कोविड-19 की दूसरी लहर इतनी विनाशक नहीं होती यदि...
केंद्र सरकार द्वारा देश में कोविड-19 के प्रसार की संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक त्रिसदस्यीय समिति का गठन किया गया है।;
केंद्र सरकार द्वारा देश में कोविड-19 के प्रसार की संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक त्रिसदस्यीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के अध्यक्ष एम विद्यासागर(प्रोफेसर आईआईटी हैदराबाद) ने एक साक्षात्कार में बताया है कि उन्होंने सरकार को सूचित किया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर बन रही है।
क्या सरकार को कोविड-19 की इस विनाशक दूसरी लहर की पूर्व सूचना थी? यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस प्रश्न को यह कहते हुए महत्वहीन बनाया जा रहा है कि यह समय पिछली बातों को कुरेदने का नहीं है, अभी तो वर्तमान संकट से मुकाबला करने पर हमें सारा ध्यान केंद्रित करना है। किंतु इस प्रश्न से बचा नहीं जा सकता। बिना गलतियों को जाने, स्वीकार किए और सुधारे हम भला कैसे इस संकट का सामना कर सकते हैं? इस प्रश्न से ढेर सारे प्रश्न जुड़े हुए हैं।
बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की प्राणघातक कमी का जिम्मेदार कौन है? वैक्सीनेशन प्रक्रिया में असाधारण अव्यवस्था के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाए? कुंभ तथा पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के आयोजन की अनुमति किस मनोदशा में किसने दी? यदि हम 'यह समय गलतियां निकालने का नहीं है' जैसी शातिर और चतुर व्यावहारिकता की आड़ में इन जरूरी सवालों को दरकिनार कर देंगे तो हजारों लोगों की दर्दनाक मौत के लिए जिम्मेदार निरंकुश शासनतंत्र और बेरहम सत्ताधीशों पर नियंत्रण कैसे स्थापित होगा? हम 'सिस्टम' जैसी अमूर्त अभिव्यक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। हममें कम से कम इतना साहस होना चाहिए कि इस संवेदनहीन और अकुशल तंत्र के कर्ताधर्ताओं से कुछ जरूरी सवाल तो पूछें और उनकी जिम्मेदारी तय करें जिससे भविष्य में ऐसी आपराधिक लापरवाही की पुनरावृत्ति न होने पाए।
प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने सरकार का पक्ष रखा है। उनका कहना है कि स्वदेशी और विदेशी वैज्ञानिकों दोनों का मानना था कि सेकंड वेव पहली वेव के बराबर या उससे कमजोर होगी। विजय राघवन के अनुसार पहली लहर के पूर्व की गई भविष्यवाणियों में इसे अत्यंत घातक बताया गया था और इसी को आधार मानकर हमारी प्रतिक्रिया भी त्वरित और प्रभावी रही। किंतु वैक्सीन की उपलब्धता, पहली लहर का कमजोर पड़ना तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य अधोसंरचना को नया रूप देकर विकसित करने से उत्पन्न आत्मविश्वास शायद वे कारक थे जिनके कारण हम दूसरी लहर के आकार एवं तीव्रता का अनुमान नहीं लगा पाए और इसकी भयानकता ने हमें आश्चर्य में डाल दिया।
श्री राघवन द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अतिरिक्त और भी तथ्य पब्लिक डोमेन में हैं जो कुछ दूसरी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा देश में कोविड-19 के प्रसार की संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक त्रिसदस्यीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के अध्यक्ष एम विद्यासागर(प्रोफेसर आईआईटी हैदराबाद) ने एक साक्षात्कार में बताया है कि उन्होंने सरकार को सूचित किया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर बन रही है। यह लहर मई माह के मध्य तक चरम बिंदु पर पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि हमने सरकार को बताया था कि हम इस सेकंड वेव के पीक करने की तिथि के विषय में निश्चित हैं किंतु यह कितनी तीव्र होगी इसका अंदाजा हमें पूर्ण रूप से नहीं है।
जब हमने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी तब हमारा सुझाव यही था कि हमारी पहली प्राथमिकता त्वरित प्रतिक्रिया होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अनौपचारिक रूप से उन्होंने इस विषय में सरकार से मार्च के पहले सप्ताह में राय साझा की थी और उन्होंने अपना औपचारिक अभिमत 2अप्रैल, 2021 को सरकार को दिया था।
रॉयटर्स की तीन मई 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्स कोविड-2 जेनेटिक्स कंसोर्टियम के 5 वैज्ञानिकों ने रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने मार्च 2021 के प्रारंभ में ही सरकारी अधिकारियों को घातक नए वैरिएंट के विषय में जानकारी दे दी थी। किंतु सरकार ने इसके प्रसार को रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए और लोगों के एकत्रीकरण एवं आवाजाही पर किसी तरह के कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए।
