ओलंपिक या साज़िश का अखाड़ा
श्रीमान मोदी खुश हो सकते हैं कि विनेश फोगाट ओलम्पिक में कुश्ती के फाइनल मुकाबले में आने से पहले ही अयोग्य घोषित कर दी गईं;
- सर्वमित्रा सुरजन
अब विनेश फोगाट किस तरह की वापसी करेंगी, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि इन पंक्तियों के लिखने तक खबर थी कि अपना वजन कम करने के लिए विनेश ने रात भर साइकिलिंग की, वेट लिफ्टिंग की लेकिन वजन फिर भी कम नहीं हुआ। उसके बाद वो निराश होती गईं और अंत में बेहोश हो गईं। उन्हें ओलंपिक विलेज के ही पॉलिक्लीनिक में इलाज के लिए ले जाया गया है।
श्रीमान मोदी खुश हो सकते हैं कि विनेश फोगाट ओलम्पिक में कुश्ती के फाइनल मुकाबले में आने से पहले ही अयोग्य घोषित कर दी गईं। उनका वजन सौ ग्राम ज्यादा पाया गया, तो इसकी सजा ये मिली कि उन्हें फाइनल मुकाबला खेलने से रोका गया और इसके साथ ही उन्हें अब कोई पदक भी नहीं दिया जाएगा। यहां नरेन्द्र मोदी के लिए खुशी की बात यह है कि अब कम से कम उन्हें ये चिंता नहीं रहेगी कि अगर विनेश फोगाट ओलम्पिक में मिला पदक भी लोककल्याण मार्ग आकर उनके दरवाजे पर रख आतीं, तो फिर वे देश को क्या जवाब देते। वैसे भी देश को जवाब देना उन्होंने कभी जरूरी नहीं समझा। इसलिए 2024 के चुनावी घोषणापत्र में 2036 में ओलम्पिक कराएंगे, जैसी घोषणा वे कर देते हैं और उनके समर्थक इसी में खुश हो जाते हैं।
विनेश फोगाट अगर बुधवार को कुश्ती का फाइनल मुकाबला खेलतीं तो फिर एक पदक मिलना तय ही था। स्वर्ण होता तो देश ज्यादा खुश होता, रजत होता, तब भी खुशी कम नहीं होती, क्योंकि पदक मिलना ही बड़ी बात थी। और विनेश फोगाट के मामले में ज्यादा बड़ी बात इसलिए थी क्योंकि उन्होंने पेरिस में क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मुकाबलों में अपने प्रतिद्वंद्वियों को ही धूल नहीं चटाई, बल्कि पूरी मोदी सरकार को बड़ी पटखनी दी। हालांकि मोदीजी के लिए इसमें भी खुश होने की बात थी, क्योंकि वे तब यह कह सकते थे कि विनेश ने उनकी बात मानते हुए आपदा में अवसर तलाश लिया। उनके असंभव, अविश्वसनीय और अकल्पनीय किस्सों की कड़ी में यह किस्सा भी जुड़ सकता था कि मेरी पुलिस ने विनेश पर जोर आजमाइश की और मैंने उसके साथ नाइंसाफी होने दी, ताकि शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से उसकी मजबूती परख सकें। इस तरह श्री मोदी बड़े आराम से विनेश फोगाट के पदक लाने का श्रेय ले लेते और उनके समर्थक इसे सही साबित भी कर देते। चंद्रयान से लेकर टी-20 वर्ल्ड कप तक सारी उपलब्धियों पर यही तो होता आया है।
किसी भी तरह की कामयाबी पर प्रधानमंत्री का चेहरा सामने आ जाता है और उसके पीछे नाइंसाफी की जितनी कालिख है, वो सब छिपा दी जाती है। देश ने देखा है कि मोदी सरकार ने विनेश के सामने तमाम तरह की आपदाएं खड़ी कीं। सरकारी, कानूनी तंत्र की लिंचिंग पर्याप्त नहीं लगी तो मीडिया और सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी के जरिए विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया जैसे खिलाड़ियों का भरपूर अपमान किया। मंगलवार को जब विनेश मैच खेल रही थीं, तो उसकी कमेंट्री साक्षी मलिक कर रही थीं। इधर देश में बजरंग पुनिया विनेश फोगाट पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों को भाजपा की ट्रोल आर्मी का सदस्य बता रहे थे और पूछ रहे थे कि मोदीजी कब विनेश को फोन करके बधाई देंगे। लेकिन मोदीजी का न फोन आया, न ट्वीट आया। फिर जैसे ही बुधवार सुबह खबर आई कि महज सौ ग्राम ज्यादा होने से विनेश को मुकाबले के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है, उसके बाद ही नरेन्द्र मोदी का ट्वीट आ गया, जिसमें उन्होंने विनेश को चैंपियनों की चैंपियन बताया है और कहा है कि वे और मजबूत होकर वापसी करेंगी। मानो श्री मोदी इंतजार कर रहे थे कि कब उन्हें मौका मिले और वे सांत्वना के दो बोल लिखकर अपना कद ऊंचा दिखाएं।
