निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक की तैयारी

शासन निजी स्कूलों की बढ़ती फीस पर लगाम लगाने की तैयारी कर रहा है....;

Update: 2017-04-19 12:55 GMT

बिलासपुर। शासन निजी स्कूलों की बढ़ती फीस पर लगाम लगाने की तैयारी कर रहा है। निजी स्कूल संचालक हर साल फीस में पंद्रह से बीस प्रतिशत की बढ़ोतरी कर बच्चों के परिजनों को लूटते हैं। 12 माह की एक साथ फीस वसूली की जाती है। स्कूलों में नौ माह तक ही पढ़ाई होती है। निजी स्कूल बच्चों की कापी-किताब, डे्रस का करोबार दुकानदार के साथ मिलकर कर रहे हैं। स्कूल प्रशासन स्कूल बसों का मनमाना शुल्क भी वसूलते हैं जो बच्चे बस में स्कूल आना-जाना नहीं करते हैं उन बच्चों से भी बस की फीस ली जाती है। जिले में प्राइवेट स्कूलों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। 80 प्रतिशत स्कूल नेताओं द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। नेताओं की दबंगई के कारण शासन प्राइवेट स्कूलों पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। क्योंकि नेता शिक्षा तय करते हैं। जबकि ऐसे कई स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता भी ठीक नहीं है। निजी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता ठीक नहीं होने के बाद भी स्कूल प्रशासन बच्चों को पास कर देता है। अटके रिजल्ट के कारण एडमिशन लेने लाइन लगी रहती है। निजी स्कूल हर साल करोड़ों का व्यवसाय करते हैं। हर साल ये स्कूल से भारी कमाई करते हैं।
10 माह की फीस- निजी स्कूल बच्चों के परिजनों से 10 माह की फीस वसूलता है। बच्चों को सप्ताह में तीन प्रकार के डे्रस पहनना पड़ता है। आम जनता उन स्कूलों की फीस को लेकर काफी परेशान हैं। आज के समय में शिक्षा का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है। जिले में हजारों की संख्या में निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं। परिजन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की सोच के कारण सरकारी स्कूलों में भरती नही कराते और निजी स्कूलों में बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं। इस चक्कर में हजारों की फीस जमा करते  हैं। इन स्कूलों की फीस सरकारी स्कूलों से 50 फीसद होती है। 
बसों का शुल्क भी भारी-भरकम- बच्चों के लिए बस की सुविधा दी जाती है। लेकिन बसो का शुल्क कई हजार वसूला जाता है। यहां तक कि जो बच्चे स्कूल बसों का उपयोग नहीं करते उन बच्चों से भी बस का शुल्क लिया जाता है। स्कूल प्रबंधन हर साल 14 से 20 प्रतिशत प्रवेश शुल्क में बढ़ोतरी करता है। जबकि सरकारी स्कूलों की फीस हर साल नहीं बढ़ती।  इन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता भी कम होती है। इसलिए पढ़ाई का स्तर भी काफी कमजोर होता है। मगर रिजल्ट अच्छा इसलिए आता है क्योंकि स्कूल प्रशासन प्राय: सभी बच्चों को पास कर देता है। परिजन अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं। हर साल सरकारी स्कूली का रिजल्ट काफी खराब आता है मगर प्राइवेट स्कूलों का रिजल्ट अच्छा आता है।
किताब, डे्रस के लिए दुकान तय-परिजन स्कूलों की फीस, ड्रेस ओर महंगे कापी-किताबों की खरीदी के कारण परेशान होते हैं। स्कूल प्रबंधन और दुकानदारों द्वारा मिलकर व्यापार किया जाता है। प्राइवेट स्कूल प्रशासन परिजन को कापी किताब और डे्रस की सूची देकर कहा जाता है कि निर्धारित दुकान से ही सामान लेना है। जब परिजन दुकान पहुंचते हैं तो कापी किताब और ड्रेस के दाम सुनकर ही पसीना छूट जाता है। परिजन साल भर में अपने बच्चों की शिक्षा में मोटी रकम खर्च करता है। अब शासन इन प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती फीस पर लगाम लगाने की योजना बना रही है। 
घरों में है स्कूल- निजी स्कूल शासन के नियमों का पालन नहीं करते इन स्कूलों में खेल के मैदान तक नहीं है। कई स्कूल तो घरों में संचालित हो रहे हैं।
टेस्ट की भी फीस- प्राइवेट स्कूलों में हर माह बच्चों का जांच परीक्षा हर माह ली जाती है। मगर इसकी फीस भी परिजनों से हर माह वसूली की जाती है। प्रयोगिक परीक्षा का भी शुल्क लिया जाता है।1

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