देश के शीर्षस्थ वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन(पूर्व प्रोफेसर तथा एचओडी, क्लीनिकल वायरोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी, चेन्नई क्रिश्चियन कॉलेज वेल्लोर) के अनुसार कथित यूके वैरिएंट का पता सितंबर 2020 में चल गया था, साउथ अफ्रीकन वैरिएंट की जानकारी अक्टूबर 2020 में मिल गई थी और ब्राजीलियन वैरिएंट भी दिसंबर 2020 में ही डिटेक्ट हो गया था। जापान द्वारा की जा रही रूटीन जीनोम सीक्वेंसिंग से यह जानकारी मिली थी। यह हमारे लिए एक चेतावनी थी कि हम महत्वपूर्ण वैरिएंट्स के बारे में सतर्क हो जाते और उनका व्यवस्थित अध्ययन करते। दिसंबर 2020 में लैब कंसोर्टियम भी बना किंतु कुल केसेस में से 5 प्रतिशत की जीन सीक्वेंसिंग के कार्य को जरा भी गंभीरता से नहीं लिया गया।
डॉ. जॉन के अनुसार अब तक 30 प्रतिशत लोगों का भी टीकाकरण पूरा नहीं हो पाया है इसलिए सरकार और सरकार की सहायता कर रहे वैज्ञानिकों को अलर्ट मोड में ही रहना चाहिए था।
अनेक वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जब हम यूरोप और अमेरिका की दूसरी अधिक विनाशक लहर को देख चुके थे तब कोई सामान्य मेधा वाला व्यक्ति भी यह समझ सकता था कि भारत में भी कोविड-19 की यह दूसरी लहर अवश्य ही आएगी और पहले से ज्यादा घातक होगी।
इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना आवश्यक है कि जब सरकारें दिल्ली, मुम्बई और अन्य महानगरों में पहली लहर के दौरान तैयार किए गए विशाल चिकित्सा केन्द्रों को हटा रही थीं तब क्या प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकारों ने उन्हें यह बताया था कि यह अनुचित कदम है और अधिक भयानक दूसरी लहर के दौरान हमें संकट में डाल सकता है। इसी प्रकार राज्यों में प्रवासी मजदूरों के लिए बनाए गए क्वारन्टीन सेंटर्स को भी हटा दिया गया और अब वापसी कर रहे प्रवासी मजदूरों के माध्यम से संक्रमण ग्रामों में फैलने का खतरा है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. नवजोत दहिया ने एक समाचार पत्र को दिए गए साक्षात्कार में इस बात पर खेदमिश्रित आश्चर्य व्यक्त किया है कि जब चिकित्सक समुदाय लगातार लोगों को कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करने की हिदायत दे रहा था तब प्रधानमंत्री जी मास्किंग और सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ाते हुए विशाल चुनावी रैलियों का आयोजन कर रहे थे। उत्तराखंड में विशाल कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा था जिसमें लाखों लोग कोविड प्रोटोकॉल का खुला उल्लंघन कर रहे थे।
इधर उत्तरप्रदेश में नृशंसतापूर्वक पंचायत चुनावों का आयोजन हो रहा था जिसके बाद लगभग 135 चुनाव कर्मियों की कोरोना संक्रमण से मृत्यु और चुनाव ड्यूटी में लगे लगभग 2000 पुलिस कर्मियों के संक्रमित होने के समाचार हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर राज्य चुनाव आयोग को नोटिस जारी करना पड़ा है।
प्रधानमंत्री ने 28 जनवरी, 2021 को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में दम्भोक्ति करते हुए इस बात का जिक्र किया कि भारत द्वारा 150 से ज्यादा देशों को टीकों की आपूर्ति की गई और भारत आज कई देशों को ऑनलाइन प्रशिक्षण देकर, पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की जानकारी देकर, टीके और टीकों की अवसंरचना मुहैया कराकर उनकी मदद कर रहा है। यदि प्रधानमंत्री जी कुछ कम आत्ममुग्ध होते तो हम आज टीकों की कमी से जूझ रहे अस्तव्यस्त टीकाकरण अभियान को लेकर चिंतित नहीं होते जो अनेक कारणों से विवादों में है।
हमने इंग्लैंड, अमेरिका और यूरोपीय संघ की भांति वैक्सीन के अग्रिम ऑर्डर्स दिए होते और वैक्सीन विषयक अनुसंधान को अतिरिक्त फण्ड देकर बढ़ावा दिया होता। हम कोविड-19 टीकाकरण हेतु वित्त मंत्री द्वारा प्रावधान किए गए 35,000 करोड़ रुपयों का पारदर्शी इस्तेमाल कर रहे होते और यह सुनिश्चित करते कि देश के प्रत्येक नागरिक को नि:शुल्क वैक्सीन पहली प्राथमिकता के आधार पर यथाशीघ्र मिलेगी।
देश के स्वास्थ्य मंत्री ने 7 मार्च, 2021 को कहा- वी आर इन द एंड गेम ऑफ द कोविड-19 पैनडेमिक इन इंडिया। इस दिन का उनका वक्तव्य प्रधानमंत्री जी की दूरदर्शिता और वैक्सीन मैत्री की पहल को समर्पित था। बहरहाल यह तो तय है कि सरकार की आत्ममुग्धता का दौर लंबे समय तक जारी रहा है और अब कुछ रिपोर्टों के हवाले से खबर आ रही है कि फरवरी और मार्च 2021 में जब देश बड़ी तेजी से कोविड-19 की दूसरी लहर की गिरफ्त में आता जा रहा था तब सरकार को इस विषय पर सलाह देने के लिए गठित नेशनल साइंटिफिक टास्क फोर्स ऑन कोविड-19 की कोई बैठक तक आयोजित नहीं हुई।
रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2021 में 11 जनवरी को इस टास्क फोर्स की बैठक हुई फिर इसकी अगली बैठकें 15 एवं 21 अप्रैल को हुईं लेकिन तब तो देश दूसरी लहर की चपेट में आ चुका था। कोविड-19 की दूसरी लहर को विनाशक बनाने में सरकार की आत्ममुग्धता, लापरवाही और कुप्रबंधन की महती भूमिका रही है। न प्रधानमंत्री जी में सच सुनने का साहस है, न उनके सलाहकारों में सच बताने का। यह स्थिति देश के लिए चिंताजनक है।
_डा. राजू पाण्डेय