अब विनेश फोगाट किस तरह की वापसी करेंगी, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि इन पंक्तियों के लिखने तक खबर थी कि अपना वजन कम करने के लिए विनेश ने रात भर साइकिलिंग की, वेट लिफ्टिंग की लेकिन वजन फिर भी कम नहीं हुआ। उसके बाद वो निराश होती गईं और अंत में बेहोश हो गईं। उन्हें ओलंपिक विलेज के ही पॉलिक्लीनिक में इलाज के लिए ले जाया गया है। अब सवाल यह है कि क्या वजन कम करने का सारा दबाव विनेश फोगाट अकेले झेल रही थीं। उन्हें इस हद तक व्यायाम क्यों करने दिया गया कि वे बेहोश ही हो जाएं। भारतीय ओलंपिक टीम का प्रबंधन, डॉक्टरों और आहार विशेषज्ञों की टीम क्या पेरिस घूमने गई है या उनकी कोई जवाबदेही मोदी सरकार ने सुनिश्चित की है।
एक गंभीर सवाल यह भी है कि विनेश फोगाट को देश के सियासी अखाड़े में पस्त नहीं किया जा सका, तो क्या इसका बदला ओलंपिक के अखाड़े में लिया गया है। बुधवार सुबह ही जब खबर आ गई थी कि विनेश फोगाट को अयोग्य ठहराया गया है तो सरकार ने फौरन कोई एक्शन क्यों नहीं लिया। प्रधानमंत्री का ट्वीट करना ही क्या पर्याप्त था, क्यों एक वैश्विक नेता की हैसियत से अपने देश की खिलाड़ी को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने फौरन हस्तक्षेप नहीं किया। मान लिया कि खेल आयोजनों में राष्ट्राध्यक्षों की सीधी दखलंदाजी नहीं होती है, वहां के प्रोटोकॉल अलग होते हैं। लेकिन क्या फाइनल से पहले अयोग्य ठहराने वाले प्रकरण रोज होते हैं, जो सामान्य नियमों पर चला जाए। महाभारत में भी लिखा है कि असाधारण परिस्थितियों में आपद धर्म का निर्वाह करना पड़ता है। क्या यहां मोदी फिर से अपने धर्म के निर्वाह में नाकाम रहे।
खेल मंत्री मनसुख मंडाविया का संसद में दिया बयान भी बेहद लचर था, जिसमें यह कहीं नजर नहीं आया कि मोदी सरकार को विनेश फोगाट के साथ हुई नाइंसाफी पर कोई अफसोस हो। बल्कि मंत्रीजी यह भी बता गए कि सरकार ने विनेश फोगाट को पेरिस ओलंपिक के लिए 70 लाख रूपयों की मदद की। 80 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज का ढोल जिस तरह मोदी सरकार पीटती है, वही रवैया आज विनेश फोगाट मामले में अपनाया गया। जबकि हकीकत यह है कि जिसे सरकार मदद का नाम दे रही है, वह उसकी जिम्मेदारी है और यह जिम्मेदारी सरकार जनता के दिए टैक्स के पैसे से ही पूरी करती है, अपनी जेब से नहीं।
विनेश फोगाट को इंसाफ दिलाने के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पी टी उषा से आग्रह किया है कि वे इस संबंध में कड़ा विरोध दर्ज कराएं। पी टी उषा अभी पेरिस में ही हैं, लेकिन भारतीय ओलंपिक दल किसी भी तरह की कोशिश करता नजर नहीं आया। याद रहे कि जब महिला पहलवानों ने जंतर मंतर पर धरना दिया था, तब पी टी उषा ने उनके रवैये का विरोध किया था। अब इस अभूतपूर्व संकट में पी टी उषा किस तरह विनेश फोगाट के साथ खड़ी होती हैं, यह देखना होगा। पेरिस ओलंपिक में नीता अंबानी की इंडिया हाउस में की जा रही मेजबानी की भी खूब खबरें आ रही हैं। नीता अंबानी आईओसी की सदस्य भी हैं, क्या उन्हें इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, अगर ऐसा नहीं कर सकतीं तो फिर विनेश फोगाट के साथ खड़े होने के लिए इस्तीफे की पेशकश ही कर दीजिए, तभी तो देशप्रेम और खेलप्रेम की मिसाल कायम होगी, वर्ना यहां भी व्यापार प्रथम ही नजर आ रहा है।
वैसे इस पूरे प्रकरण में साजिश की बू शुरु से आई, इस पर आप सांसद संजय सिंह और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सवाल उठाए हैं। राहुल गांधी ने भी लिखा है कि हमें पूरी उम्मीद है कि भारतीय ओलंपिक संघ इस निर्णय को मजबूती से चैलेंज कर देश की बेटी को न्याय दिलाएगा। किसान नेता राकेश टिकैत ने एक गंभीर बात कही है कि यह एक बेहद दुखद खबर है कि देश की बेटी को कोई अखाड़े में नहीं हरा पाया लेकिन साजिश के अखाड़े में हरा दिया गया है। देश का एक मैडल आज राजनीति का शिकार हो गया। यह देश इस दिन को कभी नहीं भूल सकता।
सवाल यह है कि ओलंपिक को अगर साजिश का अखाड़ा बनाया गया है तो इसके पीछे किन लोगों का हाथ है।