राजस्थान : सिंधी समाज ने मनाया बाबा पारब्रह्म का विशाल चौथा मेला उत्सव मनाया 

राजस्थान में श्रीगंगानगर में सिंधी काछी समाज के इष्ट गुरु बाबा पारब्रह्म देव का चौथा मेला उत्सव कल रात बड़े धूमधाम से मोती पैलेस में मनाया;

Update: 2019-06-18 13:13 GMT

श्रीगंगानगर। राजस्थान में श्रीगंगानगर में सिंधी काछी समाज के इष्ट गुरु बाबा पारब्रह्म देव का चौथा मेला उत्सव कल रात बड़े धूमधाम से मोती पैलेस में मनाया। 

मेले में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उत्साह से हिस्सा लिया। पूज्य सिंधी काछी समाज के सहयोग से भानुशाली सिंधी युवा संघ के तत्वाधान में आयोजित मेला उत्सव की शुरुआत पूज्य सिंधी काछी समाज के अध्यक्ष खुशीराम कटारिया ने ज्योति प्रज्वलित कर की। 

गायिका मीना गजरा ने 'दादा मेहर करयो मुहते' साईं मेहरबान आये मिंजो जस आये ' आदि भजनों की प्रस्तुतिया दीं। पदमपुर के गायक ज्योति प्रिंस शर्मा ने सिंधी भजनों की प्रस्तुतियां देकर बाबा पारब्रह्मदेव का गुणगान किया।

शर्मा ने 'दुनिया भले धिकार जई', 'बेड़ी मुहिंजी पार करो मुहिंजा पारब्रह्म प्यारा' ,सुहिणा रास्ता पया सजन' एवं ठार माता ठार भजन गाए, जिस पर उत्सव में आए हुए श्रद्धालु झूम उठे।

मीडिया प्रभारी जितेंद्र चंदानी ने बताया कार्यक्रम के समय डोडा चटनी का प्रसाद वितरित किया। बच्चों ने भी मेले का भरपूर लुप्त उठाया। महिलाओं एवं पुरुषों ने डांडिया भी खेला।

भानुशाली सिंधी युवा संघ के अध्यक्ष प्रवीण चंदानी ने बताया कि बाबा पारब्रह्म देव भगवान शिव के रूद्र रूप में थे। उनका जन्म गुजरात के कच्छ जिले के कुनरिया गांव में हुआ था। उनका जन्म का नाम पारू था। 

युवा अवस्था में उन्होंने संन्यास ले लिया था और हिंगलाज (अब पाकिस्तान में) चले गए। वहां उन्होंने हिंगलाज माता की काफी तपस्या की।

माता ने आशीर्वाद देकर त्रिशूल प्रदान किया और कहा कि मेंकणसा कापडी को अपना गुरु धारण करें। पारू ने अपने गुरु मेंकणसा की बहुत सेवा की।

सेवा से खुश होकर गुरु ने उन्हें कई आशीर्वाद दिए। पारू से पारब्रह्म होकर उन्होंने कई परचे दिए और चमत्कार दिखाए। अतं में उन्होंने जीते-जी समाधी ले ली। 

समाधी के समय लोगों को दुखी देखकर उन्होंने चतुर्भुज रूप दिखाकर चमत्कार दिखाया। उनके चारों हाथों में एक-एक छड़ी और पांचवी छड़ी मस्तिक पर
थी।

जब भारत का बटवारा हुआ तो एक छड़ी धरती में समा गई। एक छड़ी अहमदाबाद के कुबेर में, दूसरी छड़ी पट्टन (गुजरात), तीसरी छड़ी पदमपुर (श्रीगंगानगर)
में और चौथी छड़ी अजमेर में स्थापित हैं 

इस छड़ी सवरूप में सिंधी समाज की बहुत आस्था है। समाज के लोगों का मानना हैं कि इसके दर्शन मात्र से उनके सारे दुःख कट जाते हैं। जीवन में सब खुश रहा करते है।

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