत्र पर आश्चर्यजनक आक्रमण और अधिग्रहण, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से रूसी क्षेत्र पर पहला हमला था जिसने दो युद्धरत पक्षों के बीच मध्यस्थता के सभी प्रयासों को उलट दिया और मास्को को कतर मध्यस्थता प्रयासों को आगे नहीं बढ़ने देने में कड़ा रुख अपनाने को मजबूर कर दिया था जिसके लिए 22 अगस्त के लिए दोनों पक्षों के बीच एक आभासी बैठक होने वाली थी। 6 अगस्त को यूक्रेन का हमला रणनीति के तौर पर रूसी क्षेत्र में गहरे तक घुसना, सुद्ज़ा शहर पर नियंत्रण करना और 80 से अधिक बस्तियों को अपने 400 वर्ग मील पर कब्जा करने को रूस के लिए एक धक्के के रूप में देखा चाहिए जो मूल रूप से रूस के साथ अपनी बातचीत की स्थिति में एक लाभ को सुरक्षित करने के लिए किया गया है। हालांकि पुतिन उत्तर-पूर्वी यूक्रेन के अपने कब्जे वाले डोनेट्स्क क्षेत्र में जमीन नहीं छोड़ने के इरादे पर पक्के रहे हैं जिस पर रूस ने 22 फरवरी के आक्र मण के कुछ महीनों के भीतर कब्जा कर लिया वहां जनमत संग्रह कराया और रूसी कब्जे में किए लगभग 40,000 वर्ग मील यूक्रेनी क्षेत्र (यूक्रेन का 20प्रतिशत) को रूस में मिला दिया।

कथित तौर पर यूएस-निर्मित हिमर्स रॉकेट सिस्टम का उपयोग करके सीम नदी पर तीन महत्वपूर्ण पुलों को नष्ट करने के बाद रूसी बुनियादी ढांचे और नागरिक हताहतों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हुए यूक्रेन 2000 रूसी युद्धबंदियों को सौदेबाजी के लिए रखते हुए अपने कब्जे वाले क्षेत्र से रूसी मुख्य भूमि को काटने में सक्षम रहा है। दोनों पक्ष अप्रिय स्थिति बनाए हुए हैं। यूक्रेन, रूस द्वारा 2014 में कब्जाए गए क्रीमिया सहित सभी कब्जे वाले क्षेत्रों से पूर्ण रूसी वापसी की मांग कर रहा है जबकि रूस अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़ने से इंकार करते हुए यूक्रेन से स्पष्ट आश्वासन चाहता है कि वह नाटो में शामिल नहीं होगा। खासकर स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के बाद पुतिन के रुख को देखते हुए रूस की स्थिति में किसी भी नरमी की उम्मीद नहीं की जा सकती है। लड़ाई के शुरुआती चरण में इस्तांबुल में बुलाई गई गुप्त मध्यस्थता वार्ता टूट गई थी क्योंकि दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडल महीनों तक नहीं मिले थे।

इस बीच युद्ध बेरोकटोक जारी है और आगे बढ़ते रूसी सैनिक अब पोक्रोव्स्क पर कब्जा करने के लिए तैयार हैं।
उधर राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने यूरोपीय राजधानियों और अमेरिका की अपनी लगातार यात्राओं में (वाशिंगटन डीसी में कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के साथ) अपनी 10-सूत्री शांति योजना के लिए समर्थन और लड़ाई जारी रखने के लिए हथियारों की लगातार आपूर्ति की पैरवी की है जिसका बाइडेन प्रशासन ने पूरा समर्थन किया है।

