लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए समर्पित संस्था 'आस्था'

अज्ञात लाश जिन्हें लोग दूर से भी नाक दबाकर देखते और विचलित होते है;

Update: 2018-01-01 12:41 GMT

दुर्ग। अज्ञात लाश जिन्हें लोग दूर से भी नाक दबाकर देखते और विचलित होते है उन लाशों का बिना किसी प्रचार और स्वार्थ के अंतिम संस्कार करने का बेड़ा आस्था बहुउद्देशीय कल्याण संस्था छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष प्रकाश गेडाम ने विगत लगभग 15 वर्षो से उठा रखा है। विगत 15 वर्षो से लगातार संस्था के अध्यक्ष प्रकाश गेडाम 11 सौ से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कफन दफन द्वारा किये जाते है। कभी  कभार अग्नि संस्कार भी करते है। आस्था बहुउद्देशीय कल्याण संस्था द्वारा अज्ञात शवों के कफन दफन के अलावा निर्धन नि:शक्त कन्याओं का विवाह, वृद्धों के लिये वृद्धाश्रम का संचालन, देहदान, नेत्रदान, रक्तदान जैसे अन्य मानवीय कार्य भी किये जाते है। संस्था  को सन् 2006 में छत्तीसगढ़ शासन का प्रतिष्ठित महाराजा अग्रसेन सम्मान तत्कालीन राष्ट्रीय डॉ.ए.पी.जे.कलाम के हाथों दिया जा चुका है। संस्था को शासन द्वारा नियमित तौर पर किसी तरह का अनुदान नहीं दिया जा रहा है। भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा 3 हजार रूपये मासिक किराये पर कार्यालय के लिये भवन दिया गया है। 

इस मानवीय कर्तव्य पालन के लिये 45 वर्षीय प्रकाश गेडाम ने विवाह नहीं किया है। अविवाहित रहकर वे इसी कार्य में अपना पूरा समय लगा रखे है। स्वयं की जीविका चलाने उन्होंने सेक्टर 2 में फोटो फ्रेम की दूकान खोल रखी है। कमाई का 20 प्रतिशत वे नियमतया आस्था पर व्यय करते है। परिवार और मित्रों से भी उन्हें सहयोग मिल जाता है। श्री गेडाम वृद्धाश्रम के लिये जो स्वयं के व्यय पर राशन लाते है उसी चौके में पका भोजन स्वयं वृद्धों के बीच ग्रहण करते है। अभी वृद्धाश्रम में लगभग 15 स्त्री-पुरूष निवास कर रहे है। इनमें से कुछ लोग तो रिटायर्ड बीएसपी परिवार के है। श्री गेडाम ने बताया कि उनकी बड़ी मां की बेटी इंदिरा गजभिये ने अपनी मां स्व. वत्सला गजभिये की स्मृति में एक मुक्तांजलि वाहन एंबुलेंस दान में संस्था को दिया है। एक अन्य मुक्तांजलि शव वाहन एंबुलेंस सांई मंदिर से प्राप्त हुआ है। 

श्री गेडाम ने बताया कि जब भी कहीं कोई लावारिस लाश पाई जाती है । उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद शिनाख्त नहीं हो पाती है तो पुलिस की सूचना पर वे लोग अपनी टीम के साथ लाश लेने मौके पर पहुंचते है। पुलिस की कानूनी कार्रवाई और पोस्टमार्टम इत्यादि के बाद शव उन्हें लिखापढ़ी के साथ मिल जाता है तो वे लोग उसका बकायदा कफन दफन के साथ अंतिम संस्कार कर देते है। ज्यादातर दफनाये ही जाते है क्योंकि देर सबेर वारिसन मिलने पर लाश को कब्र से निकालने तथा संबंधित परिवार की इच्छानुरूप उसका परम्परानुसार अंतिम संस्कार किया जा सकता है। वैसे भी दाह से दफन सस्ता पड़ता है। संस्था वहन कर पाती है। एक दफन मेें लगभग एक हजार से 12 सौ रूपये व्यय हो जाते है। दाह संस्कार में दो से ढाई हजार रूपये का खर्च आता है । यदि शव के वारिस मिल जाते है और उनकी इच्छा दाह संस्कार की होती है किंतु आर्थिक स्थिति न होने पर संस्था ऐसे परिवार की भावनाओं की भी कद्र करती है। अस्पतालों में यतीम की तरह जिनकी मृत्यु होती है आस्था उन्हें भी अंतिम सहारा देती है। सभी शवों को बॉस की काठी बनाकर कंधा देना लोग श्मशान घाट ले जाते है तथा अंतिम संस्कार करते है। 

