व्यापमं मामले में दो को सजा, तीन बरी

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश ने दो परीक्षार्थियों को दोषी पाए जाने पर सात सात वर्ष का कारावास सुनाया, हालाकि व्यापमं के तीन तत्कालीन कर्मचारियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया;

Update: 2019-09-14 12:26 GMT

भोपाल । मध्यप्रदेश के व्यापमं से जुड़े मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश ने दो परीक्षार्थियों को दोषी पाए जाने पर सात सात वर्ष का कारावास सुनाया, हालाकि व्यापमं के तीन तत्कालीन कर्मचारियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया।

विशेष न्यायाधीश अजय श्रीवास्तव ने कल दो परीक्षार्थियों राकेश और तरुण को सजा सुनायी। अदालत ने सीबीआई को इस बात के लिए फटकार लगायी कि सबूत के अभाव में व्यापमं के तत्कालीन कर्मचारी बरी हो गए। अदालत ने कहा कि व्यापमं में गोपनीय स्थान पर रखी ओएमआर शीट कर्मचारियों के सहयोग के बगैर बाहर कैसे जा सकती थी।

अभियोजन के अनुसार व्यापमं की ओर से वर्ष 2013 में पुलिस विभाग के लिए निम्न श्रेणी लिपिक और शीघ्रलेखक भर्ती परीक्षा आयोजित की गयी थी। इस संबंध में जून 2013 में एमपीनगर थाने में दर्ज करायी गयी रिपोर्ट के अनुसार जून माह में ही स्थानीय कॉलेज में निम्न श्रेणी लिपिक और शीघ्रलेखक भर्ती परीक्षा आयोजित की गयी थी। परीक्षा के बाद ओएमआर शीट (उत्तरपुस्तिका) का लिफाफा खोला गया, तो उसमें से दो ओएमआर शीट गायब थीं। ये शीट राकेश और तरुण नाम के परीक्षार्थियों की थी।
इस मामले की जांच पुलिस ने की और दोनों परीक्षार्थियों के अलावा व्यापमं के कर्मचारी गोपनीय शाखा में पदस्थ भृत्य रितेश कोठे और शंकर सोनी तथा एक सुरक्षा कर्मचारी आशीष वर्मा को आरोपी बनाया गया। बाद में मामले की जांच सीबीआई ने की और उसने पांचों आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में पेश किया। लेकिन सबूतों के अभाव में तीनों तत्कालीन कर्मचारी बरी हो गए। दोनों परीक्षार्थियों को सात सात वर्ष का कारावास सुनाया गया।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई ने मामले में गंभीरता से जांच नहीं की है। लापरवाही के चलते मामले के वास्तविक अपराधियों को दंडित नहीं किया जा सका है। इस मामले में स्पष्ट है कि व्यापमं के तत्कालीन जिम्मेदार अधिकारियों के सहयोग के बिना किसी भी व्यक्ति का गोपनीय शाखा में सुरक्षित रखी ओएमआर शीट तक पहुंच पाना असंभव कार्य था।

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