नियमों का पालन अनिवार्य है
उपराज्यपाल कार्यालय के तथाकथित 'आउटकम रिपोट' को आज राजनिवास ने भ्रामक बताते हुए कहा कि उपराज्यपाल कार्यालय में 97 प्रतिशत मिली फाइलों को मंजूरी दी गई है;
नई दिल्ली। उपराज्यपाल कार्यालय के तथाकथित 'आउटकम रिपोट' को आज राजनिवास ने भ्रामक बताते हुए कहा कि उपराज्यपाल कार्यालय में 97 प्रतिशत मिली फाइलों को मंजूरी दी गई है। नियमों के अनसार नहीं व अधूरी कुछ फाइलें स्पष्टीकरण के लिए जरूर लौटाई गईं थी। सरकार के स्तर पर हुई विलम्ब को गलत तरीके से उपराज्यपाल कार्यालय को दोषी ठहराया जा रहा है और यदि निर्वाचित सरकार ने नियमों का पालन किया होता तो इस कार्यालय को निर्णय लेने में शीघ्रता होती।
राजनिवास ने आज दो टूक कहा कि वह उपमुख्यमंत्री की रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, हां संविधाान सम्मत वे कार्य कर रहे हैं और चुनी हुई सरकार जरूर उल्लंघन करने के प्रयास करती है।
राजनिवास ने आउटकम रिपोर्ट पर सिलेसिलवार जवाब देते हुए कहा कि गलत, भ्रामक जानकारी दी जा रही है। उदाहरण के लिए दिल्ली स्कूल एजुकेशन एडवाइजरी बोर्ड की फाईल उपमुख्यमंत्री ने किसी भी कारण बताए बिना 768 दिन से अधिक दिन बाद 18 जनवरी 2018 को राजनिवास भेजी और उपराज्यपाल ने पांच फरवरी को ही मंजूरी दे दी।
राजनिवास ने आउटकम रिपोर्ट की प्रति नहीं मिलने न ही रिपोर्ट बनाते समय परामर्श किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करते लेकिन विधानसभा के नियमों के अनुसार अध्यक्ष विधान सभा की कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं। इसलिए जो भी मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है वह गलत है। उपराज्यपाल कार्यालय ने हमेशा पारदर्शिता, कानून सम्मत काम किए व अब वस्तुस्थिति भी जनता के बीच आए ताकि अर्द्धसत्य को सफेद झूठ से गुमराह न किया जा सके।
दिल्ली सरकार की योजना के अनुसार दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को एक विशेष स्थान दिया गया है और यह एक केन्द्रशासित प्रदेश है। केंद्र सरकार की उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित भी किया गया है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली का प्रशासन भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 एए के तहत भारतीय संसद द्वारा बनाई गई दिल्ली अधिनियम 1991 द्वारा संचालित होता है और राष्ट्रपति के नियमों और प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इसके तहत कुछ कार्य जो दिल्ली विधानसभा के अधिकार में नहीं है, उन्हे उपराज्यपाल के विवेक पर छोड़ा गया है। ध्यान देने योग्य है कि संवैधानिक शासन की यह योजना 1993 से दिल्ली में अस्तित्व में है और सरकारों ने उपराज्यपाल कार्यालय के साथ बेहतर तालमेल स्थापित किया है।
हालांकि मौजूदा निर्वाचित सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की स्कीम का जानबूझकर उल्लंघन करने का लगातार प्रयास किया है। निर्वाचित सरकार का यह विचार है कि उपराज्यपाल कार्यालय किसी भी कारण से संबंधित मामलों पर उचित सावधानी नहीं बरत रहा है, सही नहीं है। शपथ के अनुसारए उपराज्यपाल कार्यालय सार्वजनिक हित में भारत के संविधान और कानून व शासन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी अवसर पर यह कार्यालय संविधान की भावना और उसके शब्दों से नहीं भटका है।
