कांग्रेस की बात कार्यकर्ता ही घर-घर पहुंचा सकता है, मीडिया नहीं!

राहुल हर वह बाधा तोड़ रहे हैं जिसके लिए कहा जाता था ऐसा नहीं हो सकता! ऐसा कौन कर सकता है;

Update: 2024-01-22 06:10 GMT

- शकील अख्तर

राहुल हर वह बाधा तोड़ रहे हैं जिसके लिए कहा जाता था ऐसा नहीं हो सकता! ऐसा कौन कर सकता है? मणिपुर जिसका आज रविवार को जब यह लिख रहे हैं राज्य स्थापना दिवस है और प्रधानमंत्री ने इसके लिए वहां के निवासियों को बधाई दी है मगर वहां हो क्या रहा है यह देखने अभी तक नहीं गए। करीब 9 महीने हो रहे हैं मणिपुर को भयानक हिंसा की आग में जलते हुए मगर प्रधानमंत्री वहां नहीं जाते।

चीन का आतंक और दबदबा कितना है यह इस बात से समझा जा सकता है कि उसके हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान और ईरान दोनों के बमवर्षक विमान शांत होकर चुपचाप घर बैठ गए। वही चीन जिसने हमारे बीस जवानों को शहीद कर दिया था और उसके बाद हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि न कोई आया था और न आया है। वही चीन जो लद्दाख और अरुणाचल दोनों जगह आंख गढ़ाए हुए है। और उसी चीन को चुनौती देते हुए पहले राहुल लद्दाख गए थे और अब अरुणाचल।
राहुल हर वह बाधा तोड़ रहे हैं जिसके लिए कहा जाता था ऐसा नहीं हो सकता! ऐसा कौन कर सकता है? मणिपुर जिसका आज रविवार को जब यह लिख रहे हैं राज्य स्थापना दिवस है और प्रधानमंत्री ने इसके लिए वहां के निवासियों को बधाई दी है मगर वहां हो क्या रहा है यह देखने अभी तक नहीं गए। करीब 9 महीने हो रहे हैं मणिपुर को भयानक हिंसा की आग में जलते हुए मगर प्रधानमंत्री वहां नहीं जाते। विदेश जाते हैं। देश में जगह-जगह घूमते हैं मगर मणिपुर नहीं जाते।

लेकिन राहुल पिछले साल जून में भी वहां गए। और सच यह है कि देश को और दुनिया को भी पहली बार तब ही मालूम हुआ कि मणिपुर में किस तरह लोग दो हिस्सों में बांट दिए गए हैं। शव पड़े हैं जिनका अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है। पुलिस प्रशासन सब दो हिस्सों में बंट गए हैं। कोई सुरक्षित नहीं है। मगर फिर भी प्रधानमंत्री ने उसे पूरी तरह उपेक्षित कर रखा है।

मगर राहुल फिर वहां गए। और इस बार अपनी दूसरी यात्रा शुरू करने के लिए। राहुल आम तौर पर व्यवस्था के मामलों में बोलते नहीं हैं। मगर जब इस दूसरी यात्रा पूर्व से पश्चिम की तैयारियां हो रही थीं तो राहुल ने कहा अगर पूर्व से निकालना है तो मणिपुर से निकालना है। मणिपुर की स्थिति बहुत खराब है और वहां के लोगों को देश के साथ की बहुत जरूरत है। ऐसे ही राहुल ने श्रीनगर पैदल जाने का अपना संकल्प बताते हुए कहा था। उन्हें जम्मू से आगे पैदल जाने नहीं दिया जा रहा था। उनकी सुरक्षा भी वापस ले ली गई थी। मगर राहुल डटे रहे। सोनिया गांधी कहती हैं जिद्दी है। और वही जिद वे देश की एकता और अखंडता के लिए कश्मीर लद्दाख से लेकर मणिपुर अरुणाचल तक दिखाते हैं। लाल चौक जाने से मना किया। मगर राहुल ने भारी बर्फबारी के बीच वहां जाकर तिरंगा लहराया।

राहुल यह सब कर रहे हैं। आम जनता के साथ हर मौके पर अपनी एकजुटता बता रहे हैं। कोरोना में जब कोई घर से नहीं निकल रहा था। मगर मजदूरों को शहर से निकालकर अपने गांव पैदल जाने पर मजबूर कर दिया गया था तब राहुल उनके साथ सड़क पर थे। प्रियंका गांधी ने यूपी में उनके लिए राजस्थान से सैकड़ों बसें मंगवाकर रखी थीं। ताकि वृद्ध, बच्चे, महिलाओं को रात-दिन पैदल नहीं चलना पड़े। मगर यूपी सरकार उन बसों के कागज और फिटनेस चेक करने लगी। और उसने एक मजदूर भी बस में नहीं बैठने दिया। मगर यह सारी सच्चाइयां लोगों के पास जाने से रोक दी गईं। मजदूरों को पैदल चलने से बचाने के लिए लाई गई बसों की जांच तो इतनी बारीकी से कर ली मगर उसके बाद फिर कभी बसों की जांच किए जाने की खबर कहीं नहीं दिखी।

मीडिया यह सब सवाल उठाता नहीं है। वह तो प्रियंका द्वारा मंगाई गई बसों की हवा चेक करता रहा। इसमें कम है तो नहीं चल सकती और इसमें ज्यादा है तो नहीं चल सकती। यूपी सरकार ने अपने अफसरों से जांच जरूर करवाई मगर उसकी जरूरत नहीं थी। मीडिया खुद बड़े उत्साह के साथ मैकेनिक बन गया था। और वह हवा, हेडलाइट, हार्न चेक कर करके सब बसों को फेल और फ्राड घोषित कर रहा था।