संस्था द्वारा अब तक 108 विकलांग जोड़ों का विवाह कराया जा चुका है। इनके अलावा 475 गरीब व्यक्तियों की भी सामूहिक शादी कराई जा चुकी है। इस कार्य में समाज के विभिन्न वर्गो मित्रों का भी सहयोग रहता है। देहदान के लिये भी पत्र भराये जाते है। अब तक 6 लोगों का मृत्यु उपरांत देहदान भी हो चुका है। श्री गेडाम ने बताया कि वे विवाह योग्य जोड़ों को मिलवाने तथा उनके विवाह की व्यवस्था तक का निर्वाह करते है। शेष सारी जिम्मेदारियां संबंधित परिवारों की होती है। यहां कुछ ऐसे भी जोड़़े तय होते है जो सामूहिक विवाह की बजाय अपने घरों से विवाह करना पसंद करते है। 
श्री गेडाम से पूछने पर कि यह प्रेरणा उन्हें कहां से मिली तो उन्होंने बताया कि उनका परिवार काफी गरीब था। अकोला के पास गांव में उनके माता पिता घास काटने, लकड़ी बीनने जंगत जाते थे। परिवार के अन्य बाल सदस्य भी सेठ साहूकारों के यहां काम करते थे। सन् 1990 में उनका पूरा परिवार भिलाई आ गया यहां झोपड़ा बनाकर रहने लगे। पिताजी मानिक राव गेडाम अकोला में ही किसी कार्यवश रूक गये। जब प्रकाश व भाई अकोला गये तो गांव वालों ने बताया कि तुम लोग उन्हें अकेला छोड़ गये थे। मृत्यु हुई तो गांव वालों ने अंतिम संस्कार कर दिया। इनके एक  भांजे का अंतिम संस्कार इसी तरह लावारिस अवस्था में हुआ था। इन दोनों घटनाओं ने उन्हें लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की प्रेरित किया। शुरू शुरू में तो लोगों ने चंडाल का काम या अन्य फब्तियों से अपमानित भी किया मगर बाद में लोगों का सहयोग, समर्थन, प्रोत्साहन के साथ सराहना भी मिलने लगी। 

श्री गेडाम ने बताया कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह उनके आश्रम से2 ( अपय्या मंदिर के पास) को सोलर सिस्टम भेंट की है। 50-50 हजार और 1 लाख रूपये का गित 15 वर्षो कुल ढाई लाख का अनुदान भी दिया है। उन्होंने बताया कि इतने बड़े वृद्धाश्रम संचालन, अंतिम क्रिया तथा अन्य सामाजिक दायित्वों के निर्वाह में कभी कभार मिलने वाला अनुदान अपर्याप्त है। नियमित अनुदान जरूरी है। मुख्यमंत्री तो इस मामले में उदार है मगर स्थानीय प्रशासन के अड़ंगे के कारण सहयोग, संरक्षण नहीं मिल पा रहा है। अधिकारी कन्यादान, सरकार कराती है और अंतिम संस्कार पुलिस कर देती है जैसे जुमलों से फाईले अटकाकर रख देते है। वे चाहते है कि आशम की जगह नि:शुल्क प्राप्त हो जाये। राजनीतिक दलों व विभिन्न समाजों के लिये जब भूमि भवन सब मिल रहा है तो समाज के लिये पूरी तरह समर्पित इस संस्था को क्यों लाभ से वंचित रखा गया । 

आस्था के इस मानव सेवा के कार्य में प्रकाश गेडाम के अन्य सहयोगियों ने समारू नेताम, हुसैन, खान, हमेशा साथ रहते है और कब्र खोदन या चिता सजाने में साथ देते है। श्री गेडाम यदि बाहर प्रवास पर है  तो उनके भांजे मनोज मेश्राम, आदिल मेश्राम व भतीजा रविन्द्र गेडाम यह दायित्व पूरा करते है। इनके अलावा दीपक चिनपुरिया, राजेन्द्र सुंदारिया, मनोज ठाकरे, सरिता शर्मा, श्रवण चोपकर भी उनके साथी है। संस्था के संरक्षक पूर्व संसदीय सचिव विजय बघेल तथा भाजपा नेता रामफल शर्मा है। 

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