निराला ने शिवपूजन को हिंदी भूषण की उपाधि दी

आचार्य शिवपूजन सहाय को पद्मभूषण आज़ादी के बाद 1960 में भले ही मिला पर वह साहित्य जगत में हिन्दीभूषण के नाम से पहले ही विख्यात हो गए थे;

Update: 2017-09-27 12:08 GMT

नयी दिल्ली। हिंदी के यशस्वी लेखक और पत्रकार आचार्य शिवपूजन सहाय को पद्मभूषण आज़ादी के बाद 1960 में भले ही मिला पर वह साहित्य जगत में हिन्दीभूषण के नाम से पहले ही विख्यात हो गए थे और यह उपाधि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान दी थी। यह बात कल शाम  सहाय की 125वीं जयंती के अवसर पर वक्ताओं ने कही।

साहित्य अकेडमी द्वारा हिंदी नवजागरण और शिवपूजन सहाय विषय पर आयोजित संगोष्ठी में यह भी कहा गया कि श्री सहाय हिंदी साहित्य के आज़ाद शत्रु थे और राष्ट्रकवि दिनकर ने तो यहभी कहा था कि सहाय की सोने की प्रतिमा लगाई जाए और उस पर हीरे मोती जड़े जाए तो साहित्य में उनके योगदान की भरपाई नही की जा सकती।

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रसिद्ध पत्रकार अच्युतानंद मिश्र, श्री सहाय के पुत्र एवं अंग्रेजी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ मंगल मूर्ति, अक़ेडमी के सचिव श्री निवास राव, वरिष्ठ लेखक भारत भारद्वाज, दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी की प्रोफेसर कुमुद शर्मा एवं राजीव रंजन गिरि ने यह विचार व्यक्त किये।

 मिश्र ने कहा कि सहाय का जीवन बहुत गरीबी में बीता लेकिन वे कई शहरों में जाकर हिंदी की पत्रकारिता की सेवा की। वह हिंदी के अजातशत्रु थे। दिनकर ने तो उनके निधन पर लिखा कि  सहाय की सोने की प्रतिमा लगाई जाए और उसपर हीरे मोती जड़े जाएं तभी उनके योगदान की भरपाई नही हो सकती।

 भारद्वाज ने कहा कि सहाय ने अपने समय के सभी बड़े लेखकों की रचनाओं का संपादन किया और उनकी भाषा का परिष्कार किया। उन्हें 1960 में भले पद्मभूषण मिला पर निराला ने तो तीस के दशक में ही उन्हें हिंदी भूषण की उपाधि दी थी और हर पत्र में हिन्दीभूषण शिवपूजन सहाय लिखते थे। डॉ मंगलमूर्ति ने बताया कि देशरत्न डर राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा और उनपर अभिनंदन ग्रंथ के संपादन के लिए 1946 में एक साल कीछुट्टी राजेन्द्र कालेज से दी गई थी।

हिमालय पत्रिका के संपादक के रूप में उन्होंने राजेन्द्र बाबू की आत्मकथा की छह किश्त उन्होंने छपी पर उनके सचिव ने आत्मकथा वापस मंगवा ली पर बाद में मेरठ में कांग्रेस अधिवेधन से पहले आत्मकथा पुस्तक के रूप में छपने के लिए पांडुलिपि राजेन्द्र बाबू ने फिर शिवपूजन जी को दी थी।

 गिरी ने कहा कि निराला ने शिवपूजन जी के गद्य की तारीफ करते लिखा था कि उसमें सेचमेली की गंध आती है।उन्होंने हिंदी नवजागरण के दौर में स्त्रियों के प्रति  सहाय और अन्य लेखकों के विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि वे हिंदी नवजागरण के कबीर तो नही बल्कि रैदास थे।

कुमुद शर्मा ने सहाय की पत्रकारिता पर प्रकाश डाला। अकेडमी के सचिव  निवास राव ने कहा कि श्री सहाय ने अपने समय के सभी बड़े रचनाकारों की रचनाओं का संपादन किया था और कामायनी जैसी कृतियों का भी। 
 

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