यही मीडिया का रूप है। श्रीराम मंदिर से ज्यादा वह प्रधानमंत्री मोदी को दिखा रहा है। मोदी का महिमा मंडन इतना ज्यादा है कि बाकी कोई चीज दिखाई नहीं दे रही है। यही मीडिया मैनेजमेंट है। और इसके सहारे मोदी तीसरी बार लोकसभा चुनाव में जाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी कभी भी चुनाव की घोषणा करवा सकते हैं। वे केवल इसी एक मुद्दे पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।

अब यहीं पर यह सवाल है कि क्या कांग्रेस या इन्डिया गठबंधन अपने जनता से जुड़े सवालों को लोगों तक पहुंचा पाएगी? मीडिया साथ देना तो दूर की बात है। खुला विरोध करेगा। दस साल से कर ही रहा है। और सच यह है कि दस साल से नहीं उससे पहले से। 2012 से मीडिया पूरी तरह कांग्रेस-विरोधी हो गया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी मगर फिर भी कांग्रेस मीडिया को सही खबरें दिखाने के रास्ते पर नहीं ला पाई। आज कोई सोच सकता है कि मुख्य धारा का मीडिया किसी झूठ को, नफरत और विभाजन को रोक सकता है। उसे जो भी कहा जाएगा दिखाएगा। और कहे से ज्यादा दिखाएगा। अपनी वफादारी सिद्ध करने के लिए वह बिना धज्जी के सांप बना देगा या बना रहा है। और बिना आग के धुंआ पैदा कर रहा है।

ऐसे में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को सबसे ज्यादा सोचने की यह बात है कि वह लोगों तक अपनी बात कैसे पहुंचाए। जब मीडिया होस्टाइल ( विरोधी) होता है तो राजनीतिक दलों के पास अपनी बात पहुंचाने का एक ही माध्यम होता है। -कार्यकर्ता। आजादी के आन्दोलन में भी मीडिया अंग्रेजों के साथ था। उस समय भी आंदोलन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने अपनी बात कार्यकर्ताओं के माध्यम से ही घर-घर पहुंचाई थी। आजादी के बाद भी कई उदाहरण रहे। एक लेफ्ट का जिसका मीडिया हमेशा से विरोधी रहा है। शत्रुता की हद तक। दूसरा लालू यादव का जिनका विरोध करने से लेकर मजाक उड़ाने में मीडिया कोई सीमा नहीं रखता है। हर गंदे से गंदा मजाक उनके लिए किया गया। तीसरा मायावती का जिनसे वह सबसे ज्यादा चिढ़ता रहा। जब तक वे भाजपा के साथ नहीं आ गईं उनके खिलाफ अपमानजनक हेडिंग, टिप्पणियां बिना शर्म के आती रहीं।

लेकिन इन तीनों ने अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ मीडिया का मुकाबला कैसे किया? अपने कार्यकर्ताओं की पहुंच की दम पर। इनके कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर अपनी पार्टी और अपने नेता की बात लोगों तक पहुंचाई। और मीडिया की कमी पूरी कर दी।

कांग्रेस यही काम नहीं कर पा रही है। इसके पास कार्यकर्ता हैं। मगर वह उन्हें चार्ज नहीं कर पा रही है। और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस ने काम करने वालों का महत्व देना बंद कर दिया है। या यह लिखना ज्यादा सही होगा कि मेहनत से और निष्ठा से काम करने वालों को पार्टी के नेता परेशान करने लगे हैं। जो लोग खुद काम नहीं करते हैं उन्हें काम करने वाले दुश्मन लगते हैं।

ताजा उदाहरण कांग्रेस के प्रखर प्रवक्ता आलोक शर्मा का है। उन्हें यह सवाल उठाने पर कांग्रेस के मीडिया डिपार्टमेंट ने नोटिस दिया है कि गोदी मीडिया के जिन पत्रकारों एंकरों का इन्डिया गठबंधन ने बाकायदा प्रेस नोट निकालकर बायकाट किया था। उन्हें कमलनाथ ने अपने साथ हवाई जहाज में क्यों घुमाया, क्यों इंटरव्यू दिया?
नोटिस कमलनाथ को मिलना चाहिए था मगर उनके बदले आलोक शर्मा के मिलने से कार्यकर्ताओं का मनोबल बहुत टूट गया। आलोक शर्मा की छवि गोदी मीडिया के एंकरों से नहीं डरने और भाजपा के प्रवक्ताओं का डटकर मुकाबला करने से बनी है। दूसरी तरफ कमलनाथ के अंहकार को मध्यप्रदेश के कार्यकर्ता और नेता भी हार का मुख्य कारण मानते हैं। अखिलेश वखिलेश कहने, मनमाने टिकट वितरण, चार-पांच प्रभारियों को हटवाने दिग्विजय और जयवर्धन सिंह के कपड़े फाड़ो कहने से लेकर विवादास्पद धीरेन्द्र शास्त्री के शरणागत होने तक उनके खिलाफ शिकायतों की भरमार है।

मगर कांग्रेस ग्राउंड पर रोज लड़ने वाले अपने एक दमदार प्रवक्ता को उनके लिए बलि का बकरा बनाना चाहे तो इसका असर कार्यकर्ताओं पर क्या पड़ेगा यह कांग्रेस को सोचना चाहिए। कहते हैं कमलनाथ बहुत पैसे वाले हैं। तो क्या पैसे वाले के लिए पार्टी के बहादुर कार्यकर्ताओं, नेताओं, प्रवक्ताओं को शहीद हो जाना चाहिए!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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