बयान में कहा कि निर्वाचित सरकार ने कई बार ऐसे प्रस्तावों को प्रस्तुत किए हैं जो नियमों, प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हैं। जिसकी वजह से उच्च न्यायालय ने निर्वाचित सरकार के कई बड़े फैसलों को निरर्थक घोषित किया जैसा कि जांच आयोग के गठन की अधिसूचना, बिजली कम्पनियों में नामित निदेशकों की नियुक्ति, न्यून्तम सर्कल रेट आदि।
उपराज्यपाल कार्यालय में प्राप्त एवं निपटाई फाइलों में कहा कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान इस कार्यालय को लगभग दस हजार फाईल, प्रस्ताव अनुमोदन के लिए मिली जिसमें आरक्षित विषयों पर भी फाइलें, प्रस्ताव शामिल थे। इनमें से 97 प्रतिशत प्रस्तावों को बिना किसी बदलाव के तुरंत ही मंजूरी दे दी गई। केवल दो प्रस्तावों को जो कि संबंधित ट्रांस्जक्शन ऑफ बिजनेश रूल्स के अंतर्गत विचारों में मतभेद के कारण राष्ट्रपति को भेजा गया। जबकि केवल कुछ प्राप्त कुल फाइलों में से तीन प्रतिशत से कम फाइलों को निर्वाचित सरकार को उनके स्पष्टीकरण, सुझावों को शामिल करने के लिए वापस भेज दिया गया।
उन्होने स्पष्टï किया कि सरकारी संसाधानों का उपयोग गरीबों को जरूरतमंदों के लाभ के लिए होना चाहिए सार्वजनिक धन के व्यय के प्रस्ताव के मामले में यह सुझाव दिया गया था कि मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा योजना जैसी योजना में आय सीमा के बिना सभी को सब्सिडी प्रदान करने की बजाय वास्तविक गरीबों और जरूरतमंदों पर ध्यान केंद्रित करें। डोर स्टेप डिलीवरी ऑफ पब्लिक सेवा, डोर स्टेप डिलीवरी पर उन्होने कहा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश, मानवीय हस्तक्षेप कम करने के लिए तकनीक में सुधार एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए। अत: ऐसे जितने भी प्रस्ताव प्राप्त हुए जिनमें एक तरह के मानवीय हस्तक्षेप को बदलकर दूसरा मानवीय हस्तक्षेप लाना था यह सुझाव देते हुए वापस भेजे गए कि इसकी जगह नवीनतम तकनीक का प्रयोग करें।
कानून, नियमों का पालन अनिवार्य है इसीलिए न्यूनतम मजदूरी, कृषि उत्पादन विपणन समितियों के पुनर्गठन, दानिक्स अधिकारियों के वेतनमान में संशोधन, आम आदमी मोहल्ला क्लिनिक, दिल्ली वक्फ बोर्ड का पुनर्गठन, वेटलैण्ड रेगुलेटरी प्राधिकरण इत्यादि के मामले वापिस भेजे। स्वस्थ प्रतियोगिता, भाई भतीजावाद, पक्षपातपूर्ण वाले प्रस्तावों को यह मशवरा देते हुए लौटाए कि इसे पुन: सही ढंग से भेजा जाए। उदाहरणत: अक्षय पात्र फाउंडेशन द्वारा मिड डे मिल, इत्यादि। स्व0 राम किशन ग्रेवाल को एक करोड़ रूपए देने के मामले को राष्ट्रपति को भेजा गया था।
इसमें मुख्य मुद्दा यह था कि क्या कथित आत्महत्या के मामले में करदाताओं के पैसे को मुआवजे के रूप में दिया जा सकता है। डीईआरसी के चेयरमैन की नियुक्ति का मामला नियमानुसार न होने पर राष्टï्रपति को भेजा गया। रूल्स आफ ट्रांस्जक्शन आफ बिजनेश के अंतर्गत चुनी हुई सरकार ने इसका पालन नहीं किया। इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हो गई कि ऐसा एक महत्वपूर्ण आयोग बिना पूर्णकालिक चेयरमैन के बिना काम कर रहा हैए जो कि बिजली के क्षेत्र में दिल्लीवालों के हित में महत्वपूर्ण कार्य करता है। हालांकि राज्य सरकार ने इसका भी जवाब दिया और कहा कि कई तथ्यों को राजनिवास छिपा गया और जो 10 हजार फाईलें गई हैं उसमें 50 प्रतिशत से अधिक तो पैरोल, ट्रांसफर-पोस्टिंग की फाईलें हैं।