जेएएल व जेआईएल की मिलीभगत के भेंट चढ़े हजारों खरीदार

जेपी के 32 हजार बायर्स में महज व सात हजार को ही मकान मिल सके है। 25 हजार अब भी मकानों के लिए इधर-उधर भटक रहे है;

Update: 2018-05-15 14:23 GMT

नोएडा। जेपी के 32 हजार बायर्स में महज व सात हजार को ही मकान मिल सके है। 25 हजार अब भी मकानों के लिए इधर-उधर भटक रहे है। यह जय प्रकाश एसोसिएट्स व जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड की मिलीभगत का नतीजा है।

बायर्स ने आरोप लगाया कि जेएएल ने जेआईएल से उन जैसे घर खरीददारों के 10 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक पैसों को अपने खुद के कारोबार को बढ़ाया। जबकि इन पैसों का प्रयोग परियोजना को पूरा करने के लिए होना था। घर खरीदने वालों ने इस बात की तरफ इशारा किया कि यदि जेआईएल को दिवालिया घोषित कर दिया गया या जेएएल को जेआईएल खरीदने की अनुमति दे दी गई तो वे सभी अपने जीवन की जमापूंजी खो देंगें। 

जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) और जेएएल/ गौर्स के प्रमोटरों के खिलाफ बायर्स ने रविवार को कैंडल मार्च निकालकर विरोध प्रदर्शन किया। सोमवार को प्रेस-वार्ता के दौरान बायर्स ने बताया कि जेपी अपने को बढ़ाने के लिए शैल(फर्जी) कंपनियों का सहरा लेता आ रहा है।

जिसमे एक कंपनी ऑफर देती है बुकिंग होने के बाद इसी ग्रुप की दूसरी कंपनी जिसे प्रमोटर या डेवलपर का नाम देकर पैसे उसके खाते में जमा कराए जाते है। फिर पैसे को डायवर्ट कर अन्य कार्यो में लगाया जाता है।  यमुना एक्सप्रेस वे बनाने में भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने बताया कि इस एक्सप्रेस-वे को बनाने में अन्य एक्सप्रेस वे की तुलना में 4,384 करोड़ रुपये अधिक खर्च किए गए। इसे उजागर करने की खरीददारों ने मांग की। 

इसी प्रकार निर्माण क्षेत्र में एलएंटी जैसी कंपनियों के लिए ईबीआईटीडीए मार्जिन 11-14 प्रतिशत थी जबकि वित्त वर्ष 12 और वित्त वर्ष 15 के बीच जेएएल निर्माण कारोबार के लिए ईबीआईटीडीए मार्जिन 30 प्रतिशत से भी अधिक थी। जेएएल को निर्माण की इस बढ़ी हुआ लागत से लाभ हुआ था क्योंकि जेआईएल को यमुना एक्सप्रेसवे बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था और रियल स्टेट के प्रोजेक्ट्स जेएएल को मिले थे। 

घर खरीदने वालों ने आशंका जताई कि जेएएल ने जेआईल से उन जैसे घर खरीददारों के 10,000 करोड़ रुपयों से भी अधिक पैसों को अपने खुद के कारोबार जैसे सीमेंट संयंत्र के विस्तार आदि में लगा दिया। जेएएल द्वारा 10,000 करोड़ रुपयों से भी अधिक धन निकाली गई है। घर खरीदने वालों ने मांग की कि जेएएल को जेआईएल पर फिर से नियंत्रण नहीं दिया जाना चाहिए। क्योंकि जेएएल पर पहले से ही कई बैंकों के 37,000 करोड़ रुपये का बहुत बड़ा कर्ज है।

जेएएल कई ऋणों का डिफॉल्टर घोषित किया जा चुका है। दिवालिया होने की कगार पर है। घर के खरीददारों ने सुप्रीम कोर्ट में आरबीआई द्वारा दायर की गई उस याचिका का भी हवाला दिया जिसमें जेएएल को दिवालिया घोषित करने संबंधी कार्रवाई शुरू करने की सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मांगी गई थी। घर के खरीददारों का तर्क था कि जेएएल काफी बड़ी संख्या में घर के खरीददारों को फ्लैट नहीं दे पाया है और इसी वजह से उसे जेआईएल का नियंत्रण फिर से नहीं दिया जाना चाहिए।  

दिवालिया घोषित करने का किया विरोध

घर खरीददारों ने ऋण देने वाले बैंकों/ कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) द्वारा जेआईएल को दिवालिया घोषित करने के फैसले का भी विरोध किया है। घर के खरीददारों का कहना है कि बीते 7-8 वर्षों से बैंक और जेएएल हम जैसे खरीददारों के खिलाफ मिल कर काम कर रहे हैं और बैंकों/ सीओसी द्वारा जेआईएल को दिवालिया घोषित करने का लिया गया नवीनतम फैसला सीओसी/ बैंकों द्वारा जेएएल को जेआईएल पर फिर से नियंत्रण देने का प्रयास है। 

 घर खरीददारों से लिए पैसों कर लिया लोन

घर खरीदने वाले हजार बायर्स का कहना है कि पहले तो बैंकों ने जेएएल से बड़े पैमाने पर जेआईएल में पैसे भेजने की अनुमति दी और फिर हम जैसे घर खरीददारों द्वारा भुगतान किए गए पैसों को ऋण पर ब्याज के रूप में ले लिया। ऐसा लगता है कि बैंकों ने ब्याज के तौर पर जेआईएल से 7,000 करोड़ रुपयों से भी अधिक पैसा लिया है, इसमें से ज्यादातर पैसा घर खरीदने वालों के हैं। आईबीसी प्रक्रिया के नौ महीनों के बाद बैंकों ने जेआईएल के लिए नए प्रोमोटर लाने के लिए समाधान योजनाओं को खारिज कर दिया है। बैंकों का यह रवैया साफ-साफ बताता है कि वे जेएएल के साथ हैं और हम घर खरीदने वालों के हितों को नजरअंदाज कर रहे हैं। 

जिन मकानों पर मिला कब्जा व भी अधूरे
बताया गया कि जेपी द्वारा जिन भी फ्लैटों के लिए प्राधिकरण ने सीसी जारी किया वह सभी अधूरे है। उनका सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। यह हमारे साथ धोखा किया गया। यही नहीं लेट पेनाल्टी भी नहीं दी जा रही।
 

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