आवारा मवेशियों से हादसे बढ़े, तस्करी भी

तेजी से बदलते जीवन शैली का प्रभाव शहरों से लेकर गांव तक पहुंचने लगा है;

Update: 2017-09-05 13:39 GMT

जांजगीर।  तेजी से बदलते जीवन शैली का प्रभाव शहरों से लेकर गांव तक पहुंचने लगा है। इसका असर अब कृषि पर भी देखा जा सकता है। जहां पहले पशुओं से कृषि कार्य लिया जाता था। इनकी जगह अब मशीनों ने ले ली है। जिसके चलते पशुपालन के प्रति रूझान घटने लगा है। ऐसे में ज्यादातर मवेशी सड़कों पर घुमते देखे जा सकते है, वहीं इनकी तस्करी भी बहुतायत में होने लगी है। जिले में संचालित गौशालाएं भी केवल शासकीय अनुदान के लिए चलाई जा रही है। जहां इनके रख-रखाव को लेकर गंभीरता देखने को नहीं मिलती। 

दुर्ग और बेमेतरा के गौशालाओं में मवेशियों की मौत के बाद जिस तरह हंगामा खड़ा हुआ है उससे ध्यान में रखते हुए सड़कों  पर घूमने वाले आवारा जीवित मवेशियों की भी चिंता आवश्यक है। क्योंकि ये मवेशी कभी दुर्घटना के शिकार होकर मर रहे हैं तो कभी तस्करी की भेंट चढ़कर मौत को गले लगा रहे हैं। जिले की अधिकांश चारागाह की भूमि अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई है, जिसके चलते  पशु पालकों की संख्या में भी बेतहाशा कमी आई है। खेती-किसानी मशीनों से हो रही है। ऐसे में आज सड़कों  पर विचरण करने वाले मवेशियों की चिंता कर ठोस कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।  चांपा में पहले की कांजी हाऊस और उसकी भूमि का अता-पता नहीं है और न ही किसी को कांजी हाऊस की चिंता है। यही हाल जांजगीर का है। जिले में आधा दर्जन अनुदान प्राप्त गौशालाएं संचालित है, लेकिन वहां  पहले से जानवर मौजूद है।

इसके अलावा कुछ बिना अनुदान के भी गौशालाएं संचालित हैं, लेकिन ये किस तरह मवेशियों की देखभाल करते हैं इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं, क्योंकि चवन्नी भी मवेशियों के लिए कहीं से नहीं मिलती। इधर, मवेशियों की झुंड सड़कों  पर डेरा जमाए रहती है। कुछ माह पहले ही बलौदा में ऐसे ही दर्जन भर मवेशियों को भारी वाहन ने अपनी चपेट में ले लिया था, जिससे करीब दस मवेशियों की मौत गई थी। इसके अलावा समय-बेसमय मवेशी दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं, जबकि मवेशियों के एक बड़ी आबादी तस्करी का शिकार हो रही है। इधर, जिले में बेजाकब्जा जोरों  पर है। चारागाह, श्मशान सहित धरसा अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए। इसके चलते कई गांवों में मवेशियों के लिए चारागाह की समस्या खड़ी हो गई है। कई गांवों में मवेशियों के टहलने तक की जगह नहीं बची। इसके चलते यहां बरसात के चार माह  पशुओं को घर में ही बांधकर रखना  पड़ता है। बेजुबान मवेशी गीले स्थान पर गुजर करने मजबूर हैं। उन्हें कोठे की सफाई के दौरान खूंटे में बांध दिया जाता है। उनके  पैर हमेशा गीले स्थान  पर रहने के कारण गीले रहते हैं। इसके चलते खुरहा की चपेेट में भी ये  पशु आ जाते हैं। जब तक ऐसे मवेशियों के लिए चिंतन कर ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तब तक बेजुबान मवेशी ऐसे ही मौत को गले लगाते रहेंगे।

दुर्घटना की बन रहे वजह 

बम्हनीडीह में सड़क पर बैठे मवेशियों से टकराकर एक बाइक सवार की मौत हो गई थी। कई पशु पालक जानबुझकर अपने मवेशियों को खुला छोड़ देते हैं, जिसके चलते ऐसे मवेशी भटककर सड़क पर इकट्ठे हो जाते हैं। जिले  सहित विभिन्न जगहों में ऐसे मवेशियों की समूह सड़क पर बैठे रहती है, जो यातायात को बहुत हद तक  प्रभावित करती है। सूर्य की रोशनी में लोग ऐसे मवेशियों से बचकर किसी तरह आवागमन कर लेते हैं, जबकि शाम ढलने के बाद ऐसे मवेशी मौत का कारण बन सकते हैं। क्योंकि वाहन चलाते समय अंधेरे में जब ये मवेशी आंखों के सामने आते हैं। ऐसे में दुर्घटना की संभावना प्रबल हो जाती है।

 घट रही पशु पालकों की संख्या

एक दौर था जब खेती और दुध उत्पाद के लिए घरोंघर मवेशी पालन किया जाता था। उस समय मवेशियों को चारे की समस्या ही नहीं थी। वहीं मवेशियों की देखभाल करने वाले चरवाहे भी आसानी से मिल जाते थे, लेकिन चारागाह की भूमि  पर अतिक्रमण के चलते मवेशियों की देखभाल करने वालो की संख्या भी घट गई। इसके अलावा अब खेती का अधिकांश कार्य मशीनों के जरिए होता है। यही वजह है कि अब  पशुपालन की ओर लोगों का ध्यान नहीं है। वहीं बचे मवेशियों में से कई लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ दे रहे हैं। यदि सुविधायुक्त कांजी हाऊस की व्यवस्था जगह-जगह कर दी जाए तो बहुत हद तक ऐसे सैकड़ों मवेशियों की जान बचाई जा सकती है।

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