यूक्रेन के बिजली केन्दों को निष्क्रिय करने के लिए रूस-यूक्रेन के पावर ग्रिड पर हमला किया है (यूक्रेन ने सर्दियों में बिजली की चरम खपत करीब 18 गीगावाट बिजली की खपत होती है जिसमें से उसने 9 गीगावाट बिजली खो दी है) जबकि काला सागर में नौसैनिक नाकाबंदी कर रूस ने यूक्रेन के अनाज निर्यात पर पाबंदी लगा दी (2022 में तुर्की और राष्ट्र संघ द्वारा दलाली किया गया अनाज सौदा मुश्किल से कुछ महीनों तक चला)। उधर यूक्रेन ने लंबी दूरी के ड्रोन हमलों के साथ रूस की तेल सुविधाओं पर हमला किया है, रिफाइनरियों, डिपो और तेल गोदामों को जला दिया है तथा मास्को के तेल शोधन को लगभग 15 प्रतिशत कम कर दिया है। दोनों पक्षों को बाहरी समर्थन के कारण दोनों ने युद्ध में राहत के कोई संकेत नहीं दिए हैं। हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट ने आग में घी डाला है जिसमें बताया गया है कि एक यूक्रेनी टीम ने नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन नंबर 1 में तोड़फोड़ की जो उत्तरी सागर के नीचे रूस से जर्मनी तक गैस ले जा रही थी और पोलैंड को एक रसद आधार के रूप में उपयोग कर रही थी। इस खुलासे ने कि 6 सदस्यीय यूक्रेनी डाइविंग टीम ने सितंबर 2022 में एक छोटी नौका से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जिसके परिणामस्वरूप नाटो में सहयोगी पोलैंड और जर्मनी के बीच विवाद हुआ।

इन परिस्थितियों में और युद्ध के और विकराल रूप लेने के कारण और जैसा कि भारतीय विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में उल्लेख किया गया है कि भारतीय पीएम की यूक्रेन यात्रा के 35 वर्षों के बाद और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के निमंत्रण पर हो रही है, मोदी के शांति प्रयासों का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है। भारत-पोलैंड संबंधों की 70वीं वर्षगांठ मनाने के लिए प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के निमंत्रण पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के 45 साल बाद मोदी पोलैंड की भी यात्रा कर चुके हैं। इस यात्रा में भू-राजनीति, रक्षा सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार एवं निवेश के मुद्दों पर चर्चा शामिल थी।

एक सीमावर्ती राज्य होने के नाते पोलैंड ने युद्ध से भागे यूक्रेनी नागरिकों को शरण देकर यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान की है। भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा पोलैंड और यूक्रेन के बीच ट्रेन से हुई थी क्योंकि युद्ध के कारण ओवरफ्लाइट सुविधाओं पर प्रतिबंध है।

यह उल्लेखनीय है कि 2022 में रूसी आक्रमण की शुरुआत में पोलैंड ने लगभग 4000 भारतीय छात्रों को निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 6 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ पोलैंड पूर्वी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा भागीदार है। इसके अलावा वहां आईटी, फार्मास्यूटिकल्स, इस्पात, रसायन और ऑटोमोबाइल के क्षेत्रों में कई भारतीय निवेश हुए हैं जबकि कुछ पोलिश फर्मों ने भी भारत में निवेश किया है। 5,000 छात्रों सहित 25,000 भारतीय समुदाय के साथ पोलैंड, मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण पुल हो सकता है और पीएम मोदी की यात्रा से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

हालांकि मोदी की यात्रा का केंद्र बिंदु यूक्रेन था। रूस के साथ विवाद के चलते अमेरिका और नाटो सदस्यों के अरबों डॉलर पहले से ही डूब गये हैं। दोनों पक्षों में चल रहा युद्ध एक वैश्विक संघर्ष है जिसे हल करने के लिए एक विशाल, व्यापक प्रयास की आवश्यकता होगी। नई दिल्ली के मध्यस्थता प्रयासों ने यूक्रेन या रूस की मदद नहीं की है लेकिन इसने संघर्ष में भारत की अब तक की घोषित स्थिति के साथ पश्चिमी नाराजगी और असुविधा को कम किया होगा।
(लेखक सेवानिवृत्त राजनयिक हैं। (सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)

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